नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उसकी कार्यवाही के सीधे प्रसारण ने अदालत को घरों और आम नागरिकों के दिलों तक पहुंचा दिया है। वह यह सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है कि सीधे प्रसारण की सामग्री अंग्रेजी के अलावा समानांतर रूप से अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध हो, जिससे कि अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।
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सेम सेक्स पर आठवें दिन भी जारी रही सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं पर आठवें दिन की सुनवाई के दौरान यह बात कही। पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।
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सीधे प्रसारण से अदालतों की पहुंच हर घर तक
मध्य प्रदेश की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि कार्यवाही का एक महत्वपूर्ण नतीजा यह है कि समाज में मंथन हो रहा है। देश के विभिन्न कोनों में इस बहस और सीधे प्रसारण के कारण लोग इस मुद्दे के बारे में सोच रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण ने वास्तव में हमारी अदालत को पूरी तरह से घरों और आम नागरिकों के दिलों तक पहुंचा दिया है। मुझे लगता है कि यह प्रक्रिया का हिस्सा है। द्विवेदी ने कहा कि एकमात्र बाधा यह है कि अदालत में बहस अंग्रेजी में होती है और गांवों में रहने वाले ज्यादातर लोग इस भाषा को नहीं समझते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आपको आश्चर्य होगा कि हम उस पर भी काम कर रहे हैं, श्री द्विवेदी।
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सीधे प्रसारण की सामग्री दूसरी भाषाओं में भी उपलब्ध कराने की कोशिश
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इस पर काम कर रहे हैं, आपके पास जो प्रतिलेख हैं, हम अब यह सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं कि सीधे प्रसारण की सामग्री को समानांतर रूप से अन्य भाषाओं में उपलब्ध कराया जाए, जिसका लोग लाभ उठा सकें। मामले में ‘जमीयत-उलमा-ए-हिंद’ का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि प्रौद्योगिकी के जरिए अब किसी व्यक्ति द्वारा अंग्रेजी में कही जाने वाली बात को जापानी सहित विभिन्न भाषाओं में सुना जा सकता है। मामले में सुनवाई जारी है।
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समिति का गठन करेगी शीर्ष अदालत
केंद्र ने तीन मई को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करेगी, जो समलैंगिक विवाह को कानून बनाने के मुद्दे पर जाए बिना ऐसे जोड़ों की “वास्तविक मानवीय चिंताओं” को दूर करने के लिए उठाए जा सकने वाले प्रशासनिक कदमों की पड़ताल करेगी।
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