RBI : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की नीति निर्धारण को लेकर भीतर से ही दो अलग-अलग सुर सुनाई दे रहे हैं। एक तरफ RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने वैश्विक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों को भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए चुनौती बताया है, तो दूसरी तरफ मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्य सौगत भट्टाचार्य ने इन चिंताओं को फिलहाल बहुत गंभीर मानने से इनकार कर दिया है। इन दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच नजरिया अलग होने से यह सवाल उठ रहा है कि क्या RBI के भीतर अब नीतिगत मतभेद उभरने लगे हैं?
गवर्नर मल्होत्रा की चेतावनी
RBI की हालिया फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में गवर्नर संजय मल्होत्रा ने साफ तौर पर कहा कि, भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत जरूर है लेकिन वैश्विक स्तर पर मंदी, बढ़ते टैरिफ, जलवायु संकट और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तनाव जैसे कारक भारत की विकास दर को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि, भारत को अब ग्लोबल इकोनॉमी का अहम हिस्सा माना जा रहा है, इसलिए ऐसे जोखिमों के लिए अधिक सतर्क रहना जरूरी है। मल्होत्रा के अनुसार, मौजूदा परिदृश्य में रिजर्व बैंक को नीतिगत रूप से लचीला रहना चाहिए ताकि किसी भी संकट से निपटने के लिए तुरंत कदम उठाया जा सके।
सौगत भट्टाचार्य की डेटा-आधारित सोच
वहीं दूसरी ओर, MPC सदस्य सौगत भट्टाचार्य का रुख तुलनात्मक रूप से आशावादी है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल मजबूत स्थिति में है और मौजूदा डेटा में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि वैश्विक अनिश्चितताएं निकट भविष्य में देश की महंगाई या ग्रोथ को गंभीर रूप से प्रभावित करेंगी। उन्होंने ग्रामीण मांग, अच्छे मॉनसून और सरकार की नीतियों को आर्थिक मजबूती का संकेत बताया। साथ ही भट्टाचार्य ने स्पष्ट किया कि ब्याज दरों को लेकर RBI की नीति फिलहाल ‘न्यूट्रल’ है और कोई बड़ा बदलाव तभी होगा जब डेटा इसकी पुष्टि करेगा।
मतभेद नहीं दृष्टिकोण का अंतर
विशेषज्ञ मानते हैं कि गवर्नर और MPC सदस्य के नजरियों में यह अंतर उनके भूमिकात्मक दृष्टिकोण के कारण है। गवर्नर की भूमिका व्यापक होती है और वे पूरे वित्तीय तंत्र को स्थिर रखने की सोच के साथ चलते हैं, इसलिए उनका रुख सतर्कता की ओर झुका होता है। दूसरी ओर, MPC सदस्य मुख्य रूप से ब्याज दर और मुद्रास्फीति पर केंद्रित रहते हैं और घरेलू आर्थिक संकेतकों को प्राथमिकता देते हैं।
क्या पॉलिसी में बदलाव आएगा?
इन बयानों से यह स्पष्ट होता है कि RBI के भीतर अलग-अलग दृष्टिकोणों के आधार पर नीति निर्धारण को लेकर खुला विमर्श जारी है। इसका अर्थ यह नहीं कि संस्था में कोई फूट है, बल्कि यह दिखाता है कि निर्णय लेने से पहले हर पहलू पर विचार किया जा रहा है। यह मतभेद नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक चर्चा की प्रक्रिया का हिस्सा है। अगली मौद्रिक नीति समीक्षा से पहले इन दोनों नजरियों को लेकर बहस और तेज हो सकती है, लेकिन अंतिम फैसला इसी संतुलन के आधार पर लिया जाएगा डर नहीं, डेटा के दम पर। RBI
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