कोरोना के नए वैरिएंट के बारे में जानने से पहले इन 5 बातों को जरूर समझ लें
Anjanabhagi
यूपी सहित पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव की खबरों के बीच कोरोना (COVID-19) भले ही मीडिया की नजरों से ओझल हो गया है लेकिन, खतरा अभी भी बरकरार है। इस बात की पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट करती है जिसमें कहा गया है कि 2021 बीत जाने के बावजूद 86 देशों की 40% से भी कम आबादी को वैक्सीन लग पाई है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली खबर अफ्रीकी महाद्वीप से है, जहां 85% आबादी को टीके की एक भी डोज नहीं लगी है।
क्यों जरूरी है नए वैरिएंट की जानकारी
वुहान (Wuhan) में पहली बार सामने आने के बाद से कोरोना वायरस (COVID-19) पिछले दो साल में कई बार अपना रूप बदल चुका है। फिलहाल, पूरी दुनिया ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट से जूझ रही है और भारत सहित 40 से ज्यादा देशों में एक अन्य वैरिएंट के पनपने की आशंका जाहिर की जा चुकी है। इसे स्टील्थ ओमिक्रॉन (Stealth Omicron) या बीए-टू (BA.2) वैरिएंट कहा जा रहा है।
शुरुआती जांच में सामने आया है कि बीए-टू (BA.2) वैरिएंट को RT-PCR टेस्ट में भी आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता। इसके अलावा, यह ओमिक्रॉन से भी ज्यादा तेजी से फैलता है और उससे कहीं ज्यादा घातक भी है।
यह गलती पड़ सकती है भारी
पिछले दो साल से लगातार दहशत और हाफ या फुल लॉकडाउन (Lockdown) जैसी चीजों से लोग ऊब चुके हैं। कोरोना (COVID-19) ने सिर्फ इंसानी जीवन को खतरे में डाला है बल्कि, पिछले दो सालों में इसने रोजगार और आर्थिक संकट के साथ मानसिक बीमारियों को भी बढ़ाया है। ऐसे में लोगों को लगने लगा है कि कोरोना से वह भले बच जाएं लेकिन, बेरोजगारी और बढ़ता आर्थिक संकट उन्हें जीते जी मार डालेगा।
तो क्या सरकारों को वीकेंड लॉकडाउन या लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहिए? या इसके अलावा भी इस महामारी से निपटने का कोई रास्ता है?
दुनियाभर के डॉक्टर इन 5 उपायों पर सहमत
इस बारे में दुनिया भर के डॉक्टर और विशेषज्ञ चिंतित हैं और कोरोना के लगातार बदलते स्वरूप के चलते वह भी इससे निपटने के रास्तों को तलाशने में जी जान से जुटे हुए हैं। फिलहाल, लगभग सभी विशेषज्ञ कुछ उपायों पर एकमत हैं:
1. दो साल में पहली बार भारत में कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसमिशन (Community Transmission) को आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। यानी, अब इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि संक्रमण के लिए कौन सा क्षेत्र या व्यक्ति जिम्मेदार है। हमें यह मानकर चलना होगा कि हमारे आस-पास मौजूद कोई भी व्यक्ति वायरस का संवाहक या कैरियर हो सकता है और हमें संक्रमित कर सकता है।
2. ऐसे में हर व्यक्ति को यह मानकर चलना चाहिए कि वह कोरोना पॉजिटिव है, जब तक कि डॉक्टर या जांच में उसे निगेटिव घोषित न कर दिया जाए। क्योंकि कोरोनो के किसी भी वैरिएंट से संक्रमित ज्यादातर लोग एसिम्टोमैटिक (Asymptotic) होते हैं। यानी, उनमें किसी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते। ऐसे लोग खुद को सामान्य मान लेते हैं और कोरोना प्रोटोकॉल (Corona Protocol) का पालन नहीं करते। इस लापरवाही के चलते वह दूसरों को संक्रमित करते चले जाते हैं। इससे बचने का एक ही उपाय है कि हर व्यक्ति मास्क पहने और जब तक जरूरी न हो भीड़-भाड़ से बचने की कोशिश की जाए।
3. टेस्टिंग की एकमात्र ऐसा उपाय है जिससे इस बीमारी के नये वैरिएंट या इसके बदलते स्वरूप के बारे में पता लगाया जा सकता है। ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट के समय पर पता चलने की वजह भी टेस्टिंग ही थी। दक्षिण अफ्रीका में डॉक्टरों को जैसे ही यह पता चला कि कोरोना से संक्रमित लोगों में मिला वायरस पिछले वैरिएंट से मेल नहीं खाता तो, वे सतर्क हो गए। तुरंत ही नमूनों की जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) की गई और ओमिक्रॉन (Omicron) का पता चल गया। यानी, टेस्टिंग को लगातार बढ़ाने और उस पर कड़ी निगरानी की जरूरत है ताकि, वायरस के म्यूटेट होते ही उसे डिटेक्ट किया जा सके और समय रहते उससे निपटने की रणनीति बनाई जा सके। इसके लिए जरूरी है कि जीनोम सिक्वेंसिंग जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं का तेजी से विस्तार किया जाए।
4. भारत सहित दुनियाभर से मिले आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) और टीकाकरण (Vaccination) दो ऐसे उपाय हैं जिससे महामारी के असर को कम किया जा सकता है। हर्ड इम्युनिटी उन लोगों में होती है जो कोरोना से संक्रमित होने के बाद ठीक हो जाते हैं जबकि, वैक्सीन से कृत्रिम इम्युनिटी पैदा की जाती है। इन दोनों ही तरह की इम्युनिटी वाले लोगों के नए या पुराने वैरिएंट से संक्रमित होने के बावजूद, गंभीर होने या जान गंवाने का खतरा कम होता है। यानी, ऐस लोग जो कोरोना से कभी संक्रमित नहीं हुए या जिन्होंने कोई टीका नहीं लगवाया है उनके लिए कोरोना के नए वैरिएंट से संक्रमित होने, गंभीर होने और जान गंवाने का जोखिम बढ़ जाता है। यानी, टीका लगवाना इस महामारी से लड़ने का वैज्ञानिक तरीका है जिसे दुनिया के हर देश को समझने और पालन करने की सख्त जरूरत है।
5. लॉकडाउन (Lockdown), वीकेंड लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू सहित सार्वजनिक जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करना, सार्वजनिक समारोहों पर रोक जैसे कदम उठाने की जरूरत तभी पड़ती है जब महामारी का संक्रमण बहुत तेजी से होने लगता है। इस तरह की पाबंदियों का मकसद भीड़-भाड़ को कम करने के साथ आम आदमी को महामारी के बढ़ते खतरे के प्रति आगाह करना भी होता है। ताकि, लोग यह समझें कि अब मामला गंभीर हो गया है।
चुनावी माहौल में आप भी न कर बैठें ये गलती
ओमिक्रॉन (Omicron) या कोरोना की तीसरी लहर के साथ अच्छी बात यह रही कि इसने अस्पतालों में मरीजों की भीड़ नहीं जमा होने दी और मरने वालों का आंकड़ा भी पिछले दो वैरिएंट से काफी कम रहा। हालांकि, जिस नये वैरिएंट (Stealth Omicron) की आशंका प्रकट की जा रही है उसके बारे में ऐसा नहीं कहा जा रहा है। संकेत साफ है कि कोरोना अभी भी हमारे बीच मौजूद है और इसका नया वैरिएंट हमें कभी भी अपनी गिरफ्त में ले सकता है।
इसका यह मतलब भी नहीं है कि कोरोना कभी नहीं जाएगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि वायरस के खत्म होने की एक अवधि होती है जो आमतौर पर तीन से पांच साल तक हो सकती है। इसके बाद वह अपने आप ही इतना कमजोर हो जाता है कि उसका असर सर्दी-जुकाम जैसे सामान्य लक्षणों तक सीमित हो जाता है। लेकिन, उस स्थिति की घोषणा भी वैज्ञानिक और डॉक्टर ही करेंगे। तब तक ऐहतियात और ऊपर बताये गये पांच रास्ते ही इससे बचने का उपाय हैं।
चुनावी माहौल और गहमागहमी के आवेश में कोरोना की अनदेखी की कीमत आने वाली सरकारों और जनता दोनों को चुकानी पड़ सकती है। ऐसे में यह याद रखना जरूरी है कि कोरोना अभी जिंदा है।