Sunday, 24 November 2024

Birth Anniversary : ‘सिंहासन खाली करो, जनता आती है’ के नारे ने जेपी को बना दिया लोकनायक

गांधी के देश में एक और महात्मा का उदय हुआ था, जिसे जयप्रकाश नारायण के नाम से जाना जाता है।…

Birth Anniversary : ‘सिंहासन खाली करो, जनता आती है’ के नारे ने जेपी को बना दिया लोकनायक

गांधी के देश में एक और महात्मा का उदय हुआ था, जिसे जयप्रकाश नारायण के नाम से जाना जाता है। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व ने उन्हें ‘लोकनायक’ बना दिया। देश की आजादी से पहले गांधी जी के नमक आंदोलन ने अंग्रेजी हूकुमत की चूलें हिलाकर रख दी थीं। ठीक वैसा ही एक आंदोलन आजादी के बाद राजनीतिक अराजकता के खिलाफ था, जिसकी अगुवाई जयप्रकाश नारायण ने की थी। बिहार से उठी आंदोलन की छोटी सी चिंगारी पूरे देश में ज्वाला बनकर भड़क उठी। देशभर के युवा जयप्रकाश नारायण के पीछे चल पड़े। यद्यपि वह आजादी के आंदोलन में भी बेहद सक्रिय थे, लेकिन आजादी के बाद उनके आंदोलन ने उन्हें लोकनायक बना दिया। जब सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बाद 1974 में ‘सिंहासन खाली करो, जनता आती है’ के नारे के साथ वे मैदान में उतरे तो सारा देश उनके पीछे चल पड़ा, जैसे किसी संत महात्मा के पीछे चल रहा हो।

Birth Anniversary :

11 अक्टूबर, 1902 को जन्मे जयप्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ भी उनके नाम पर है।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण की समस्त जीवन यात्रा संघर्ष तथा साधना से भरपूर रही। उसमें अनेक पड़ाव आए, उन्होंने भारतीय राजनीति को ही नहीं, बल्कि आम जनजीवन को एक नई दिशा दी, नए मानक गढ़े। जैसे- भौतिकवाद से अध्यात्म, राजनीति से सामाजिक कार्य तथा जबरन सामाजिक सुधार से व्यक्तिगत दिमाग में परिवर्तन। वे विदेशी सत्ता से देशी सत्ता, देशी सत्ता से व्यवस्था, व्यवस्था से व्यक्ति में परिवर्तन और व्यक्ति में परिवर्तन से नैतिकता के पक्षधर थे। वे समूचे भारत में ग्राम स्वराज्य का सपना देखते थे और उसे आकार देने के लिए अथक प्रयत्न भी किए।

जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण जीवन भारतीय समाज की समस्याओं के समाधान के लिए प्रकट हुआ, एक अवतार की तरह, एक मसीहा की तरह। वे भारतीय राजनीति में सत्ता की कीचड़ में केवल सेवा के कमल कहलाने में विश्वास रखते थे। उन्होंने भारतीय समाज के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन सार्वजनिक जीवन में जिन मूल्यों की स्थापना वे करना चाहते थे, वे मूल्य बहुत हद तक देश की राजनीतिक पार्टियों को स्वीकार्य नहीं थे। क्योंकि ये मूल्य राजनीति के तत्कालीन ढांचे को चुनौती देने के साथ-साथ स्वार्थ एवं पदलोलुपता की स्थितियों को समाप्त करने के पक्षधर थे, राष्ट्रीयता की भावना एवं नैतिकता की स्थापना उनका लक्ष्य था, राजनीति को वे सेवा का माध्यम बनाना चाहते थे।

Birth Anniversary :

महात्मा गांधी जयप्रकाश की साहस और देशभक्ति के प्रशंसक थे। उनका हजारीबाग जेल से भागना काफी चर्चित रहा और इसके कारण से वे असंख्य युवकों के सम्राट बन चुके थे। वे अत्यंत भावुक थे, लेकिन महान क्रांतिकारी भी थे। वे संयम, अनुशासन और मर्यादा के पक्षधर थे। इसलिए कभी भी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन नहीं किया। विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा और आर्थिक तंगी ने भी उनका मनोबल नहीं तोड़ा। यह उनके किसी भी कार्य की प्रतिबद्धता को ही निरूपित करता था, उनके दृढ़ विश्वास को परिलक्षित करता है।

जयप्रकाश नारायण को 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इंदिरा गांधी को पदच्युत करने के लिए उन्होंने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नामक आंदोलन चलाया। लोकनायक ने कहा कि संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल हैं, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रांति होती है। संपूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जयप्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में ज्वाला बनकर भड़क उठी थी। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालमुनि चौबे, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।

Birth Anniversary :

लोकनायक के शब्द को असलियत में चरितार्थ करने वाले जयप्रकाश नारायण अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही, इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यंत शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूंज रहा है। भले ही उनके नारे पर राजनीति करने वाले उनके सिद्धान्तों को भूल रहे हों, क्योंकि उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा एवं आन्दोलन जिन उद्देश्यों एवं बुराइयों को समाप्त करने के लिये किया था, वे सारी बुराइयां इन राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं में व्याप्त है।

संपूर्ण क्रांति के आह्वान में उन्होंने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना आदि ऐसी चीजें हैं, जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं, जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, ‘सम्पूर्ण क्रांति’ आवश्यक है। इसलिए आज एक नयी सम्पूर्ण क्रांति की जरूरत है। यह क्रांति व्यक्ति सुधार से प्रारंभ होकर व्यवस्था सुधार पर केन्द्रित हो। कुर्सी पर कोई भी बैठे, लेकिन मूल्य प्रतिष्ठापित होने जरूरी है। ऐसा करके ही हम एक महान लोकनायक को सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएंगे।

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