Saturday, 20 April 2024

क्या योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं इस नेता की नकल!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 सितंबर 2021 को अपने कार्यकाल के साढ़े चार साल पूरे कर लिए।…

क्या योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं इस नेता की नकल!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 सितंबर 2021 को अपने कार्यकाल के साढ़े चार साल पूरे कर लिए। इस मौके पर उन्होंने यूपी के लोकभवन में सरकार ही उपलब्धियां गिनाते हुए लगभग 40 मिनट लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार की योजनाओं, कार्यक्रमों और कार्यवाहियों से मीडिया को अवगत कराया।

इस दौरान यूपी की कानून व्यवस्था, आर्थिक विकास, इज ऑफ डूइंग बिजनेस और यूपी मॉडल पर खासा जोर रहा। साफ है कि अगले छह महीने के अंदर में यूपी में विधानसभा चुनाव हैं। यूपी हमेशा से ही नेताओं और राजीतिक पंडितों, दोनों के लिए कौतूहल का विषय रहा है।

वजह साफ है कि यूपी न सिर्फ लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद (80) भेजने की वजह से केंद्र में सत्ता पाने की सीढ़ी माना जाता है, बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में यूपी के विधायकों के वोट की कीमत (Vote Value) सबसे ज्यादा (208) होती है। यानी, यूपी विधानसभा में जिस पार्टी के जितने ज्यादा विधायक होंगे राष्ट्रपति चुनाव को प्रभातिव करने की उसकी उतनी ज्यादा क्षमता होगी।

चुनाव आने के साथ ही इस बात के कयास लगने शुरू हो चुके हैं कि अगली सरकार किस पार्टी की होगी। आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित अपने अनुभव और समझ के मुताबिक भविष्यवाणियां करने में लगे हुए हैं। यह सिलसिला, 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से एक दिन पहले तक जारी रहेगा।

बीजेपी को है एक खास चेहरे की तलाश

चुनाव नतीजे जो भी हों, लेकिन यूपी में योगी आदित्यनाथ का उभार भारतीय जनता पार्टी की उस रणनीति की भी परीक्षा है जो अब तक कमोबेश सफल रही है। फिलहाल, नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं जिन्हें पार्टी के अंदर चुनौती देने वाला कोई दूसरा नेता नहीं है। लेकिन, इसी 17 सितंबर को नरेंद्र मोदी 71 साल के हो चुके हैं और उन्होंने खुद ही सक्रिय राजनीति से हटने के लिए 75 साल की उम्र सीमा को निर्धारित किया है।

ऐसे में आरएसएस से लेकर बीजेपी तक में मोदी के बाद कौन का जवाब तलाशा जा रहा है। इस दौड़ में फिलहाल योगी आदित्यनाथ ही सबसे आगे दिखते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह योगी आदित्यनाथ की कट्टर हिंदू नेता की छवि है। मुगलसराय से लेकर इलाहाबाद तक का नाम बदलने का फैसला रहा हो या अखिलेश के अब्बा जान वाला बयान, यह सब उनकी इसी छवि को मजबूत बनाता है।

गुजरात दंगों (2002) के बाद नरेंद्र मोदी पर लगने वाले आरोपों के बाद उभरी उनकी छवि ने उन्हें बीजेपी के अन्य समकालीने नेताओं से एक झटके में ही बहुत आगे खड़ा कर दिया था। योगी आदित्यनाथ भी कमोबेश उसी रास्ते पर जाते हुए दिख रहे हैं।

गुजरात मॉडल के बाद अब इस मॉडल की है चर्चा

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होने के बाद नरेंद्र मोदी ने खुद को एक प्रगतिशील नेता के तौर पर स्थापित करने का हरसंभव प्रयास किया। गुजरात मॉडल का प्रचार उसी का हिस्सा था जिसे 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा प्रचारित किया गया।

मोदी की ही तर्ज पर योगी आदित्यनाथ भी यूपी मॉडल का जिक्र हर मंच पर करते हैं। योगी बताते हैं कि कोरोना से लड़ाई में यूपी मॉडल एक मिसाल बन चुका है। इसी मॉडल के चलते देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश, पॉजिटिविटी रेट और मृत्यु दर के मामले में सबसे नीचे है।

यूपी मॉडल के बहाने योगी यह भी दिखाना चाहते हैं कि उनके राज में होने वाले हर अच्छे काम या नीतियों के लिए सिर्फ और सिर्फ वही जिम्मेदार हैं। इस बहाने वह प्रशासन के हर विभाग में भरोसेमंद नौकरशाहों की ऐसी टीम खड़ी कर रहे हैं जो भविष्य में उनके काम आ सकें।

कानून व्यवस्था के बहाने इस तबके पर है नजर

मोदी की ही तरह योगी आदित्यनाथ की एक नजर हमेशा उद्योगपतियों और औद्योगिक घरानों पर रहती है। यही कारण है कि अपनी उपलब्धियों में वह सबसे पहले यूपी की कानूनी व्यवस्था का जिक्र करते हैं।

वह उद्योगपतियों को संदेश देना चाहते हैं कि उनके राज में बहन-बेटियों के साथ यूपी में आने वाला हर उद्योगपति भी उतना ही सुरक्षित है। प्रदेश में माफियाओं और बाहुबलियों के खिलाफ की गई कार्यवाही और उसकी पब्लिसिटी में यह निहित संदेश छुपा हुआ है।

इन तीन मुद्दों के इद-गिर्द होगा यूपी का चुनाव

साफ है कि आगामी चुनाव में कट्टर हिंदू नेता की छवि, यूपी मॉडल और कानून व्यवस्था को ही सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर भुनाने की कोशिश की जाएगी। हालांकि, यह प्रयास कई महीनों पहले ही शुरू हो चुका है।

प्रचार के मामले में योगी आदित्यनाथ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी एक कदम आगे दिखते हैं। दिल्ली में बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों से लेकर पॉश इलाकों तक में योगी सरकार के होर्डिंग लग चुकी है। इसकी वजह भी साफ है कि दिल्ली से लगे यूपी के सीमांत शहरों से लोग रोज दिल्ली आते-जाते हैं। लेकिन, क्या कभी हरियाणा चुनावों के दौरान ऐसा देखने को मिला है?

यूपी चुनाव-2022 किसी भी राजनीतिक दल से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के भविष्य और नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर उभर रहे नेता की असली अग्नि परीक्षा है।

– संजीव श्रीवास्तव

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