Husband Wife Sex : पति तथा पत्नी के बीच SEX संबंध एक स्वभाविक प्रक्रिया है। पति तथा पत्नी के बीच के SEX संबंधों से ही बच्चे पैदा होते हैं। बच्चों से सृष्टि आगे बढ़ती है। पति-पत्नी में SEX संबंधों के बीच में सरकार का कूद पड़ना आश्चर्य पैदा करता है। सच यह है कि पति तथा पत्नी के SEX संबंधों के बीच में भारत सरकार को एक बड़ा स्टैण्ड लेना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट के सामने भारत सरकार ने कहा है कि इस मामले में सामाजिक दृष्टि से आगे बढऩा पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट में किया है विरोध
भारत सरकार ने पति तथा पत्नी के बीच बिना सहमति के SEX संबंध बनाने पर उसे अपराध मानने के मुददे पर बड़ा स्टैण्ड लिया है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर स्टैण्ड लेते हुए भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि अगर पति-पत्नी के बीच संबंधों को वैवाहिक दुष्कर्म नाम देकर अपराध बनाया गया, तो इससे विवाह संस्था ही नष्ट हो जाएगी। केंद्र ने यह भी कहा कि भारत में विवाह की विशेष अवधारणा है, जो व्यक्ति व परिवार के अन्य सदस्यों के लिए सामाजिक और कानूनी अधिकारों का सृजन करती है।
पति तथा पत्नी के बीच SEX संबंध पर दायर किया हलफनामा
पति तथा पत्नी के बीच SEX संबंध के विषय में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा (एफेडेविड) दायर किया है। भारत सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि तेजी से आगे बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना कठिन और चुनौतीपूर्ण होगा कि यौन संबंध में दूसरे पक्ष की सहमति थी या नहीं। सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं में उठाए गए इस जटिल कानूनी प्रश्न पर विचार कर रहा है कि क्या अपनी बालिग पत्नी को यौन संबंध के लिए मजबूर करने पर पति को दुष्कर्म के उठाए अपराध के मुकदमे से छूट मिलनी चाहिए? निरस्त हो चुके भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद दो और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 63 (दुष्कर्म) के अपवाद दो के तहत ऐसे मामलों में पति की ओर से पत्नी को संबंध के लिए मजबूर करने को दुष्कर्म नहीं माना गया है।
कानून की बजाय सामाजिक मुद्दा ज्यादा
केंद्र ने कहा, शादी से महिला की सहमति (संबंध बनाने में) खत्म नहीं होती और इसका उल्लंघन करने पर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। हालांकि, शादी के अंदर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम शादी के बाहर के मामलों से अलग होते हैं। सरकार ने कहा, संसद ने विवाह में सहमति की रक्षा के लिए आपराधिक कानून प्रावधानों समेत विभिन्न उपाय दिए हैं। सामाजिक-कानूनी परिवेश में वैवाहिक संस्था की प्रकृति को देखते हुए, यदि विधायिका मानती है कि वैवाहिक संस्था के संरक्षण के लिए विवादित अपवाद को बरकरार रखा जाना चाहिए, तो इस अदालत के लिए अपवाद को रद्द करना उचित नहीं होगा।
भारत के सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नहीं चलेगा जातिवाद
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