Sindhu Ghati Sabhyata : सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास भारत के इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है। भारत के गौरवशाली इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के इतिहास का पन्ना बहुत ही खास है। भारत में जन्म लेने वाले प्रत्येक भारतवंशी को सिंधु घाटी सभ्यता के इतिहास (History of Indus Valley Civilization) की जानकारी होना बहुत ही जरूरी है। भारत के गौरवशाली इतिहास में दर्ज सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का इतिहास बहुत लम्बा है। यहां हम आसान शब्दों में आपको सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
सिंधु घाटी की सभ्यता से ही शुरू हुआ था पक्के घरों का निर्माण
सिंधु घाटी सभ्यता को प्राचीन भारत का स्वर्णकाल भी कहा जाता है। दुनिया के तमाम इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि भारत की प्राचीन सभ्यताओं में सिंधु घाटी सभ्यता का नाम सबसे ऊपर है। सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान ही भारतवंशी पहली बार पक्के मकान बनाना सीखे थे। सिंधु घाटी की सभ्यता ही वह काल खण्ड था जब भारत में हमारे पूर्वज चीजों की माप करना, वस्तुओं का वजन करना, जल की निकासी करना तथा कांस्य की वस्तुएं बनाना सीखे थे। कांस्य की वस्तुएं बनाने के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता को कांस्य युग भी कहा जाता है।
वास्तव में कितने साल पुरानी है सिंधु घाटी सभ्यता
भारत के इतिहास का कांस्य युग कही जाने वाली सिंधु घाटी की सभ्यता बहुत ही पुरानी सभ्यता है। भारत से लेकर दुनिया भर के इतिहासकार इस बात पर सहमत होते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में विकास हुआ था। वर्तमान में यह आज का पाकिस्तान और पश्चिमी भारत का हिस्सा है। इसके समयकाल की बात करें, तो करीब 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक इसका समयकाल माना जाता है। इस समय में इसका परिपक्व काल लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता को मुख्य रूप से शहरी नियोजन, पक्की ईंटों के घरों, विस्तृत जल निकासी प्रणाली, सड़क व्यवस्था और मानकीकृत वजन और माप के लिए जाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता के दो मुख्य शहर थे। इन शहरों की बात करें, तो ये मोहनजोदड़ो और हड़प्पा हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता है शहरी नियोजन
सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता शहरी नियोजन है। इस सभ्यता में शहर को पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था। शहर में सडक़ों का निर्माण ग्रिड प्रणाली के तहत किया गया था। इन सड़कों की बनावट ऐसी थी कि यह समकोण पर एक-दूसरे को काटती थीं। शहर में सभी घरों का निर्माण पक्की ईटों से किया गया था। साथ ही, सभी घरों में स्नानघर और आंगन भी बनाए जाते थे। सिंधु घाटी सभ्यता में प्रत्येक घर से जल निकासी की व्यवस्था थी। इसके तहत घरों से नालियों के माध्यम से पानी को शहर से बाहर ले जाया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता में कृषि प्रमुख हुआ करती थी। उस समय गेहूं, कपास, चावल, जौ और विभिन्न प्रकार की दालों की खेती की जाती थी। सिंधु सभ्यता में मेसोपोटामिया जैसी समकालीन सभ्यताओं के साथ व्यवसाय भी किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता में लोग कला में भी माहिर थे। लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन, खिलौने, मुहर व मूर्तियां भी बनाई जाती थीं। खास बात यह है कि सिंधु घाटी में मिली मुहरों पर एक लिपी भी मिली है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। सिंधु घाटी सभ्यता में धर्म को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। हालांकि, मुहरों पर मिले प्रतीकों से यह प्रतीत होता है कि पशुपति के रूप में भगवान शिव को पूजा जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि पढ़ना हो गया असंभव
सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान हमारे पूर्वजों ने लिखना-पढ़ना भी सीख लिया था। सिंधु घाटी सभ्यता में भारत के पूर्वज जिस लिपि का प्रयोग करते थे वह लिपि दुनिया के लिए बहुत बड़ा रहस्य बनी हुई है। सिंधु घाटी की लिपि को आत तक कोई भी व्यक्ति पढ़ नहीं पाया है। भारत में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन सिंधु घाटी की सभ्यता की लिपि को पढ़ने के लिए बहुत ही उतावले हो रहे हैं। एम.के. स्टालिन ने सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को पढऩे वाले व्यक्ति को 8 करोड़ रुपए (एक मिलियन डॉलर) ईनाम देने की घोषणा कर रखी है। इतने बड़े ईनाम की घोषणा के बाद भी कोई माई का लाल सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को नहीं पढ़ पा रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा रहस्य बन गई है।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि पर पहले भी घोषित हुए हैं ईनाम
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि पढऩे वाले को र्ईनाम देने की घोषणा अकेले एम.के. स्टालिन ने ही नहीं की है। सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को पढऩे के लिए 20 सालों से भी ज्यादा वक्त से कई पुरस्कार रखे जाते रहे। इतिहासकार स्टीव फार्मर ने कहा था कि जो भी इस लिपि के 50 कैरेक्टर भी पढ़ लेगा, उसे दस हजार डॉलर की रकम दी जाएगी। वैसे ये इनाम लिपि को समझने से ज्यादा किसी और बात के लिए था। दरअसल इतिहासकार स्टीव फार्मर सिंधु घाटी को कमतर सभ्यता मानते, और उन्हें इस बात पर कतई यकीन नहीं था कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग इतने पढ़े-लिखे होंगे। इसी प्रकार कई बार कुछ और लोगों ने भी इस लिपि को पढऩे पर ईनाम घोषित किए हैं।
अज्ञात लिपियों को समझने में सबसे ज्यादा मदद ऐसे स्टोन्स से होती है जिनमें एक ही बात दो भाषाओं में लिखी हो। इससे एक को डीकोड करते ही दूसरे से तुलना की जा सकती है। माना जाता है कि सिंधु घाटी के दौर में मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक रिश्ते भी थे। मेसोपोटामिया को तो समझा जा सका लेकिन सिंधु लिपि अब भी अबूझ है। अज्ञात लिपियों को मोटे तौर पर तीन हिस्सों में रखा जाता रहा। एक- अज्ञात लिपि जो ज्ञात भाषा को लिख रही हो। दूसरी- ज्ञात लिपि जो अज्ञात भाषा को लिखने लगे और तीसरी श्रेणी में है- एक अज्ञात लिपि जो अज्ञात भाषा को लिख रही हो। इसमें जाहिर तौर पर तीसरी कैटेगरी को समझना सबसे मुश्किल है क्योंकि इसमें दोनों ही बातों की कोई जानकारी नहीं।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को मानने को ही तैयार नहीं हैं कुछ लोग
अनेक देशों के विदेशी पुरातत्वविद सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को लिपि यानि कि स्क्रिप्ट मानने से ही इनकार करने लगे। ये ट्रेंड साल 2000 से शुरू हुआ. तब कई ब्रिटिश और अमेरिकी इतिहासकारों ने दावा किया कि इंडस लिपि असल में कोई भाषा है ही नहीं। उनका कहना था कि ये सिर्फ उस दौर के राजनैतिक और धार्मिक संकेत हैं, यानी तस्वीरें हैं। इस प्रकार का दावा कोलैप्स ऑफ इंडस (Collapse of Indus) नाम की एक थीसिस में किया गया। बाद में कोलैप्स ऑफ इंडस स्क्रिप्ट थीसिस नाम के इस पेपर को लिखने वालों की काफी आलोचना हुई थी। माना गया कि वे रेसिज्म के चलते दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक को नकार रहे हैं। इससे पहले से लेकर आज तक इस लिपि को समझने की सैकड़ों कोशिशें हो चुकीं। इनमें से करीब 100 प्रयास तो दुनिया के नामचीन एक्सपर्ट्स ने किए थे लेकिन इसे पढ़ा तब भी नहीं जा सका। भारतवंशी उम्मीद कर रहे हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि जल्दी ही पढ़ी जाएगी।
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