Sunday, 16 March 2025

सरकार और मुस्लिम संगठनों के बीच हो सकता है टकराव, सड़कों पर होगा विरोध

Wakf Amendment Bill : मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को लेकर देशभर में विरोध बढ़ता जा रहा…

सरकार और मुस्लिम संगठनों के बीच हो सकता है टकराव, सड़कों पर होगा विरोध

Wakf Amendment Bill : मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को लेकर देशभर में विरोध बढ़ता जा रहा है। प्रमुख मुस्लिम संगठन आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस विधेयक के खिलाफ 13 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़े प्रदर्शन की घोषणा की है। उनका मानना है कि इस विधेयक के जरिए मुस्लिमों की वक्फ संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, जिससे समुदाय के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों का हनन होगा।

वक्फ विधेयक पर सरकार का क्या कहना है?

मोदी सरकार का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के पारदर्शी और प्रभावी प्रबंधन के लिए लाया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा कि यह कानून उन लोगों को अधिकार देने के लिए बनाया गया है, जिन्हें पहले अधिकार नहीं मिले। हालांकि, मुस्लिम संगठनों को डर है कि इस कानून के जरिए सरकार वक्फ बोर्ड के अधिकारों को कमजोर कर, संपत्तियों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। सरकार का कहना है कि इस विधेयक से वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जा रोका जा सकेगा। वक्फ बोर्ड के फैसलों को कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार मिलेगा। महिलाओं को वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता आएगी।

मुस्लिम संगठनों का विरोध क्यों?

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य संगठनों का आरोप है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की गारंटी देता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस कानून को शरीयत के खिलाफ बताते हुए कहा कि मुसलमान अपनी आस्था और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में किसी भी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगे। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि सरकार वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है। मदरसों, मस्जिदों और कब्रिस्तानों की जमीनें सरकार के अधिकार में आ सकती हैं। यह कानून शरीयत के विरुद्ध है और धार्मिक अधिकारों का हनन करता है।

क्या यह आंदोलन सीएए-एनआरसी की तरह बड़ा बन सकता है?

2019-20 में सीएए-एनआरसी के खिलाफ देशभर में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें सभी समुदायों के लोगों ने भाग लिया था, क्योंकि इसका प्रभाव हर भारतीय नागरिक पर पड़ सकता था। लेकिन वक्फ संशोधन विधेयक मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय की वक्फ संपत्तियों से जुड़ा है, जिससे आम मुसलमान खुद को सीधे प्रभावित नहीं देख रहा। वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी के अनुसार, यह आंदोलन सरकार पर वैसा दबाव नहीं बना पाएगा जैसा सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुआ था। क्योंकि वक्फ संपत्तियों पर पहले से ही रसूखदार मुस्लिम संगठनों, उलेमाओं और मिल्ली तंजीमों का कब्जा रहा है, इसलिए आम मुसलमान इस मुद्दे से खुद को बहुत अधिक नहीं जोड़ रहा है। हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि अगर विरोध प्रदर्शन तेज हुआ और व्यापक समर्थन मिला, तो यह सरकार के लिए राजनीतिक रूप से असहज स्थिति पैदा कर सकता है। इस विरोध प्रदर्शन की टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। 13 मार्च को होली दहन का दिन है, और अगले दिन होली का त्योहार है। दूसरी ओर रमजान का महीना चल रहा है, जिससे मुस्लिम समुदाय के लोग यात्रा करने में असमर्थ हो सकते हैं।

आगे क्या होगा?

अब यह देखना होगा कि 13 मार्च को जंतर-मंतर पर मुस्लिम संगठनों का प्रदर्शन कितना प्रभावशाली होता है। क्या यह केवल सांकेतिक विरोध तक सीमित रहेगा या फिर यह विस्तृत जन आंदोलन का रूप ले पाएगा? अगर आंदोलन बड़ा हुआ और देशभर में फैलने लगा, तो यह सरकार के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है। लेकिन अगर विरोध प्रदर्शन सीमित रहा, तो सरकार विधेयक को बिना किसी बड़ी बाधा के पास करा सकती है। वक्फ संशोधन विधेयक मुस्लिम संगठनों और सरकार के बीच टकराव का नया केंद्र बन चुका है।
मुस्लिम संगठन इसे मुस्लिमों की संपत्तियों पर कब्जे की साजिश बता रहे हैं। सरकार इसे पारदर्शिता और सुधार लाने वाला कानून कह रही है। आम मुसलमान इस मुद्दे पर बंटा हुआ नजर आ रहा है। अब देखना होगा कि यह विरोध प्रदर्शन कितना प्रभावशाली होता है और क्या यह सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है।

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