जाने 40 साल पुराने आम के बागों में कैसे होगी दोगुनी कमाई
जीर्णोद्धार तकनीक में पेड़ों की वैज्ञानिक तरीके से छंटाई की जाती है। इससे न केवल पेड़ को पर्याप्त धूप और हवा मिलती है, बल्कि नई और स्वस्थ शाखाएं भी निकलती हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि इस तकनीक को अपनाने से फलों का आकार और गुणवत्ता बेहतर होती है और पैदावार लगभग दोगुनी तक हो सकती है।

देशभर में हजारों किसान पुराने आम के बागों की घटती पैदावार से परेशान रहते हैं। आमतौर पर जब बाग 40 साल से अधिक पुराने हो जाते हैं तो उनमें फल आना कम हो जाता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसे में किसान मजबूरी में पेड़ों को कटवा देते हैं। लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं है। भारतीय आम अनुसंधान संस्थान (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित ‘आम जीर्णोद्धार तकनीक’ से पुराने और अनुत्पादक पेड़ों को फिर से जवान और फलदार बनाया जा सकता है।
क्यों घटती है पुराने बागों की पैदावार?
बता दें कि विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ आम के पेड़ों की शाखाएं बहुत घनी हो जाती हैं, जिससे पेड़ के अंदरूनी हिस्सों तक धूप और ताजी हवा नहीं पहुंच पाती। प्रकाश की कमी से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।
कब और कैसे करें आम के पेड़ों का कायाकल्प?
आम के पेड़ों के कायाकल्प के लिए 15 दिसंबर से 15 जनवरी का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। जिस पेड़ की 3-4 मजबूत और बाहर की ओर बढ़ने वाली मुख्य शाखाओं को चुनें। इन्हें आधार से लगभग 2 फीट छोड़कर काट दें। बाकी अनावश्यक, सूखी और घनी शाखाओं को पूरी तरह हटा दें। पेड़ की ऊंचाई जमीन से 3 से 4 मीटर तक सीमित रखें। शाखा काटते समय पहले नीचे हल्का चीरा और फिर ऊपर से कट लगाएं, ताकि छाल न उखड़े।
कटाई के बाद दवा का लेप जरूरी
छंटाई के बाद कटे हुए हिस्सों पर संक्रमण का खतरा रहता है। इससे बचाव के लिए 1 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 250 ग्राम अरंडी के तेल का गाढ़ा घोल लगाएं। जैविक विकल्प के रूप में ताजा गाय का गोबर और पीली मिट्टी का पेस्ट भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लेप फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से सुरक्षा देता है।
नई कोपलों की थिनिंग जरूरी
मार्च-अप्रैल में जब नई कोपलें निकलने लगें, तब विरलीकरण (थिनिंग) करें। केवल मजबूत और सही दिशा में बढ़ने वाली टहनियों को रखें और आपस में टकराने वाली कमजोर टहनियों को हटा दें।
पोषण और सिंचाई से आएगी नई जान
बता दें कि कटाई के बाद पेड़ों को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। फरवरी में प्रति पेड़ में 120 किलो सड़ी गोबर की खाद, 3 किलो यूरिया, 1.5 किलो फॉस्फोरस, 1.5 किलो पोटाश डालें। नीम की खली डालना भी फायदेमंद होता है। इसके बाद हर 15 दिन में नियमित सिंचाई करें और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर छिड़काव करते रहें।
इंटरक्रॉपिंग से अतिरिक्त कमाई
जीर्णोद्धार के बाद बाग में पर्याप्त धूप पहुंचने लगती है। जब तक आम के पेड़ पूरी तरह फल देने लगते हैं (करीब 2–3 साल), तब तक किसान खाली जगह में सब्जियां, दलहन या औषधीय पौधे उगाकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। इससे बाग की देखभाल का खर्च भी आसानी से निकल जाता है।
सरकार दे रही है सब्सिडी
पुराने बागों के जीर्णोद्धार को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
50–60 किलो तक फल दे रहे पुराने पेड़
विशेषज्ञों के अनुसार, इस तकनीक को अपनाने के बाद जो पेड़ पहले बेकार हो चुके थे, वे औसतन 50 से 60 किलो प्रति पेड़ तक फल देने लगते हैं। थोड़े से धैर्य और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ किसान अपने पुराने आम के बाग को फिर से मुनाफे का सौदा बना सकते हैं।
देशभर में हजारों किसान पुराने आम के बागों की घटती पैदावार से परेशान रहते हैं। आमतौर पर जब बाग 40 साल से अधिक पुराने हो जाते हैं तो उनमें फल आना कम हो जाता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसे में किसान मजबूरी में पेड़ों को कटवा देते हैं। लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं है। भारतीय आम अनुसंधान संस्थान (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित ‘आम जीर्णोद्धार तकनीक’ से पुराने और अनुत्पादक पेड़ों को फिर से जवान और फलदार बनाया जा सकता है।
क्यों घटती है पुराने बागों की पैदावार?
बता दें कि विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ आम के पेड़ों की शाखाएं बहुत घनी हो जाती हैं, जिससे पेड़ के अंदरूनी हिस्सों तक धूप और ताजी हवा नहीं पहुंच पाती। प्रकाश की कमी से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।
कब और कैसे करें आम के पेड़ों का कायाकल्प?
आम के पेड़ों के कायाकल्प के लिए 15 दिसंबर से 15 जनवरी का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। जिस पेड़ की 3-4 मजबूत और बाहर की ओर बढ़ने वाली मुख्य शाखाओं को चुनें। इन्हें आधार से लगभग 2 फीट छोड़कर काट दें। बाकी अनावश्यक, सूखी और घनी शाखाओं को पूरी तरह हटा दें। पेड़ की ऊंचाई जमीन से 3 से 4 मीटर तक सीमित रखें। शाखा काटते समय पहले नीचे हल्का चीरा और फिर ऊपर से कट लगाएं, ताकि छाल न उखड़े।
कटाई के बाद दवा का लेप जरूरी
छंटाई के बाद कटे हुए हिस्सों पर संक्रमण का खतरा रहता है। इससे बचाव के लिए 1 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 250 ग्राम अरंडी के तेल का गाढ़ा घोल लगाएं। जैविक विकल्प के रूप में ताजा गाय का गोबर और पीली मिट्टी का पेस्ट भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लेप फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से सुरक्षा देता है।
नई कोपलों की थिनिंग जरूरी
मार्च-अप्रैल में जब नई कोपलें निकलने लगें, तब विरलीकरण (थिनिंग) करें। केवल मजबूत और सही दिशा में बढ़ने वाली टहनियों को रखें और आपस में टकराने वाली कमजोर टहनियों को हटा दें।
पोषण और सिंचाई से आएगी नई जान
बता दें कि कटाई के बाद पेड़ों को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। फरवरी में प्रति पेड़ में 120 किलो सड़ी गोबर की खाद, 3 किलो यूरिया, 1.5 किलो फॉस्फोरस, 1.5 किलो पोटाश डालें। नीम की खली डालना भी फायदेमंद होता है। इसके बाद हर 15 दिन में नियमित सिंचाई करें और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर छिड़काव करते रहें।
इंटरक्रॉपिंग से अतिरिक्त कमाई
जीर्णोद्धार के बाद बाग में पर्याप्त धूप पहुंचने लगती है। जब तक आम के पेड़ पूरी तरह फल देने लगते हैं (करीब 2–3 साल), तब तक किसान खाली जगह में सब्जियां, दलहन या औषधीय पौधे उगाकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। इससे बाग की देखभाल का खर्च भी आसानी से निकल जाता है।
सरकार दे रही है सब्सिडी
पुराने बागों के जीर्णोद्धार को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
50–60 किलो तक फल दे रहे पुराने पेड़
विशेषज्ञों के अनुसार, इस तकनीक को अपनाने के बाद जो पेड़ पहले बेकार हो चुके थे, वे औसतन 50 से 60 किलो प्रति पेड़ तक फल देने लगते हैं। थोड़े से धैर्य और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ किसान अपने पुराने आम के बाग को फिर से मुनाफे का सौदा बना सकते हैं।












