Friday, 19 April 2024

Death Anniversay: बापू तुम ज़िंदा हो!

 विनय संकोची आज राष्ट्रपिता (Father of Nation ) महात्मा गांधी Mahatma Gandhi की पुण्यतिथि (Death Anniversary) है। उन बापू की…

Death Anniversay: बापू तुम ज़िंदा हो!

 विनय संकोची

आज राष्ट्रपिता (Father of Nation ) महात्मा गांधी Mahatma Gandhi की पुण्यतिथि (Death Anniversary) है। उन बापू की पुण्यतिथि जिनके बारे में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढिय़ों को यकीन ही नहीं होगा कि हाड़-मांस का ये व्यक्ति कभी पृथ्वी पर चला भी होगा। और मैं यह कहता हूं कि गांधी युग के लोगों ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया जाएगा, जब बापू की मूर्ति की जगह नाथूराम का मंदिर बनाने का संकल्प लिया जाएगा, जब राष्ट्रपिता को चतुर बनिया कहा जाएगा और जब भारतीय करेंसी से गांधी का चित्र हटाने की मांग उठाई जाएगी।

गांधी युग के लोगों ने सोचा तो यह भी नहीं होगा कि कथित रूप से गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार लोग/संगठन अपनी सुविधा के लिए बापू के महिमा मंडन का दिखावा करेंगे। महात्मा गांधी यदि सामान्य मृत्यु को भी प्राप्त होते, तब भी अमर ही रहते लेकिन तब नाथूराम गोडसे का कोई नाम लेवा न होता, बापू की हत्या कर गोडसे जरूर हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बन गया। गांधी तो मरकर भी अपने हत्यारे पर उपकार कर गये और गोडसे को चाहने वाले गांधी को गद्दार कहने में तनिक भी झिझक महसूस नहीं करते हैं। किसी को लगे या न लगे लेकिन यह सच है कि यदि गांधी आज जिन्दा होते तो राजनीतिक दृष्टि से जिल्लत की जिन्दगी जी रहे होते, आये दिन अपमानित होते, बंद कमरे में अकेले बैठकर सुबक-सुबक कर रोते।

भारतीय जनता पार्टी ने आजन्म कांग्रेसी रहे देश के प्रथम गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल (Sardar Patel) को राजनीतिक कारणों से अपने आदर्श के रूप में स्वीकार कर लिया। लेकिन उन्हीं सरदार पटेल ने भाजपा के मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को परोक्ष रूप से महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था। सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर को पत्र लिखकर साफतौर पर कहा था कि गांधी की हत्या के लिए देश में जो जहरीला वातावरण बना है उसके लिए आरएसएस जिम्मेदार है। सरदार ने आगे लिखा-‘संघ ने गांधी को केवल सुविधा के तौर पर स्वीकार किया है। क्योंकि उसे महसूस हो गया है कि गांधी की हत्या के बाद भी वो मरे नहीं हैं।’
हालांकि आरएसएस कभी गोडसे को अपना स्वयंसेवक स्वीकारने का साहस नहीं दिखा पाया है लेकिन सच्चाई यही है कि गोडसे संघ से जुड़ा हुआ था। नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे नेे 28 जनवरी, 1994 को ‘फ्रंटलाइन’ को दिए एक साक्षात्कार में साफ-साफ कहा था-‘हम सभी भाई आरएसएस में थे। नाथूराम, दत्तात्रेय, मैं खुद और गोविंद। आप कह सकते हैं कि हम अपने घर में नहीं, आरएसएस में पले-बढ़े हैं। आरएसएस हमारे लिए परिवार था। नाथूराम आरएसएस में बौद्धिक कार्यवाह बन गये थे। नाथूराम ने अपने बयान में आरएसएस छोडऩे की बात कही थी। उन्होंने यह बयान इसलिये दिया था क्योंकि गोलवलकर और आरएसएस गांधी की हत्या के बाद मुश्किल में फंस जाते, लेकिन नाथूराम ने आरएसएस नहीं छोड़ा था।’

गोपाल गोडसे (Gopal Godse) के मुताबिक नाथूराम गोडसे ने बौद्धिक कार्यवाह रहते हुए ही 1944 में हिंदू महासभा (Hindu Maha Sabha) के लिए काम करना शुरू किया था। हिंदू महासभा ने गोडसे को सार्वजनिक तौर से अपना स्वीकार किया लेकिन आरएसएस इस सच को स्वीकार करने से सदा परहेज करता रहा। जानकार बताते हैं कि उस समय आरएसएस और हिंदू महासभा अलग संगठन नहीं थे।
सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था कि गांधी की हत्या के बाद भी गांधी मरे नहीं हैं। लेकिन आज गांधी के विचारों की हत्या कर ‘गांधी को मारने’ का प्रयास किया जा रहा है। आज विभिन्न कारणों से, विभिन्न स्वार्थ और हितपूर्ति के लिए गांधी के नाम को बेमन से जिंदा रखा जा रहा है।

महात्मा गांधी की हत्या का सीधा जिम्मेदार उग्र हिन्दुत्व की राजनीति का झंडा उठाये नाथूराम गोडसे था। गांधी जी की हत्या स्वतंत्र भारत की पहली आतंकवादी कार्यवाही थी, जिसे कट्टर हिन्दुत्ववादी सोच ने अंजाम दिया। आज सात दशक बाद भी गांधी की हत्या के दिन पर खुश होने वाले लोग आखिर चाहते क्या हैं? मेडगर एवर्स ने कहा है-‘आप इंसान को तो मार सकते हो लेकिन उसके विचार को कभी नहीं मार सकते।’ किसी ने ठीक कहा है कि हत्यारी सोच यह जानती थी इसलिए उसने सबसे पहले गांधी को मारा और उसके बाद गांधी की सोच को मारने के लिए 72 सालों से प्रयासरत हैं, और बहुत हद तक उन्हें सफलता भी मिली है। गांधी नाथूराम को पसंद नहीं थे, मार दिया। लेकिन क्या सिद्धांत सही है कि जो पसंद न हो उसे मार दो?

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