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आप भी जान लीजिए सच्चे किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के जीवन को

Chaudhary Charan Singh

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Chaudhary Charan Singh : भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह सच्चे अर्थ में किसानों तथा मजदूरों के मसीहा थे। चौ. चरण सिंह अपने पूरे जीवन किसानों तथा मजदूरों के लिए संघर्ष करते रहे। हाल ही में चौधरी चरण सिंह को भारत सरकार ने भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया है। 29 मई 2024 (आज) को चौधरी चरण सिंह की 37वीं पुण्यतिथि है। चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर जान लीजिए चौ. चरण सिंह का जीवन परिचय।

सच्चे किसान मसीहा थे चौधरी चरण सिंह

दुनिया का कोई भी व्यक्ति इस बात से असहमत नहीं है कि भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह सच्चे अर्थों में किसानों के मसीहा थे। चौधरी चरण सिंह का जीवन एक महान जीवन है। उन्हें जानने व समझने के लिए आपको बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढऩी पड़ेंगी। हम यहां चौधरी चरण सिंह के जीवन से जुड़ी हुई मुख्य घटनाओं को आपके सामने रख रहे हैं। इन घटनाओं से आप स्व. चौधरी चरण सिंह के विषय में वह सब जान लेंगे जो आपको जानना आवश्यक है। किसानों के सच्चे मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को मेरठ जिले के नूरपुर गांव में हुआ था। चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1923 में आगरा कालेज आगरा से बीएससी की परीक्षा पास की तथा वर्ष 1925 आगरा कालेज आगरा से ही एमए की परीक्षा पास की। 5 जून 1925 को चौधरी चरण सिंह का विवाह श्रीमती गायत्री देवी के साथ हुआ था।

वर्ष 1926 में चौधरी चरण सिंह को मेरठ कॉलेज, मेरठ, आगरा विश्वविद्यालय से एल. एल. बी. की डिग्री प्राप्त हुई। 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजय़िाबाद में कानून की प्रैक्टिस शुरू की। 1929 में चौधरी चरण सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए, जिसके बाद पूर्णकालिक राजनीतिक करियर के लिए वकालत की प्रैक्टिस छोड़ दी। गाजियाबाद की टाउन कांग्रेस कमेटी की स्थापना की, जिसमें वो 1939 तक विभिन्न पदों पर रहे। 1967 तक कांग्रेस में रहे।

चौधरी चरण सिंह को 1930 में महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान छह महीने का प्रथम कारावास हुआ। वह 1935 तक जिला बोर्ड मेरठ के उपाध्यक्ष रहे। 1937 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के टिकट पर मेरठ जिले (दक्षिण-पश्चिम), जिसमें बागपत और गाजय़िाबाद तहसील भी शामिल थी, से उ.प्र. विधानसभा के लिए कुल मतों के 78.06 फीसदी मत पाकर चुने गए। चौधरी चरण सिंह 1938 खाद्यान्न डीलरों द्वारा शोषण से किसानों को बचाने के लिए कृषि उपज विपणन विधेयक विधानसभा में पेश किया। हालांकि बिल का विरोध हुआ और अंतत: 1964 तक बिल पास नहीं हो सका था।

चौधरी चरण सिंह का क्रांतिकारी प्रस्ताव

चौधरी चरण सिंह 1939 से 1946 तक जिला मेरठ कांग्रेस कमेटी में एक या दो पदों अध्यक्ष, महासचिव पर रहे। किसानों की तरफ से पार्टी के सामने और विधानमंडल में कई उपायों का प्रायोजन करते हुए किसानों के हितों के लिए सबसे प्रमुख प्रवक्ता या प्रतिनिधि के रूप में अपना स्थान प्रतिष्ठित किया। चौधरी चरण सिंह ने सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में किसानों या कृषकों के बेटों और आश्रितों के लिए 50 फीसदी पदों के आरक्षण की मांग के संकल्प का एक प्रस्ताव कांग्रेस विधायक दल की कार्यकारी समिति के सामने रखा। हालांकि पार्टी ने इस प्रस्ताव पर कभी विचार नहीं किया। यह प्रस्ताव चौधरी चरण सिंह द्वारा रखा गया क्रांतिकारी प्रस्ताव था।

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चौधरी चरण सिंह ने सभी पट्टेदारों और जमीन जोतने वाले वास्तविक खेतिहरों को उस जमीन, जिस पर वे खेती करते थे, के वार्षिक किराए का 10 गुना चुकाने पर उनको भू-स्वामित्व (मालिकाना हक) का हस्तांतरण करने का आह्वान करते हुए जमींदारी उन्मूलन बिल का पूर्ववर्ती, भूमि उपयोग बिल, तैयार किया था। इस दौरान चौधरी चरण सिंह के द्वारा किसानों के हितों को बढ़ावा देने और उन्हें बचाने के लिए विभिन्न उपायों को प्रस्तुत करते हुए, कई लेख प्रकाशित हुए थे। चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस विधानमंडल दल के सामने एक प्रस्ताव रखा कि किसी भी हिंदू (अनुसूचित जातियों को छोडक़र), जो किसी भी शैक्षिक संस्थान में दाखिला लेना चाहता है या किसी सरकारी सेवा में कोई पद हासिल करना चाहता है, तो उससे जाति संबंधी किसी भी पूछताछ पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए।

चौधरी चरण सिंह का सत्याग्रह और जेल यात्रा

साल 1940 में चौधरी चरण सिंह व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान नवंबर में एक वर्ष के लिए दूसरी बार जेल गए। वह 1946 तक मेरठ डीसीसी के महासचिव और अध्यक्ष रहे। चौधरी चरण सिंह अगस्त 1942 से नवम्बर 1943 तक तीसरी बार जेल में रहे। 1945 में बनारस में किसानों की एक मीटिंग, जिसकी अध्यक्षता आचार्य नरेंद्र देव ने की थी। इस बैठक में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का आह्वान करते हुए कांग्रेस के घोषणा पत्र का मसौदा तैयार किया जिसे दिसम्बर में ऑल इंडिया कांग्रेस कार्यकारी समिति के एक संकल्प के रूप में पारित किया गया।

इसी किसान सभा में चौधरी चरण सिंह ने सरकारी नौकरियों में कृषकों के लिए रोजगार बढ़ाने के लिए अपना प्रस्ताव भी निरूपित या तैयार किया, लेकिन उनके इस प्रस्ताव को कांग्रेस या सरकार का कभी समर्थन नहीं मिला। चौधरी चरण सिंह 1946 में मेरठ जिले (दक्षिण-पश्चिम) से विधायक से चुने गए। दूसरी कांग्रेस सरकार में संसदीय सचिव नियुक्त किए गए। चौधरी चरण सिंह स्वास्थ्य मंत्री, स्थानीय स्वशासन मंत्री और अंतत: मुख्यमंत्री के अधीन कार्य करते हुए 1951 तक पद पर बने रहे।

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वह ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (एआईसीसी) के सदस्य बने। 1947 में चौधरी चरण सिंह की जमींदारी को समाप्त कैसे करें: कौन-सी वैकल्पिक व्यवस्था अपनाएं और जमींदारी उन्मूलन, पुस्तक प्रकाशित हुई। 1948 से 1956 तक चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधानमंडल दल के महासचिव रहे। इस दौरान उनकी उ.प्र. में जमींदारी उन्मूलन: आलोचकों का जवाब, पुस्तक प्रकाशित हुई। 1951 में चौधरी चरण सिंह कैबिनेट रैंक के न्याय और सूचना मंत्री जून से 9 अगस्त 1951 तक रहे, इसके बाद उन्होंने पशुपालन और सूचना विभागों को संभाला। 1952 में जमींदारी उन्मूलन बिल का पारित होना, जिसको तैयार करने में चौधरी चरण सिंह सिंह ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। मई में स्व. चरण सिंह राजस्व और कृषि मंत्री नियुक्त किए गए और 27 दिसम्बर 1954 तक बने रहे।

उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने चौधरी चरण सिंह

1954 में उत्तर प्रदेश में डॉ. संपूर्णानंद की सरकार में 28 दिसम्बर को चौधरी चरण सिंह राजस्व और परिवहन मंत्री नियुक्त किए गए और 9 अप्रैल 1957 तक मंत्रालय संभाले रहे। 10 अप्रैल 1957 में चौधरी चरण सिंह को राजस्व के साथ ही वित्त विभाग भी दिया गया। फरवरी 1959 में बिजली विभाग भी दिया गया। इस दौरान चौधरी चरण सिंह की उत्तर प्रदेश में कृषि क्रांति नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।
22 अप्रैल 1959 को चौधरी चरण सिंह ने डॉ. संपूर्णानंद की सरकार से इस्तीफा दे दिया। 19 महीनों तक सरकार से बाहर रहे। उनकी संयुक्त खेती एक्स-रेड: समस्या और इसके समाधान पुस्तक प्रकाशित हुई।

7 दिसम्बर 1960 को चौधरी चरण सिंह सी.बी. गुप्ता की उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री, गृह और कृषि मंत्री बने। 14 मार्च 1962 से 1 अक्तूबर 1963 तक चौधरी चरण सिंह कृषि मंत्री बने रहे लेकिन गृह मंत्रालय नहीं रहा। 1963 सुचेता कृपलानी की उत्तर प्रदेश सरकार में चौधरी चरण सिंह कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन और वन मंत्री के रूप में शामिल हुए। 14 मई 1965 को कृषि मंत्रालय छोड़ दिया। जिसके बाद उन्होंने 16 फरवरी 1966 से वन और स्वशासन मंत्रालय संभाला।

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चौधरी चरण सिंह की महत्वपूर्ण पुस्तक

1964 में चौधरी चरण सिंह की भारत की गरीबी और इसके समाधान पुस्तक प्रकाशित हुई। 1967 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस से अलग हो गए। 3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने और 25 फरवरी 1968 तक बने रहे। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) का निर्माण किया। अपने लगातार नेतृत्व में 1974 में चौधरी चरण सिंह ने अपने दल का नाम बदलकर भारतीय लोक दल किया। सितम्बर 1979 में पुन: नाम बदलकर लोक दल कर दिया। 17 फरवरी 1970 को चौधरी चरण सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 29 सितम्बर तक सीएम रहे।

इसी दौरान चौधरी चरण सिंह की नई पुस्तक कांग्रेस बीकेडी संबंधों की कहानी : नई कांग्रेस ने उ.प्र. गठबंधन को कैसे तोड़ा प्रकाशित हुई। 1971 में चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता बने और 1977 तक रहे। चौधरी चरण सिंह 1975 इंदिरा गांधी के सत्तावादी या अधिकारवादी “आपातकाल” शासन के दौरान 2 वर्ष के लिए जेल में रहे। चौधरी चरण सिंह 1977 में जेल से रिहा हुए और 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए प्रमुख निर्वाचक या चुनावी आधार उपलब्ध कराया। इसी बीच चौधरी चरण सिंह संसद के लिए सदस्य चुने गए और मार्च 1977 में मोरारजी देसाई की जनता सरकार में गृह मंत्री बने और जून 1978 तक इस पद पर रहे। बाद में जनवरी से जुलाई 1979 तक उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय वित्तमंत्री रहे। 1978 में चौधरी चरण सिंह की भारत की आर्थिक नीति: गाँधीवादी रूपरेखा पुस्तक प्रकाशित हुई।

1979 में जनता सरकार के पतन के बाद चौधरी चरण सिंह संक्षिप्त काल (28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980) के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने। दुर्भाग्य से चौधरी चरण सिंह मात्र 23 दिन ही पूर्णकालीन प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद वर्ष 1980 में चौधरी चरण सिंह फिर से संसद के लिए चुने गए। 1981 में चौधरी चरण सिंह की पुस्तक भारत के आर्थिक दु:स्वप्न: इसके कारण और इलाज का प्रकाशन हुआ। 1984 फिर से संसद के लिए चुने गए। 1985 में चौधरी चरण सिंह को अशक्त या बेबस कर देने वाला घातक दौरा पड़ा। 1986 में उ.प्र. में भूमि सुधार और जमींदार, जैसा कि चरण सिंह ने बताया का प्रकाशन। 29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया। दिल्ली में उनके स्मारक, किसान घाट, में उनका अंतिम संस्कार हुआ था। Chaudhary Charan Singh

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