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द्रौपदी मुर्मू : झोपड़ी में रहने वाली आदिवासी महिला का 340 कमरों के आलीशान राष्ट्रपति भवन तक का सफर

Draupadi Murmu

Draupadi Murmu

Draupadi Murmu : जब हमारी जिन्दगीं मे परेशानियां आती है तो हम हार मान जाते है,मायूस हो कर बैठ जाते है और आगे नहीं बढ़ पाते है । लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारें मे बताने जा रहें है जिनको पूरा देश राष्ट्रपति के रूप मे जानता है । जी हां आज हम बात करेंगे हमारे देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारें में जो भारत की पहली आदिवासी  महिला राष्ट्रपति है ।

भले ही द्रौपदी मुर्मू आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं, लेकिन इस पद तक पहुंचने के लिए उनका सफर आसान नहीं था। संघर्षों से भरे जीवन को पार करके, परिवार की कठिनाइयों का सामना करने के बाद आज द्रौपदी मुर्मू का नाम सुनहरे अक्षरों मे लिखा गया है

द्रौपदी मुर्मू का जन्म स्थान और जीवन परिचय:

द्रौपदी मुर्मू का जीवन काँटो भरा था । पारिवारिक जीवन की बात करें तो द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। वह एक आदिवासी परिवार मे जन्मी थी। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। जो अपनी परंपराओ के मुताबिक गांव और समाज के मुखिया थे। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे।

द्रौपदी मुर्मू की शिक्षा:

मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। द्रौपदी मुर्मू का गांव काफी छोटा होने के कारण वहां पढाई के लियें अधिक साधन नहीं थे। फिर भी उन्होंने अपने गृह जनपद से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। आपको जानकर हैरानी होगी मुर्मू के क्लास में सिर्फ 6 लड़कियां और 30 लड़के थे, जिनकी मॉनिटर मुर्मू थी। पढ़ाई पूरी होने के बाद एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और कुछ समय तक इस क्षेत्र में काम किया।

द्रौपदी मुर्मू का वैवाहिक जीवन:

पढ़ाई के बाद मुर्मू की शादी श्याम चरण से हुई थी। जिनसे उनके तीन बच्चे थे। बाद में उनके दोनों बेटों का निधन हो गया। सबसे पहले मुर्मू के बड़े बेटे की साल 2009 में मौत हुई। फिर उनके छोटे बेटे की भी मौत हो गई और अंत में द्रौपदी मुर्मू के पति ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और पंचतत्व में विलीन हो गए। बच्चों और पति का साथ छूटना द्रौपदी मुर्मू के लिए कठिन दौर था। इस घटना के बाद वे अवसाद से पीड़ित हो गयी। जब वे ब्रह्म कुमारियों से मिलने गयी, तो उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें आगे बढ़ना है और अपनी बेटी के लियें जीना है ।

Draupadi Murmu राजनीतिक करियर:

रायरंगपुर से ही उन्होंने भाजपा के साथ राजनीति के सोपान पर पहला पहला कदम रखा था। वह 1997 में रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद में पार्षद बनाई गईं और 2000 से 2004 तक ओडिशा की बीजद-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं। उन्हें 2015 में झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वह 2021 तक इस पद पर रहीं।

बीजद ने 2009 में भाजपा से नाता तोड़ लिया था और तब से इसने ओडिशा पर अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है। मुर्मू ने 2014 का विधानसभा चुनाव रायरंगपुर से लड़ा था, लेकिन वह बीजद उम्मीदवार से हार गई थी। झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, मुर्मू ने अपना समय रायरंगपुर में ध्यान और सामाजिक कार्यों में लगाया। मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बाद में साल 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल भी नियुक्त हुईं। वह राज्य की पहली महिला गवर्नर बनीं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री, विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं। मुर्मू की बेटी इतिश्री ओडिशा के एक बैंक में काम करती हैं।

आज Draupadi Murmu भारत की 15वीं राष्ट्रपति बन चुकी हैं। इन्हें 64 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। एक समय था जब आदिवासी परिवार से आने वालीं द्रौपदी मुर्मू झोपड़ी में रहती थीं। जिन्होंने अब 340 कमरों के आलीशान राष्ट्रपति भवन तक का सफर पूरा कर लिया है। झारखंड की राज्यपाल से देश की राष्ट्रपति बनने तक का सफर द्रौपदी मुर्मू का प्रेरणाओं से भरा हुआ हैं।

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