जाने 40 साल पुराने आम के बागों में कैसे होगी दोगुनी कमाई

जीर्णोद्धार तकनीक में पेड़ों की वैज्ञानिक तरीके से छंटाई की जाती है। इससे न केवल पेड़ को पर्याप्त धूप और हवा मिलती है, बल्कि नई और स्वस्थ शाखाएं भी निकलती हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि इस तकनीक को अपनाने से फलों का आकार और गुणवत्ता बेहतर होती है और पैदावार लगभग दोगुनी तक हो सकती है।

Mango production
आम की पैदावार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar25 Dec 2025 01:13 PM
bookmark

देशभर में हजारों किसान पुराने आम के बागों की घटती पैदावार से परेशान रहते हैं। आमतौर पर जब बाग 40 साल से अधिक पुराने हो जाते हैं तो उनमें फल आना कम हो जाता है या पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसे में किसान मजबूरी में पेड़ों को कटवा देते हैं। लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं है। भारतीय आम अनुसंधान संस्थान (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित ‘आम जीर्णोद्धार तकनीक’ से पुराने और अनुत्पादक पेड़ों को फिर से जवान और फलदार बनाया जा सकता है।

क्यों घटती है पुराने बागों की पैदावार?

बता दें कि विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ आम के पेड़ों की शाखाएं बहुत घनी हो जाती हैं, जिससे पेड़ के अंदरूनी हिस्सों तक धूप और ताजी हवा नहीं पहुंच पाती। प्रकाश की कमी से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।

कब और कैसे करें आम के पेड़ों का कायाकल्प?

आम के पेड़ों के कायाकल्प के लिए 15 दिसंबर से 15 जनवरी का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। जिस पेड़ की 3-4 मजबूत और बाहर की ओर बढ़ने वाली मुख्य शाखाओं को चुनें। इन्हें आधार से लगभग 2 फीट छोड़कर काट दें। बाकी अनावश्यक, सूखी और घनी शाखाओं को पूरी तरह हटा दें। पेड़ की ऊंचाई जमीन से 3 से 4 मीटर तक सीमित रखें। शाखा काटते समय पहले नीचे हल्का चीरा और फिर ऊपर से कट लगाएं, ताकि छाल न उखड़े।

कटाई के बाद दवा का लेप जरूरी

छंटाई के बाद कटे हुए हिस्सों पर संक्रमण का खतरा रहता है। इससे बचाव के लिए 1 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 250 ग्राम अरंडी के तेल का गाढ़ा घोल लगाएं। जैविक विकल्प के रूप में ताजा गाय का गोबर और पीली मिट्टी का पेस्ट भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लेप फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से सुरक्षा देता है।

नई कोपलों की थिनिंग जरूरी

मार्च-अप्रैल में जब नई कोपलें निकलने लगें, तब विरलीकरण (थिनिंग) करें। केवल मजबूत और सही दिशा में बढ़ने वाली टहनियों को रखें और आपस में टकराने वाली कमजोर टहनियों को हटा दें।

पोषण और सिंचाई से आएगी नई जान

बता दें कि कटाई के बाद पेड़ों को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। फरवरी में प्रति पेड़ में 120 किलो सड़ी गोबर की खाद, 3 किलो यूरिया, 1.5 किलो फॉस्फोरस, 1.5 किलो पोटाश डालें। नीम की खली डालना भी फायदेमंद होता है। इसके बाद हर 15 दिन में नियमित सिंचाई करें और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर छिड़काव करते रहें।

इंटरक्रॉपिंग से अतिरिक्त कमाई

जीर्णोद्धार के बाद बाग में पर्याप्त धूप पहुंचने लगती है। जब तक आम के पेड़ पूरी तरह फल देने लगते हैं (करीब 2–3 साल), तब तक किसान खाली जगह में सब्जियां, दलहन या औषधीय पौधे उगाकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं। इससे बाग की देखभाल का खर्च भी आसानी से निकल जाता है।

सरकार दे रही है सब्सिडी

पुराने बागों के जीर्णोद्धार को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

50–60 किलो तक फल दे रहे पुराने पेड़

विशेषज्ञों के अनुसार, इस तकनीक को अपनाने के बाद जो पेड़ पहले बेकार हो चुके थे, वे औसतन 50 से 60 किलो प्रति पेड़ तक फल देने लगते हैं। थोड़े से धैर्य और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ किसान अपने पुराने आम के बाग को फिर से मुनाफे का सौदा बना सकते हैं।

अगली खबर पढ़ें

यादव समाज की नाराजगी के बीच इंद्रेश उपाध्याय ने तोड़ी चुप्पी, मांगी माफी

उन्होंने अपील करते हुए कहा कि “भारत के सभी यादव मेरे अपने हैं - हम एक ही संस्कृति की कड़ी हैं और भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं।” उपाध्याय ने दोहराया कि यदि उनके वक्तव्य से किसी को भी दुख पहुंचा है, तो वह बिना किसी संकोच के क्षमा मांगते हैं।

यादव समाज से माफी मांगते इंद्रेश उपाध्याय
यादव समाज से माफी मांगते इंद्रेश उपाध्याय
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar25 Dec 2025 10:30 AM
bookmark

Indresh Upadhyay : वृंदावन के चर्चित कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने यदुवंश को लेकर सामने आए कथित विवादित बयान पर यादव समाज से सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए अपनी बात साफ की है। सोशल मीडिया पर जारी भावुक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी भी समाज या समुदाय की भावनाओं को आहत करना नहीं था। उपाध्याय ने स्पष्ट किया कि जिस प्रसंग को लेकर विवाद खड़ा हुआ, वह करीब 4–5 साल पुरानी कथा से जुड़ा है, जिसके चुनिंदा हिस्से हाल में वायरल होकर गलत अर्थों में लिए गए। उन्होंने कहा कि यदि उनके शब्दों से यादव समाज को पीड़ा पहुंची है, तो वह दिल से क्षमाप्रार्थी हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया कि यादव समाज के प्रति उनके मन में हमेशा सम्मान रहा है और आगे भी कायम रहेगा।

मेरे किसी शब्द से पीड़ा हुई तो मैं क्षमा चाहता हूं - इंद्रेश उपाध्याय

वीडियो संदेश में कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने साफ किया कि उनके कथन का अभिप्राय किसी भी समाज को छोटा दिखाने या उसकी भावनाओं को आहत करने का कभी नहीं रहा। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि “भारत के सभी यादव मेरे अपने हैं - हम एक ही संस्कृति की कड़ी हैं और भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं।” उपाध्याय ने दोहराया कि यदि उनके वक्तव्य से किसी को भी दुख पहुंचा है, तो वह बिना किसी संकोच के क्षमा मांगते हैं। अपनी सफाई में उन्होंने यह भी कहा कि कई बार कुछ लोग पुराने संदर्भों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, जिससे समाज में अनावश्यक तनाव और विभाजन की स्थिति बनती है। उन्होंने बताया कि यादव समाज में उनके कई मित्र और परिचित हैं, जिनके प्रति उनके मन में हमेशा आदर रहा है। साथ ही, यादव समाज के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वह उसकी परंपरा और योगदान का सम्मान करते हैं और आगे भी करते रहेंगे।

क्या है पूरा विवाद?

यह विवाद तब भड़का जब इंद्रेश उपाध्याय की करीब 4–5 साल पुरानी कथा का एक वीडियो क्लिप अचानक सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वायरल अंश में यदुवंश और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े संदर्भ को लेकर कथित तौर पर आपत्तिजनक अर्थ निकाले गए, जिसके बाद मथुरा समेत उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में यादव समाज के बीच नाराजगी उभरकर सामने आई। समाज के विभिन्न संगठनों और प्रतिनिधियों ने बयान को इतिहास व शास्त्रीय संदर्भों के विपरीत बताते हुए आपत्ति दर्ज कराई और सार्वजनिक रूप से माफी की मांग तेज कर दी। कुछ संगठनों ने यह संकेत भी दिया कि यदि माफी नहीं मांगी गई, तो मामला कानूनी कार्रवाई तक जा सकता है, जिससे विवाद ने और तूल पकड़ लिया। Indresh Upadhyay

अगली खबर पढ़ें

भारत के मुख्य न्यायधीश ने बताया मामला निर्माता तथा राष्ट्र निर्माता का फर्क

ऐसे लोग केवल वर्तमान मामले पर ध्यान केन्द्रित करके मामला निर्माता बन जाते हैं। दूसरे प्रकार के वकील देश को हमेशा सर्वोच्च मानकर देश के हित में काम करते हैं। ऐसे वकील सही मायनों में राष्ट्र निर्माता होते हैं। उन्होंने कहा कि देश को मामला निर्माता नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माता वकीलों की आवश्यकता है।

जस्टिस सूर्यकान्त
जस्टिस सूर्यकान्त
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar24 Dec 2025 06:28 PM
bookmark

Justice Suryakant : भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) जस्टिस सूर्यकांत ने बहुत बड़ी बात कही है। एक समारोह में युवा वकीलों को संबोधित करते हुए भारत के (CJI) जस्टिस सूर्यकांत ने मामला निर्माता तथा राष्ट्र निर्माता का फर्क युवा वकीलों को समझाया। समारोह में धाराप्रवाह बोलते हुए भारत के (CJI) जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी कहा कि भारत का संविधान पत्थर पर उकेरा गया महज एक स्मारक नहीं है बल्कि एक विलक्षण खाका है।

मामला निर्माता तथा राष्ट्र निर्माता में बड़ा अंतर है

पंजाब प्रदेश के पटियाला में राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय स्थापित है। पटियाला के राजीव गाँधी राष्ट्रीय विधि विश्व विद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए भारत के CJI जस्टिस सूर्यकांत ने बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि वकील दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के वकील किसी केस अथवा मामले को जीतने के लिए तैयार करते हैं। ऐसे लोग केवल वर्तमान मामले पर ध्यान केन्द्रित करके मामला निर्माता बन जाते हैं। दूसरे प्रकार के वकील देश को हमेशा सर्वोच्च मानकर देश के हित में काम करते हैं। ऐसे वकील सही मायनों में राष्ट्र निर्माता होते हैं। उन्होंने कहा कि देश को मामला निर्माता नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माता वकीलों की आवश्यकता है।

हमारा संविधान महज एक स्मारक नहीं है

भारत के CJI जस्टिस सूर्यकांत ने जोर देकर कहा कि भारत का संविधान पत्थर पर उकेरा गया महज स्मारक नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान एक विलक्षण खाका है। न्यायालय इसकी व्याख्या करते हैं तथा भारत की तमाम बड़ी संस्थाएं इसे संरचना प्रदान करती हैं। हमारे युवा वकीलों के कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि उन्हें ही यह तय करना है कि आगे चलकर भारत कैसा राष्ट्र बनेगा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक युवा वकील को राष्ट्र निर्माता बनने की दिशा में आगे बढऩा है।

वकील की भूमिका के विषय में जरूर सोच लें

भारत के CJI जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब भी उन्हें इतने युवा और ऊर्जावान श्रोत्राओं को संबोधित करने का सौभाग्य मिलता है, "मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं मानता हूं कि आप में से अधिकतर लोग वकील बनेंगे।" न्यायमूर्ति कांत ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब कई छात्रों ने कानून का अध्ययन करने का विकल्प चुना, तो उन्होंने शायद खुद को ऐतिहासिक मामलों में बहस करते हुए. जटिल अनुबंधों का मसौदा तैयार करते हुए या शायद, एक दिन संवैधानिक पीठों को संबोधित करते हुए कल्पना की होगी, जो कि सराहनीय महत्वाकांक्षाएं हैं और उनमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा, "लेकिन मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप रुके और एक व्यापक, अधिक स्थायी प्रश्न पर विचार करें - भारत जैसे राष्ट्र में, उसके इतिहास के इस मोड़ पर, एक वकील की क्या भूमिका है? मैं इस पर जोर देता हूं, क्योंकि मैं भली-भांति जानता हूं कि हम अक्सर कानूनी पेशे को एक संकीर्ण प्रक्रिया तक सीमित कर देते हैं - मुकदमे जीतना, घंटों का हिसाब रखना, प्रक्रिया में महारत हासिल करना।" Justice Suryakant