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Agricultural Tips : खेती और किसान: सरसों की खेती में पाले का प्रबंधन

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Agricultural Tips : कृषि उत्पादन में मौसम की मुख्य भूमिका होती है। फसल उत्पादन की सफलता सामान्य मानसून एवं अनुकूल मौसम पर निर्भर करती है। जब तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात्रि में पाला पडऩे की आशंका रहती है। वैसे साधारणत: पाला गिरने का अनुमान वातावरण से लगाया जा सकता है। सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे. हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाये, दोपहर बाद अचानक हवा चलनी बन्द हो जाये तथा आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से ही हवा रुक जाये तो पाला पडऩे की आशंका अधिक रहती है।

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साधारणत: तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीत लहर चलती रहे, तो कोई नुकसान नहीं होता है। यदि हवा चलनी रुक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला अवश्य पड़ता है, जो सरसों की फसल के लिए बहुत नुकसानदायक है। पाले के प्रभाव से फसल को काफी क्षति का सामना करना पड़ता है। इससे फसल की उपज के साथ गुणवत्ता में भी कमी हो जाती है।

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जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम विविधता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसमें पाला भी मौसम परिवर्तन का उदाहरण है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनेक तकनीकियों का विकास किया जा रहा है। इनको सफलता असामान्य मौसम में बढ़ोतरी की वजह से कम हो रही है। मानसून के देरी से आने तथा साथ ही जल्दी खत्म होने की वजह से फसलों की पैदावार गिर जाती है। किसी भी फसल का कृषि उत्पादन अनुकूल मौसम पर निर्भर करता है। मौसम को विविधता का कृषि कार्यों से काफी गहरा संबंध होता है फसलों की पैदावार तथा गुणवत्ता में जलवायु परिवर्तन के कारण कमी पायी जाती है।
भारत में उगायी जाने वाली फसलों के उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का काफी असर पड़ता है। फसल के बीजों के अंकुरण से लेकर पकने तक एक उपयुक्त मौसम की जरूरत पड़ती है, जो कम से कम एक निश्चित अवधि तक होना चाहिए। यदि अंकुरण के समय उपयुक्त तापमान नहीं मिला तो अंकुरण ठीक से नहीं होता है इससे दाना बनने की अवधि में कमी आ जाती है, परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। इसके साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता मृदा प्रबंधन भी खराब हो जाती है।

पाले से बचाव के लिए भूमि का चयन:

पाले के प्रति संवेदनशील फसल उगाने के लिए ऐसी मृदा का चयन करना चाहिए, जो कि पाले के लिए जमाव मुक्त हो बड़े जलाशयों के पास वाले स्थान आमतौर पर पाले से कम ग्रस्त होते हैं। पानी के ऊपर की हवा, भूमि के ऊपर की हवा की तुलना में कम तेजी से ठंडी होती है। ठीक से स्थापित वायुरोधी वृक्ष जलवायु को अनुकूल बना देते हैं। इसके कारण फसल समय से पहले परिपक्व हो जाती है और पाले का जोखिम कम हो जाता है। दबे हुए इलाके में वन क्षेत्रों में कमी भी कम ठंडी हवाओं को पलायन करने की अनुमति देती है, जिस कारण पाले के जमाव के खतरे को कम किया जा सकता है।

मृदा प्रबंधन:

मृदा की अवस्था, फसल के ऊपर और नीचे के भागों को क्षति से बचाने के लिए एक उत्तरदायी कारक है ढीली मृदा की सतह ताप के चालन में कमी करती है। इसलिए रात के समय ढीली मृदा की सतह का तापमान जमी हुई मृदा की अपेक्षा कम होता है पाले से बचाने के लिए जमीन को नहीं जोतना चाहिए। मृदा की नमी भी कुछ प्रतिकार असर रखती है। जरूरत से ज्यादा गीली मृदा के होने पर सूर्य की ऊर्जा का अधिकतम भाग नमी वाष्पन में चला जाता है। इस कारण रात में फसल के लिए गर्मी कम उपलब्ध रहती है। दूसरी ओर जरूरत से ज्यादा सूखी मृदा भी ताप की कम चालक होती है, जिससे वह ऊर्जा की कम मात्रा को ही संचित कर सकती है और इसलिए यह पाले का परिणाम दे सकती है।

फसल का प्रबंधन ठीक हो:

फसलों की ऐसी प्रजातियों और किस्मों का चयन किया जाना चाहिए, जो कि पाले की जमावमुक्त अवधि के भीतर परिपक्व हो जाएं। पाला संवेदनशील फसलों को पालामुक्त अवधि के भीतर बोना और काटना चाहिए, ताकि फसल को क्षति से बचाया जा सके। इस प्रकिया के कारण फसल अपेक्षाकृत कम जोखिम के आसपास अपना जीवनकाल पूर्ण कर देती है।

पारदर्शी प्लास्टिक से बचाव:

पारदर्शी प्लास्टिक 85 95 प्रतिशत तक सूर्य की विकिरणों को संचारित कर उन्हें मृदा तक पहुंचा सकती है, परन्तु उन्हें वापस वातावरण में जाने नहीं देती। परिणामस्वरूप मृदा के तापमान में बढ़ोतरी होती है, जो पाले से सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसके विपरीत काली प्लास्टिक सूर्य की विकिरणों को अवशोषित करती है, जिससे मृदा का ताप बढ़ जाता है। यह पाले से सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

भूसे का सहारा:

भूसे का आवरण दिन में मृदा द्वारा अवशोषित की गई सूर्य की विकिरणों को मृदा से बाहर जाने से रोकता है। इसके कारण मृदा तापमान में बढ़ोतरी होती है, जो पाले से सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

पाले की आंशका हो तो सिंचाई करें:

जब पाला पडऩे की आशंका हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन काफी देरी तक गर्म रहती है, क्योंकि जब पानी बर्फ में जमता है, तो इस प्रकिया में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। यह 80 कैलोरी प्रति ग्राम के बराबर होती है। इस कारण मिट्टी के तापमान में बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार पर्याप्त होती है। नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की आशंका कम रहती है। सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ाया जा सकता है।

गंधक छिड़काव करें:

जब पाला पडऩे की आशंका हो, उन दिनों फसलों पर गंधक के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये । इसके लिए एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हैक्टर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कना चाहिए। इस छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की आशंका बनी रहे, तो गंधक के तेजाब को 15 दिनों के अंतराल में दोहराते रहें। सरसों, चना, गेहूं, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में गंधक तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है। यह पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है।

धुएं का आवरण बढ़ाता है तापमान:

धुएं का आवरण वातावरण के तापमान को बढ़ाने का काम करता है। अत: पिछली फसल के बचे हुए अवशेषों को रात में खेत के चारों तरफ जलाकर खेत पर धुएं का आवरण बनाकर भी फसल को पाले के नुकसान से बचाया जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण की दृष्टि से इस क्रिया को कम से कम प्रोत्साहित करना चाहिए।

पाले के प्रभाव से सरसों की फसल को क्षति:

– पाले के प्रभाव से पौधे का तना, पत्तियां, फूल व फलियां झुलस जाती हैं।
– क्षतिग्रस्त फलियों में विकसित हो रहे दाने झुलस जाते हैं। इसके कारण फलियों में दानों का विकास एवं नये दानों का बनना रुक जाता है।
– फूलों के झुलसने से पौधे में बंध्यता एवं परागकोष के विकास में ठहराव आ जाता है।
– झुलसने से पौधे की या झुलसे हुए भाग की मृत्यु भी हो जाती है।
– पाले से सरसों की उपज में 95 प्रतिशत तक की हानि हो जाती

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