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Political : गुजरात बनाम दिल्ली : जारी है सियासी मैच

 

आरपी रघुवंशी

दिल्ली में सियासी मैच जारी है। केजरीवाल सरकार के मंत्रियों और नेताओं पर ‘चाणक्यों’ की कार्रवाई को गुजरात चुनाव के चश्मे से देखा जा रहा है। देश की राजनीति में पहले करिश्माई नेता हुआ करते थे, जो अपने काम से जनता का दिल जीतकर सत्ता तक पहुंचते थे। उसके बाद वादों का पिटारा खोलकर जनता का दिल जीतने का एक दौर आया। लेकिन, वे वादे अब ‘रेवड़ी’ की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं। केंद्रीय सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी तो इससे भी एक कदम और आगे है। उसका मानना है कि जनता से लुभावने वादे करो, राष्ट्रवाद का खोखला नारा बुलंद करो और सत्ता पर काबिज हो जाओ। अगर इतने से भी बात न बने तो विधायकों को खरीदकर सत्ता हथिया लो। यानि बीजेपी चुनाव में हार जाए तो भी उसे सत्ता चाहिए, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। बीते वर्षों में कुछ राज्यों में भाजपा ने इसी तर्ज पर सत्ता हथियाकर यह साबित कर दिया है कि उसे इस काम में महारत हासिल है। सच कहें तो मौजूदा राजनीति क्रिकेट के लोकप्रिय फार्मेट 20-20 से कम दिलचस्प नहीं है।

विरोधियों को तोड़कर अपने साथ मिलाने और सत्ता हथियाने के खेल में भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य अमित शाह माहिर हैं। इस खेल में वह हर जायज-नाजायज तरीके आजमाते हैं। यह भी आरोप लगते रहते हैं कि सत्ता हथियाने के खेल में संवैधानिक संस्थाएं भी उनके इशारे पर काम करती हैं। भाजपा का ‘डर और दुलार’ का यह फार्मूला अब तक काफी कारगर रहा। महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गोवा इसी खेल का करिश्माई उदाहरण है।

अब बीजेपी के इस गेम (ऑपरेशन लोटस) को कई क्षत्रपों ने समझ लिया है। बीते दिनों भाजपा के ही नक्शेकदम पर चलकर सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार ने ‘चाणक्यों’ को जोर का झटका दिया था। वह 09 अगस्त को बीजेपी अलग हुए और 10 को ही फिर ‘लालटेन’ की रोशनी में सत्ता पर काबिज हो गए। उस झटके से तिलमिलाई भाजपा और उसके चाणक्य ने दिल्ली की सत्ता हथियाने का खेल शुरू किया। बहाना दिल्ली की शराब नीति का था। पहले एलजी यानि उपराज्यपाल के जरिये सीबीआई जांच की संस्तुति कराने और फिर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर समेत 31 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी इसी खेल का एक हिस्सा माना जा रहा है। जब सीबीआई की छापेमारी दबाव बनाने में कारगर साबित नहीं हुई, तब शुरू हुआ खरीद-फरोख्त का खेल। राजधानी दिल्ली की सरकार को अस्थिर करने की बीजेपी की कोशिशों के बीच आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अपने लिए ‘ऑफर’ की बात बेपर्दा कर भाजपा को असहज कर दिया।

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल बेशक सरकारी नौकर रहे हैं, लेकिन वह सियासत के माहिर खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। उन्होंने राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की तरह ‘मियां की जूती, मियां का सिर’ वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया। अरविंद केजरीवाल ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि बीजेपी ने उसके 40 विधायकों को खरीदने के लिए 20-20 करोड़ रुपये का ऑफर दिया है। इसमें खुद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल हैं। मनीष सिसोदिया ने भी एक दिन पहले कहा था कि उन्हें ‘आप’ विधायकों को तोड़कर लाने पर दिल्ली का सीएम बनाने और सीबीआई-ईडी का केस खत्म करने का ऑफर मिला है। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के इस ‘बम’ धमाके से भाजपा और उसके चाणक्य भौंचक रह गए। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि देश की जनता पूछ रही है कि 40 विधायकों को 20-20 करोड़ का ऑफर, यानि खर्च 800 करोड़ रुपये। ये रुपये कहां से आए और कहां रखे गए हैं।

सियासत के जानकार बताते हैं कि दरअसल, भाजपा का मकसद अरविंद केजरीवाल की सरकार को अस्थिर करना या उसे हथियाना नहीं है। असल खेल दूसरा है। दिल्ली में दो बार लगातार सत्ता पर काबिज होने के बाद केजरीवाल ने जिस तरह से पंजाब में सरकार बनाई, उससे उनका कद काफी बढ़ गया। वह दिल्ली के स्वास्थ्य और शिक्षा के मॉडल को लेकर पंजाब गए और कामयाब रहे। अब वह ‘चाणक्यों’ के इलाके यानि मोदी शाह की धरती गुजरात में हो रहे विधानसभा चुनाव में काफी सक्रिय हैं। लगभग तीन दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा को अब हार का डर सताने लगा है। कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी के हिन्दू-मुस्लिम एजेंडे पर केजरीवाल का स्वास्थ्य और शिक्षा का मॉडल भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। बीजेपी की यही घबराहट उसे केजरीवाल और उनकी टीम को दिल्ली में ही रोकने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाने को विवश कर रही है।

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