Job Update- THDC में 120 अप्रेंटिस पदों पर निकली भर्तियां, जल्दी करे आवेदन

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locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar28 Nov 2025 04:09 PM
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THDC Recruitment- THDC इंडिया लिमिटेड में अप्रेंटिस के 120 विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हैं। जारी की गई रिक्तियों में ट्रेड अप्रेंटिस और कंप्यूटर ऑपरेटर जैसे विभिन्न पदों पर भर्ती प्रक्रिया की जानी है। भर्ती संबंधित नोटिफिकेशन THDC की आधिकारिक वेबसाइट www.thdc.co.in पर जारी किया गया है।

जारी किए गए पदों का पूर्ण विवरण - 1. कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट- 35 पद 2. स्टेनोग्राफर/सेक्रेटेरियल असिस्टेंट - 35 पद 3. इलेक्ट्रीशियन (Electrician)- 20 पद 4. ड्राफ्ट्समैन (Draftsman Civil)- 15 पद 5. फिटर - 10 पद 6. मैकेनिक इलेक्ट्रॉनिक्स (Mechanic electronics)- 5 पद

शैक्षिक योग्यता- जारी की गई रिक्तियों में अलग-अलग पदों के लिए शैक्षिक योग्यता अलग-अलग निर्धारित की गई है। पूरी जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट करें।

आवेदन हेतु महत्वपूर्ण तिथि - जारी किए गए पदों के लिए आवेदन जमा करने की आखिरी तिथि-25 नवंबर 2021

कैसे करें आवेदन - THDC द्वारा जारी किए गए पदों पर आवेदन प्रक्रिया ऑफलाइन मोड से की जा सकती है। इच्छुक उम्मीदवार आवेदन प्रक्रिया के लिए आधिकारिक वेबसाइट www.thdc.co.in पर जाकर आवेदन प्रारूप को डाउनलोड कर सकते हैं। आवेदन फॉर्म में दी गई पूरी जानकारियों को भरकर, आवश्यक दस्तावेजों के साथ नीचे दिए गए पते पर भेज दे।

पता - ' डिप्टी मैनेजर, THDC इंडिया लिमिटेड, भागीरथी भवन, प्रगतिपुरम, बाय-पास रोड ऋषिकेश-249201'

नोट - लिफाफे के ऊपर 'ट्रेड अप्रेंटिस- 2021 के लिए आवेदन' लिखना ना भूलें।

आवेदन संबंधित अधिक जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट करें।

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रविवार को ही सार्वजनिक अवकाश क्यों ?

Happy sunday
locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 Nov 2021 08:01 AM
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- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत देश समेत कई बाहरी देशों में रविवार यानि संडे (Sunday) को ही सार्वजनिक अवकाश (public holiday) क्यों रखा जाता है। अधिकांश देशों में यह व्यवस्था चली आ रही है। सरकारी अवकाश से लेकर भारत के ज्यादातर शहरों में भी बाजार का सार्वजनिक अवकाश रविवार (Sunday) को ही होता है। यानि रविवार (Sunday) को इन शहरों की मार्किट पूरी तरह से बंद रहती है। वर्ष 1890 से पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। 1890 में 10 जून वो दिन था जब रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में चुना गया।ब्रिटिश शासन के दौरान मिल मजदूरों को हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता था। यूनियन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने पहले साप्ताहिक अवकाश का प्रस्ताव किया जिसे नामंजूर कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत से 7 साल की सघन लड़ाई के बाद अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश बनाने पर राजी हुए। इससे पहले सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी मिलती थी।

दुनिया में इस दिन छुट्टी की शुरुआत इसलिए हुई, क्योंकि ये ईसाइयों के लिए गिरिजाघर जाकर प्रार्थना करने का दिन होता है। एक दिन आराम करने से लोगों में रचनात्मक उर्जा बढ़ती है। सबसे पहले भारत में रविवार की छुट्टी मुंबई में दी गई थी। केवल इतना ही नहीं रविवार की छुट्टी होने के पीछे एक और कारण है। दरअसल सभी धर्मों में एक दिन भगवान के नाम का होता है। जैसे कि हिंदूओं में सोमवार शिव भगवान का या मंगलवार हनुमान का। ऐसे ही मुस्लिमों में शुक्रवार यानि की जुमा होता है। मुस्लिम बहुल्य देशों में शुक्रवार की छुट्टी दी जाती है। इसी तरह ईसाई धर्म में रविवार को ईश्वर का दिन मानते हैं और अंग्रेजों ने भारत में भी उसी परंपरा को बरकरार रखा था।

उनके जाने के बाद भी यही चलता रहा और रविवार का दिन छुट्टी का दिन ही बन गया। कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तो को दरकिनार रख कर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है। इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है। हमारे सौर्य मंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है जो पूरी पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करता है। यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है। इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे, अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है। भगवान राम का जन्म भी इसी मुहूर्त काल में हुआ था। जैसा इस मुहूर्त के नाम से ही सपष्ट है कि जिसे जीता न जा सके, अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं, उसमें विजय प्राप्ति होती है। ऐसे में पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है।

अंग्रेज भी सन डे, रविवार को सैबथ डे अर्थात पवित्र दिन मान कर चर्च में शादियां करते हैं। कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है। इसलिए विवाह इतवार को रखे जाते हैं। ऐसा नहीं है। भारत में ही छावनियों तथा कई नगरों में रविवार की बजाय, सोमवार को छुट्टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को।

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बैंड बाजा और बारात, अब शादियां ही शादियां

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Vivah Muhurat 2022
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 04:38 PM
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- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

यूं तो शादियां (marriages) कोविड (covid-19) के दौरान भी नहीं रुकीं, परंतु जो लोग विशेष मुहूर्तों में विश्वास रखते थे उनके लिए सीमित मुहूर्तों के कारण काफी समस्याएं रहीं। खासकर प्रवासी भारतीयों के लिए जो विमान यात्राएं नहीं कर सके। कोरोना (corona) पाबंदी में ढील आने के बाद दिवाली ने कारोबार में एक उल्लास भरा है। वैसे यदि विवाहों की शुद्ध तिथियों को देखें तो नवंबर में काफी मुहूर्त हैं, परंतु अब चार माह का चातुर्मास पूरा होने को है, इस दौरान 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे। इसके बाद से शुभ विवाह की लग्न का शुभारंभ हो जाएगा। आगामी 19 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच कुल 12 दिन शादियों (marriages) का शुभ मुहूर्त है। देवउठनी ग्यारह के ठीक एक दिन बाद यानी 15 नवंबर को माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह हिन्दू धर्म के हर घर में संपन्न होगा। इसके बाद अगले दो माह में दिन विवाह के लिए शुभ माने गए हैं। इनमें विवाह या दूसरे शुभ कार्य आयोजित किए जा सकेंगे। इसके बाद 14 दिसंबर से खरमास या मलमास शुरू हो जाएंगे, जो अगले साल 2022 के मकर संक्रांति तक रहेगा, जिस दौरान एक बार फिर शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी।

विवाह के शुभ मुहूर्त

विवाह का पहला मुहूर्त 14 नवंबर 2021 को है नवंबर माह में मुहूर्त हैं: 14,15,16,20,21,22,28,29,30, दिसंबर माह में- 1,2,6,7,8,9,11,13 हैं

2022 के मुहूर्त- जनवरी : 22,23,24,25 फरवरी : 5,6,7,9,10,11,12,18,19,20,22 मार्च: 4,9 अप्रैल: 14, 15 1617,1920 21 22,23,24,27

कुछ पंचांगों तथा ज्योतिषीय मतभेदों के अनुसार विवाहों के मुहूर्त नवंबर 2022 के बाद ही निकलेंगे परंतु ऐसा नहीं है। उत्तर भारत के पंचांगो में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। पूरे साल 2022 में विवाहों के शुभ अवसर हैं। इस बार 2022 में अक्षय तृतीया 3 मई को पड़ेगी जो अबूझ मुहूर्त कहलाता है, पर भी बहुत विवाह संपन्न होते हैं।

व्यावहारिक कारण अधिकांश लोग पौष मास में विवाह करना शुभ नहीं मानते। ऐसा भी हो सकता है कि दिसंबर मध्य से लेकर जनवरी मध्य तक उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है, धुंध के कारण आवागमन भी बाधित रहता है और खुले आकाश के नीचे विवाह की कुछ रस्में निभाना, प्रतिकूल मौसम के कारण संभव नहीं होता। इसलिए 15 दिसंबर की पौष संक्रांति से लेकर 14 जनवरी की मकर संक्राति तक विवाह न किए जाने के निर्णय को ज्योतिष से जोड़ दिया गया हो।