भारत में दागी गई “प्रलय” मिसाइल की गूँज पाकिस्तान तक पहुंची

DRDO के वैज्ञानिकों ने एक ही लांचर से एक के बाद एक ‘प्रलय’ मिसाइल दाग कर यह साबित कर दिया है कि भारत के पास युद्ध में ‘प्रलय’ (कोहराम) मचाने वाली बहुत बड़ी शक्ति आ गई है। भारत में दागी गई ‘प्रलय’ मिसाइल की गूँज पाकिस्तान से लेकर चीन तथा अमेरिका तक में महसूस की गई है।

प्रलय मिसाइल
प्रलय मिसाइल
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar31 Dec 2025 05:29 PM
bookmark

National News : बुधवार 31 दिसंबर 2025 का दिन भारत के स्वर्णिम इतिहास का एक और शानदार दिन बन गया। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन DRDO ने बुधवार को बड़ा इतिहास रच दिया। DRDO के वैज्ञानिकों ने एक ही लांचर से एक के बाद एक  ‘प्रलय’ मिसाइल दाग कर यह साबित कर दिया है कि भारत के पास युद्ध में  ‘प्रलय’  (कोहराम) मचाने वाली बहुत बड़ी शक्ति आ गई है। भारत में दागी गई ‘प्रलय’ मिसाइल की गूँज पाकिस्तान से लेकर चीन तथा अमेरिका तक में महसूस की गई है।

DRDO की ‘प्रलय’ मिसाइल बन गई बड़ी मिसाल

आपको बता दें कि भारत के DRDO की ‘प्रलय’ मिसाइल परीक्षण में शत-प्रतिशत सफल साबित हुई है। DRDO ने बुधवार को ओडिशा के पास सुबह करीब 10:30 बजे एक ही लॉन्चर से दो प्रलय मिसाइलों को बहुत कम अंतराल में लगातार (सल्वो लॉन्च) दागा। यह परीक्षण यूजर ट्रायल का हिस्सा था। दोनों मिसाइलें तय ट्रैजेक्टरी पर उड़ीं और सभी उद्देश्यों को पूरा किया। चांदीपुर के इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज के ट्रैकिंग सेंसरों और समुद्र में तैनात जहाज पर लगे टेलीमेट्री सिस्टम ने इसकी पुष्टि की।

क्यों खास है भारत की प्रलय मिसाइल 

भारत की प्रलय मिसाइल एक पूरी तरह स्वदेशी क्वासी-बैलिस्टिक मिसाइल है। प्रलय मिसाइल सॉलिड प्रोपेलेंट से चलती है और अत्याधुनिक गाइडेंस और नेविगेशन सिस्टम से लैस है, प्रलय मिसाइल बहुत सटीक निशाना लगा सकती है। इसकी खासियत यह है कि यह अलग-अलग तरह के वॉरहेड ले जा सकती है और विभिन्न लक्ष्यों पर हमला कर सकती है।

भारत के रक्षा मंत्री ने ‘प्रलय’ पर दी बधाई

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को ‘प्रलय’ के सफल परीक्षण पर बधाई दी है। अपने बधाई संदेश के द्वारा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO, वायुसेना, थलसेना, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और उद्योग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि लगातार दो मिसाइलों का सफल प्रक्षेपण प्रलय की विश्वसनीयता साबित करता है। DRDO चेयरमैन और रक्षा अनुसंधान एवं विकास सचिव डॉ. समीर वी कामत ने भी टीमों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि यह सफलता दर्शाती है कि प्रलय मिसाइल जल्द ही सेना में शामिल होने के लिए तैयार है। यह परीक्षण भारतीय रक्षा क्षमता में एक और महत्वपूर्ण कदम है। प्रलय मिसाइल सेना को दुश्मन के गहरे और महत्वपूर्ण ठिकानों पर तेज और सटीक हमला करने की नई ताकत देगी। National News

अगली खबर पढ़ें

1600 साल से धंसने से बचा वेनिस, जानिए लकड़ी की अनोखी नींव का रहस्य

वेनिस की नींव सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि प्रकृति और इंसानी समझ का अद्भुत मेल है। बिना आधुनिक विज्ञान पढ़े, उस दौर के कारीगरों ने ऐसा निर्माण किया जो आज भी दुनिया के लिए प्रेरणा बना हुआ है। यह शहर साबित करता है कि टिकाऊ विकास सिर्फ नई तकनीक से नहीं, बल्कि प्रकृति को समझकर भी हासिल किया है।

Wooden foundation
लकड़ी से बनी नींव (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar31 Dec 2025 04:24 PM
bookmark

दुनिया में जहां आधुनिक इमारतें स्टील और कंक्रीट की नींव पर खड़ी की जाती हैं, वहीं इटली का ऐतिहासिक शहर वेनिस पिछले करीब 1600 सालों से लकड़ी के खंभों पर टिका हुआ है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यही अनोखी इंजीनियरिंग आज भी इस शहर को धंसने से बचाए हुए है। 

वेनिस की नींव में लाखों छोटे-छोटे लकड़ी के खंभे ज़मीन में गाड़े गए हैं। इन्हें इस तरह लगाया गया है कि उनकी नुकीली नोक नीचे की ओर हो। यह पूरा ढांचा किसी “उल्टे जंगल” जैसा दिखता है, जो पानी, मिट्टी और लकड़ी के संतुलन से शहर को संभाले हुए है।

कैसे बनाई गई थी यह अनोखी नींव?

बता दें कि इतिहासकारों और इंजीनियरों के अनुसार, वेनिस में नींव बनाने की प्रक्रिया बेहद वैज्ञानिक थी, भले ही उस समय आधुनिक इंजीनियरिंग का ज्ञान मौजूद न रहा हो। एक वर्ग मीटर क्षेत्र में औसतन 9 लकड़ी के खंभे गाड़े जाते थे। खंभे लार्च, ओक, एल्डर, पाइन, स्प्रूस और एल्म जैसे पेड़ों से बनाए जाते थे। इनकी लंबाई 1 मीटर से लेकर 3.5 मीटर तक होती थी, खंभों को बाहर से केंद्र की ओर गोलाकार पैटर्न में लगाया जाता था, इसके ऊपर लकड़ी की क्षैतिज बीमें रखी जाती थीं, फिर पत्थरों से इमारतों का निर्माण किया जाता था।

चट्टान तक नहीं पहुंचते, फिर भी मज़बूत क्यों?

दिलचस्प बात यह है कि वेनिस के ये खंभे ज़मीन की ठोस चट्टान तक नहीं पहुंचते। इसके बावजूद वे इमारतों को संभालते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका कारण है मिट्टी और खंभों के बीच पैदा होने वाला घर्षण। जब बहुत सारे खंभे पास-पास गाड़े जाते हैं, तो मिट्टी उन्हें कसकर पकड़ लेती है। इसी सिद्धांत को आज भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में बेहद अहम माना जाता है।

लकड़ी सड़ती क्यों नहीं?

आमतौर पर पानी में रहने से लकड़ी खराब हो जाती है, लेकिन वेनिस में ऐसा नहीं हुआ। शोध के मुताबिक मिट्टी लकड़ी को ऑक्सीजन से दूर रखती है, पानी लकड़ी की कोशिकाओं का आकार बनाए रखता है, बैक्टीरिया का असर बहुत धीमा होता है। हालांकि कुछ इमारतें धीरे-धीरे धंस रही हैं। उदाहरण के तौर पर, फ्रारी चर्च का घंटाघर हर साल लगभग 1 मिलीमीटर नीचे जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरा सिस्टम अभी भी स्थिर है।

आधुनिक इंजीनियरिंग भी हैरान

बता दें कि स्विट्ज़रलैंड की ईटीएच यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अलेक्ज़ांडर प्यूज़्रिन के मुताबिक,आज की आधुनिक नींवों को आमतौर पर सिर्फ 50 साल की गारंटी के साथ बनाया जाता है, जबकि वेनिस की लकड़ी की नींव 1600 साल से खड़ी है। उनका कहना है कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर है जहां घर्षण-आधारित लकड़ी की नींव इतने बड़े पैमाने पर सफल रही है।

आज फिर लौट रही है लकड़ी

बता दें कि 19वीं और 20वीं सदी में कंक्रीट ने लकड़ी की जगह ले ली थी, लेकिन अब हाल के वर्षों में लकड़ी को फिर से एक आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्री के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि लकड़ी कार्बन को अवशोषित करती है, यह भूकंप-रोधी होती है, पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प है।

अगली खबर पढ़ें

जाने गांधी परिवार और धार्मिक विविधता की कहानी

नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास केवल सत्ता और राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके निजी रिश्ते भी भारतीय समाज की विविधता और बदलते सामाजिक मूल्यों को दर्शाते रहे हैं।

Gandhi family
गांधी परिवार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar30 Dec 2025 02:30 PM
bookmark

देश की राजनीति में दशकों तक अहम भूमिका निभाने वाला नेहरू-गांधी परिवार एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह राजनीतिक नहीं, बल्कि निजी जीवन से जुड़ी एक खबर है। प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा के बेटे रेहान वाड्रा की सगाई की खबरों के बाद गांधी परिवार से जुड़े रिश्तों और उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि को लेकर दिलचस्प चर्चा शुरू हो गई है।

इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से विवाह किया था, जो पारसी समुदाय से आते थे। उस दौर में यह विवाह सामाजिक समरसता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया। यह रिश्ता अपने समय से आगे की सोच को दर्शाता था।

राजीव गांधी और सोनिया गांधी

बता दें कि इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी ने इटली में जन्मीं सोनिया गांधी से विवाह किया। सोनिया गांधी एक रोमन कैथोलिक ईसाई परिवार से थीं। बाद में उन्होंने भारतीय नागरिकता ली और भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई।

संजय गांधी और मेनका गांधी

बता दें कि संजय गांधी और मेनका गांधी की शादी भी काफी चर्चा में रही है। मेनका गांधी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था और विवाह के बाद भी उन्होंने हिंदू परंपराओं का पालन किया। यह रिश्ता राजनीतिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण माना गया है।

प्रियंका गांधी वाड्रा और रॉबर्ट वाड्रा

बता दें कि प्रियंका गांधी का विवाह उद्योगपति रॉबर्ट वाड्रा से हुआ। रॉबर्ट वाड्रा की धार्मिक पहचान को लेकर समय-समय पर अलग-अलग दावे सामने आए हैं। कुछ रिपोर्ट्स में उन्हें ईसाई बताया गया, जबकि बाद में हिंदू धर्म अपनाने की बातें भी कही गईं। हालांकि इस पर परिवार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं रहा है।

रेहान वाड्रा और अवीवा बेग

अब गांधी परिवार की नई पीढ़ी चर्चा में है। खबरों के अनुसार रेहान वाड्रा ने अपनी गर्लफ्रेंड अवीवा बेग से सगाई कर ली है। दोनों के परिवारों की सहमति की बात कही जा रही है। हालांकि अवीवा बेग के धर्म को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है।

निजी फैसले और बदलता सामाजिक नजरिया

गांधी परिवार के यह रिश्ते इस बात की ओर इशारा करते हैं कि व्यक्तिगत जीवन में उन्होंने परंपराओं से हटकर अपनी पसंद और आपसी समझ को प्राथमिकता दी। यह कहानी केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि बदलते भारतीय समाज और उसकी सोच की भी झलक पेश करती है।