भारत सहित विश्व के 17 देशों में विश्व की लगभग चौथाई आबादी जीवन कहे जाने वाले जल की कमी के चलते भविष्य को लेकर चिंतित है। जल की कमी वाले 17 देशों की सूची में भारत 13वें नंबर पर है। भारत की आबादी, जल संकट से जूझ रहे शेष 16 देशों की कुल जनसंख्या से 3 गुना ज्यादा है, यह आंकड़ा चिंता को और अधिक बढ़ाता है। सच तो यह है कि आज दुनिया वैश्विक जल संकट का सामना कर रही है। पानी संकट के कारण दुनिया भर में आपसी तनाव और संघर्ष बढ़ने की आशंका नित्य प्रति बढ़ती ही जा रही है।
नीति आयोग की 2019 की रिपोर्ट में कहा गया था कि वक्त के साथ जल संकट विकराल रूप ले सकता है। रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक देश की करीब 40% आबादी के लिए जल उपलब्ध ही नहीं होगा। मतलब भारत के 52 करोड़ों लोगों को पीने और जीने के लिए पानी मिलेगा ही नहीं, यह बहुत भयभीत करने वाली बात है।
अटल बिहारी वाजपेई जब देश के प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने की योजना बनाई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में 60 नदियों को जोड़ने की मंजूरी भी दी थी। मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल करीब आधा बीत गया है, लेकिन नदियों को जोड़ने की दिशा में धरातल पर कोई काम हुआ हुआ ऐसा लगता नहीं है। यदि काम हुआ होता तो तमाम विज्ञापनों के जरिए उनका प्रचार तो जरूर होता, जो कि नहीं हुआ है। इसमें संदेह नहीं है कि अगर महत्वपूर्ण नदियों को परस्पर जोड़ दिया जाए तो सूखे और बाढ़ की समस्या समाप्त होने से, जल संकट अपने आप खत्म हो जाएगा। इस दिशा में सरकार को तत्काल सकारात्मक रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। आंकड़ों की मानें तो आजादी के बाद से प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60% की कमी आई है। इस सत्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जल संरक्षण के लिए पर्यावरण संरक्षण जरूरी है। जब पर्यावरण बचेगा, तभी जल बचेगा। हिमालय के ग्लेशियर सिकुड़ने लगे हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि 2030 तक ग्लेशियर काफी सिकुड़ सकते हैं, जिससे जल की क्षति होगी और वानिकी पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
चीन की जनसंख्या वृद्धि दर में प्रतिवर्ष 0.07 की दर से कमी आ रही है, जबकि भारत की जनसंख्या में प्रति वर्ष 0.6 की दर से वृद्धि दर्ज की जा रही है। अनुमान है कि 2026 तक भारत की आबादी चीन की आबादी से ज्यादा हो जाएगी। इसका अर्थ यह भी है कि बड़ी आबादी के लिए अतिरिक्त जल की आवश्यकता होगी, जो कि वर्तमान हालातों को देखते हुए संभव नहीं लगता है। पानी का सबसे ज्यादा उपयोग करने वाले देशों की सूची में भारत भी शामिल है। देश के अनेक प्रदेशों के कई नगरों में पानी की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है।
भारत में जितना जल बरसता है, वह ऐसे ही बर्बाद चला जाता है। जल संचय और जल संरक्षण से स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सरकारी और नागरिकों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर गंभीर प्रयासों की जरूरत है। इस सब बारे में बहुत गंभीरता से अभी सोचा ही नहीं जा रहा है, जबकि स्थिति परेशान करने वाली है। जल को जीवन कहा गया है, लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि जल नहीं रहा तो जीवन कैसे बचेगा?