Thursday, 25 April 2024

कांग्रेस ने बीजेपी से सीखी ये 5 चीजें, एक कमी पड़ रही भारी!

चुनाव से पहले हर राजनीतिक दल रणनीति बनाता है और उसके मुताबिक कैंपेन करता है। लेकिन, कांग्रेस की चुनावी तैयारी…

कांग्रेस ने बीजेपी से सीखी ये 5 चीजें, एक कमी पड़ रही भारी!

चुनाव से पहले हर राजनीतिक दल रणनीति बनाता है और उसके मुताबिक कैंपेन करता है। लेकिन, कांग्रेस की चुनावी तैयारी पर बीजेपी का प्रभाव दिखाई देता है। ऐसी कई चीजें हैं जो बीजेपी के इलेक्शन कैंपेन का हिस्सा हुआ करती थीं, लेकिन अब कांग्रेस उसे अपनाती दिख रही है। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है?

(1) दस अक्टूबर को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने वाराणसी में जनसभा को संबोधित किया। प्रियंका जब मंच पर चढ़ीं, तो उनके माथे पर तिलक था। रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने सबसे पहले ये बताया कि नवरात्र चल रहे हैं और उनका व्रत है।

इसके बाद उन्होंने देवी सुक्त और ‘सर्वमंगल मांगल्ये’ मंत्र का जाप किया। अपने भाषण की शुरुआत और अंत में ‘दुर्गा माता की जय’ के जयकारे भी लगवाए।

कांग्रेस के अंदर और बाहर दोनों ही जगह यह बात मानी जाती है कि पार्टी के जनाधार खिसकने का सबसे बड़ा कारण बहुसंख्यक आबादी का उससे दूर जाना है। इसके विपरीत बीजेपी में मोदी और अमित शाह की जोड़ी धर्म के मामले में बेहद स्पष्ट और आक्रामक है। यानी, कांग्रेस भले ही लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ खड़ी दिखना चाहती है, लेकिन वह बहुसंख्यक आबादी को खुश करने का भी पूरा जतन कर रही है।

(2) कांग्रेस ने भले ही आजादी के लड़ाई में सबसे अग्रणी भूमिका निभाई है लेकिन, अब वह इतिहास का हिस्सा है। जबकि, मोदी ने राष्ट्रवाद को नए कलेवर में पेश किया जो युवाओं को आकर्षित करने में सफल रहा।

‘मेड इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के स्लोगन से लेकर ‘चीनी ऐप’ को बैन करने जैसी कार्यवाई युवाओं को ज्यादा आकर्षित करती है। इन कंपनियों के बंद होने और नौकरियां गंवाने के बावजूद लोग मानते हैं कि देश के लिए इतना बलिदान तो दिया ही जा सकता है। पाकिस्तान और चीन का खुलकर विरोध करना और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे आक्रामक कदम आज की पीढ़ी को ज्यादा कनेक्ट करते हैं।

कांग्रेस ने भी इस बात को समझा है। उसने आजादी की लड़ाई का राग अलापने के बजाए ये कहना शुरू कर दिया है कि हम किसी से नहीं डरते। कांग्रेस जब अंग्रेजों से नहीं डरी, तो बाकि किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि उसे या उसके कार्यकर्ताओं को डरा सके। प्रियंका गांधी की वाराणसी रैली में राष्ट्रवाद के इस आक्रामक तेवर की झलक साफ दिखती है।

यहां तक कि लखीमपुरी खीरी की घटना को राष्ट्रवाद से जोड़ने का भी कांग्रेस पूरा प्रयास कर रही है। प्रियंका अपने भाषण में यह बताने से नहीं चूकीं कि लखीमपुरी में मारे गए किसान नक्षत्र सिंह का बेटा सीमा सुरक्षा बल में नौकरी करता है। वह देश की सुरक्षा में अपनी जिंदगी न्यौछावर कर रहा है और एक सैनिक के पिता को इस तरह मार दिया जाता है।

(3) भाषण की जगह संवाद पर जोर
कांग्रेस को यह बात भी समझ में आ गई है कि अब लोग केवल नेता को देखने या उसका भाषण सुनने नहीं आते। रैली में आए लोग चाहते हैं कि मंच पर खड़ा नेता उनसे सीधे संवाद करे। मोदी की इस कला को उनका ब्रह्मास्त्र माना जाता है। वह मंच के सामने खड़ी भीड़ से तुरंत कनेक्ट करने की कला जानते हैं।

इसकी झलक प्रियंका गांधी के भाषण में भी देखी जा सकती है। वाराणसी में भाषण के दौरान वह लोगों से पूछती हैं कि क्या आपको सस्ता सिलेंडर मिला? क्या आपको नौकरी मिली? क्या आप खुद को सुरक्षित महसूस करते है?

जनरैली को जनता से संवाद में बदलने के नए अंदाज का असर भी साफ दिखाई देता है। प्रियंका के सवाल करते ही भीड़ पूरे जोश में जवाब देती है और प्रियंका के नाम के नारे लगने लगते हैं। यह देखकर प्रियंका गांधी का चेहरा खिल जाता है।

(4) रैली नहीं अब इवेंट का है चलन
बीजेपी ने रैलियों या जनसभाओं को इवेंट के तौर पर ऑर्गेनाइज करने और उसे प्रमोट करने की कला का राजनीति में प्रयोग किया और यह बेहद सफल रहा। मोदी की रैलियों में बड़े-बड़े वाटरप्रूफ पांडाल और एयरकूलर, आकर्षक पैम्फलेट, मुखौटे, टैटू बनवाने से लेकर प्रोफेशनल व ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल रैली को एक इवेंट में तब्दील कर देता था। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर दिखने वाली इन रैलियों की भव्यता ने लोगों को खूब आकर्षित किया। हालांकि, इसके लिए बीजेपी की आलोचना भी की जाती है लेकिन, पार्टी को इसका फायदा मिला।

अब कांग्रेस ने भी यह समझ लिया है कि जनता को आकर्षित करने के लिए केवल नेता का चेहरा ही काफी नहीं है। जरूरी है कि रैली में आने वालों को एहसास कराया जाए कि वह खास हैं और उनके स्वागत की भी पूरी तैयारी है। प्रियंका गांधी के वाराणसी रैली के मंच सहित पांडाल की भव्यता और वहां लगे कैमरे इस बात का सबूत हैं कि कांग्रेस बदल रही है।

(5) रियल और वर्चुअल के फर्क की समझ
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों से जुड़ने के लिए ‘चाय पर चर्चा’ का ​फार्मूला बेहद कारगर रहा। मोदी ने एक जगह से कई राज्यों और शहरों के लोगों के साथ सीधा संवाद किया। रियल की जगह वर्चुअल प्रजेंटेशन ने मोदी को उनके विरोधियों से बहुत आगे खड़ा कर दिया।

मीडिया के साथ सोशल मीडिया का प्रयोग अब किसी भी पार्टी के लिए अपरिहार्य बन चुका है। राहुल गांधी का यूट्यूब पर आना और कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम का एक्टिव होना भी इसी बात का प्रमाण है। पिछले कुछ महीनों में ट्वीटर से लेकर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीजेपी या मोदी के खिलाफ किसी हैश टैग को ट्रेंड कराना यह बताता है कि अब कांग्रेस भी इस खेल में माहिर हो चुकी है।

(0) एक कमी पड़ रही भारी
ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने राजनीति करने, चुनाव लड़ने और प्रचार करने के परंपरागत तरीके को छोड़ने का मन बना लिया है। पार्टी में चल रहा अंदरुनी घमासान भी शायद यही संकेत करता है कि पुराने लोग इस बदलाव से सहज नहीं हैं और इसे रोकना चाहते हैं।

संभव है कि 2014 में जब मोदी की टीम ने ऐसी योजना बनाई हो, तो बीजेपी के ओल्ड गार्ड को यह बात हजम न हुई हो। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज का मतदाता पंच लाइन पकड़ता है और इसकी तरफ आकर्षित होता है।।

इस मामले में मोदी का कोई सानी नहीं। अच्छे दिन, अबकी बार मोदी सरकार, मोदी है तो मुमकिन है, हर-हर मोदी घर-घर मोदी जैसी पंचलाइन गढ़ने में मोदी का कोई जवाब नहीं। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मोदी के पास इन पंचलाइन के साथ-साथ 13 साल शासन करने और गुजरात मॉडल का बैकअप भी था। क्या राहुल और प्रियंका की कांग्रेस इस मामले में मोदी-शाह की बीजेपी को टक्कर दे पाएगी? ये तो यूपी चुनाव 2022 के नतीजे ही बताएंगे।

– संजीव श्रीवास्तव

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