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Madan Mohan Malviya – प्रयाग की पवित्र भूमि पर जन्मे पंडित मदन मोहन मालवीय ने नीलाम की थी निजाम की जूती

Madan Mohan Malviya

Madan Mohan Malviya Birth anniversary- मदन मोहन मालवीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ एक बेहतरीन पत्रकार, एक वकील और समाज सुधारक भी थे। स्वतंत्रता के समय मदन मोहन मालवीय ने बहुत अहम योगदान दिया था। आज इनकी जयंती है इनका जन्म आज ही के दिन 1861 में हुआ था। इनका जन्म प्रयाग की पवित्र भूमि में हुआ था। इनके जो पूर्वज थे वो मध्यप्रदेश से संबंधित थे, यही कारण है कि इन्हें ‘मालवीय’ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।

संस्कृत के क्षेत्र में मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya) ने बहुत काम किया। बचपन से ही इन्हें इसमें रुचि थी। यही कारण है कि महज 5 साल की उम्र से ही इन्होंने संस्कृत पढ़ना शुरू कर दिया था। इसके बाद इन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करके भारत में शिक्षक बनकर युवाओं को पढ़ाने का काम किया। ये बहुत ही सरल एवं शांत स्वभाव के थे जिसकी वजह से ये कम समय में भारत में छा गए थे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भी इन्हीं के द्वारा की गई थी। 1915 में मदन मोहन मालवीय नर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी और हिंदू महासभा के संस्थापक भी रहे थे।

महात्मा गांधी के थे बेहद करीब-

महात्मा गांधी इन्हें बड़े भाई की तरह मानते थे और बापू ने ही मालवीय जी को महामना की उपाधि प्रदान की थी। एक बार बापू ने इनके सरल स्वभाव का जिक्र सबसे किया था और उन्होंने कहा था कि, ”जब मैं मालवीय जी से मिला ….वो मुझे गंगा की धारा की तरह निर्मल और पवित्र लगे। मैंने तय किया मैं उसी निर्मल धारा में गोता लगाऊंगा।’ यही नहीं मालवीय जी ने ही सत्यमेव जयते को महत्व दिया और इसे लोकप्रिय बनाया था। इसको लिखा तो सबसे पहले उपनिषद में गया था, लेकिन ये इतना लोकप्रिय नहीं हुआ करता था। इसे लोकप्रिय इन्होंने ही बनाया और आज इसका महत्व तो हर कोई जानता है।

नीलाम की थी निजाम की जूती-

ऐसा बताया जाता है कि जब उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी तो इसके लिए चंदा मांगने के लिए वो देशभर में घूमे थे। इसी दौरान ये हैदराबाद के निजाम के पास भी पहुंचे। निजाम ने चंदा देने से साफ इंकार कर दिया था और उन्होंने अपने जूती दी थी। मालवीय (Madan Mohan Malviya) जी एकदम साधारण और सज्जन आदमी थी, वो निजाम की जूती को ही चंदा समझकर लेते आए थे और फिर भरे बाजार में उन्होंने निजाम की जूती की नीलामी शुरू कर दी थी। फिर जब इस बात की भनक निजाम को हुई तो उन्हें खुद की बेइज्जती महसूस हुई। उन्होंने मालवीय जी को बुलाया और उन्हें फिर एक मोटी रकम दान की थी।

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