Sunday, 6 October 2024

विश्व खाद्य दिवस’ मनाने भर से नहीं मिटेगी भुखमरी

 विनय संकोची 1980 से प्रत्येक वर्ष 16 अक्टूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने…

विश्व खाद्य दिवस’ मनाने भर से नहीं मिटेगी भुखमरी

 विनय संकोची

1980 से प्रत्येक वर्ष 16 अक्टूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य दुनिया भर में फैली भुखमरी की समस्या के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना और भूख, कुपोषण और निर्धनता के विरुद्ध संघर्ष को मजबूती प्रदान करना है।

‘विश्व खाद्य दिवस’ हर साल नई थीम के साथ मनाया जाता है। कमोवेश हर साल की थीम के पीछे दुनिया भर में व्याप्त भुखमरी को दूर करने की भावना रहती है। लेकिन कई दशक से इस दिवस को मनाने का कोई बहुत सकारात्मक परिणाम तो सामने आया नहीं है और न ही निकट भविष्य में इस तरह के किसी खुश कर देने वाले परिणाम के आने की उम्मीद है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेज ने विश्व खाद्य दिवस पर अपने संदेश में कहा है कि पृथ्वी पर रहने वाले हर व्यक्ति के लिए न केवल भोजन की महत्ता याद दिलाने का एक मौका है बल्कि यह दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए कार्यवाही करने की एक पुकार भी है।

एंटोनियो गुटेरेज का संदेश और सोच सकारात्मक है लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि दुनिया में फैली भुखमरी अगले कई दशक तक समाप्त हो पाएगी। दुनिया इस समय गंभीर खाद्य असुरक्षा की अभूतपूर्व स्तर वाली स्थितियों का सामना कर रही है और अकाल की चपेट में आने के जोखिम का सामना कर रहे करीब 4 करोड़ 10 लाख लोगों की तत्काल सहायता करने के लिए 6 अरब 60 करोड़ डॉलर की रकम की तुरंत आवश्यकता है।

‘विश्व खाद्य दिवस’ 41 वर्षों से लगातार मनाया जा रहा है। लेकिन दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है और दुर्भाग्य से यह गिनती लगातार तेजी से बढ़ती चली जा रही है।

भुखमरी के मामले में विकसित और विकासशील देशों की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं है। सन 2050 तक दुनिया की आबादी 9 अरब होने का अनुमान लगाया गया है। इस 9 अरब की आबादी में से 80% लोग विकासशील देशों में रहेंगे। यदि आजकल जैसे ही हालात बने रहे तो विकासशील देशों की विकास दर निश्चित रूप से प्रभावित होकर घट जाएगी। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बहुत कठिन काम है, क्योंकि एक तरफ तो लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं और दूसरी तरफ भोजन की हानि और बर्बादी से हर साल 400 अरब डालर का भारी भरकम नुकसान हो रहा है। भोजन को आधा अधूरा खाकर कूड़ेदान में फेंक देने की प्रवृत्ति से भोजन बर्बादी की समस्या गंभीर रूप धारण कर रही है और यह सब ऐसे समय हो रहा है कि जब 80 करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं।

अगर भारत की बात करें तो यहां खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से सबसे बड़ी समस्या गरीबी है। यह आंकड़ा कम भयावह नहीं है कि आज भारत की एक चौथाई आबादी गरीबी से जूझ रही है। इसके अतिरिक्त गरीबों की उचित पहचान का कोई तंत्र ना होने के चलते वास्तविक गरीब कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं और खाद्य असुरक्षा की गिरफ्त में आ जाते हैं।

भारत की जनसंख्या 2030 तक डेढ़ अरब तक पहुंचने का अनुमान है। लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या का पेट भरने के लिए खाद्यान्न उत्पादन में अनेक समस्याएं हैं। भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों के बीच आने वाले समय में 150 करोड़ आबादी का पेट भरने की चुनौती का सामना करने के लिए फिलहाल तो पूरी तरह से तैयार नहीं दिखाई देता है। भारत के कृषि क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी समस्या अब कम उपज की है। हमारे देश में कृषि उपज विकसित देशों की तुलना में 30 से 50% तक कम है। ऊपर से खेती में होने वाली कम आय किसानों को गरीबी की ओर धकेल रही है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए एक नया खतरा है।

‘विश्व खाद्य दिवस-2021’ की थीम है – ‘हमारे कार्य हमारा भविष्य हैं। बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन।’ थीम अच्छी है। मगर इससे बिगड़ती स्थिति में कितना बदलाव आ पाता है, यह तो आने वाला कल ही बताएगा।

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