Gopashtami : गोपाष्ठमी-2024 का पर्व 9 नवंबर शनिवार को मनाया जाएगा। गोपाष्ठमी का त्यौहार दीपावली के बाद आने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। भारत में गोपाष्ठमी के पर्व का सदियों से बड़ा महत्व रहा है। इसी कारण गोपाष्ठमी को बड़ा त्यौहार माना जाता है। गोपाष्ठमी के त्यौहार के विधि-विधान तथा गोपाष्ठमी मनाने के कारण को हम यहां विस्तार से बता रहे हैं। गाय हमारी माता है गाय हमारी माता है, जन्म-जन्म का नाता है। भारत में हजारों साल से यही मान्यता रही है कि गाय हमारी माता है। गाय के साथ भारत का सैकड़ों जन्म का नाता है। गाय के पूजन के लिए ही भारत में गोपाष्ठमी का त्यौहार पूरे विधि-विधान के साथ मनाया जाता है।
गोपाष्ठमी का त्यौहार
गोपाष्टमी का त्योहार दिवाली के समय होने वाली गोवर्धन पूजा के सात दिन बाद मनाया जाता है। यह मान्यता है कि गोवर्धन पूजा के सात दिन बाद नंद बाबा ने श्रीकृष्ण और गऊ माता के लिए एक समारोह का आयोजन किया था। भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम बाल्यावस्था में इसी दिन पहली बार गाय को चराने ले गए थे।
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गोपाष्टमी का त्योहार हम इसलिए मनाते हैं क्योंकि हम लोग अपने पालन के लिए गाय पर निर्भर हैं इसीलिए गाय हिंदू धर्म में पूज्यनीय है। गाय का दूध,गाय के दूध से निर्मित घी,दही व छाछ मनुष्य के लिए लाभदायक है। गाय का मूत्र भी मनुष्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसका प्रयोग कई बीमारियों के निवारण के लिए किया जाता है। गाय के दूध को तो अमृत के समान माना जाता है।
गोपाष्टमी मनाने के पीछे अलग-अलग तर्क
गोपाष्टमी मनाने के पीछे अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण छ: वर्ष की आयु में माता यशोदा से जिद करने लगे कि वह अब बड़े हो गए हैं और बछड़े की जगह गाय को चराने ले जाएंगे। उनकी जिद को देखकर माता यशोदा ने उन्हें पिता नंद बाबा से इसकी अनुमति लेने भेज दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने नंद बाबा से भी यही जिद की कि वह अब गाय चराएंगे। नंद बाबा गाय चराने के शुभ मुहूर्त के लिए शांडिल्य ऋषि के आश्रम पहुंचे। शांडिल्य ऋषि ने बड़े अचरज से कहा कि अभी इस समय के अलावा अगले साल तक कोई शुभ मुहूर्त नहीं है। वह दिन गोपा अष्टमी का दिन था। उस दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण को अच्छे से तैयार किया मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरु पहनाए व चरण पादुकाएं दी। लेकिन उन्होंने पादुकाएं पहनने से इंकार कर दिया,वे बोले कि वह पादुकाएं तभी पहनेंगे जब आप गाय को भी पादुकाएं पहनाएंगी। उस दिन भगवान श्रीकृष्ण बिना पादुकाओं के ही गाय चराने गए।
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गाय चराने की वजह से ही श्रीकृष्ण का नाम गोविंद व गोपाल पड़ा। दूसरी कथा यह है कि बरसाने में देवराज इंद्र के प्रकोप के कारण लगातार बारिश हो रही थी, बरसाना वासियों को बारिश से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। उस दिन से गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाने लगा था। गोपा अष्टमी के दिन देवराज इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उंगली से उतार कर नीचे रखा था। गोपाअष्टमी से जुड़ी एक और बात यह है कि एक बार राधा गाय चराने के लिए वन जाना चाहती थीं, लेकिन लडक़ी होने के कारण उनसे कोई गाय चराने को नहीं कहता था। लेकिन राधा गाय चराने के लिए ग्वाला का वेश धारण कर श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने वन चली गई। उस दिन को गोपाष्टïमी के रूप में मनाया जाता है।
कैसे करें गोपाष्टमी पर गाय का पूजन
गोपाष्टïमी पर गाय और उसके बछड़े को नहला-धुलाकर उसका श्रंगार किया जाता है। उसके पैरों में घुंघरु बांधकर अन्य आभूषण पहनाए जाते हैं। सुबह जल्दी उठकर गौमाता के चरण स्पर्श किये जाते हैं व उनकी सींग पर चुनरी बांधी जाती है। गौमाता की परिक्रमा कर उन्हें चराने के लिए बाहर ले जाया जाता है। इस दिन ग्वालों को तिलक लगाया जाता है व उन्हें दान भी दिया जाता है। गाय शाम को चर कर जब घर लौटे तो फिर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन अच्छा भोजन हरा चारा, गुड़ व हरा मटर खिलाया जाता है। जिन घरों में गाय नहीं होती है वो लोग गौशाला जाकर उनकी पूजा करते हैं, गंगाजल व फूल चढ़ाकर गुड़ भी खिलाते हैं। कुछ लोग इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और श्री कृष्ण के भजन गाते हैं।
इस प्रकार दीपावली के बाद आने वाले गोपाष्टमी त्यौहार को आप पूरी तरह से समझ गए होंगे। आइए 9 नवंबर 2024 शनिवार को पूरे देश के साथ हम भी गोपाष्टमी 2024 का पर्व मनाते हैं। Gopashtami :
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