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नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से होता है महाकल्याण

Navratri 2024

Navratri 2024

Navratri 2024 : नवरात्रि का पर्व दुनिया का महापर्व है। नवरात्रि को नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान लगातार नौ दिनों तक आदि शक्ति दुर्गा माता की भक्ति की जाती है। नवरात्रि के प्रत्येक नौ दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा तथा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा की भक्ति से भरा हुआ ग्रंथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से भक्त का महाकल्याण होता है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के जाप से भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

नवरात्रि में जरूर करना चाहिए दुर्गा सप्तशती का पाठ

दुर्गा सप्तशती एक अद्भुत ग्रंथ है। नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा की शक्ति में लीन भक्तों को दुर्गा सप्तशती का जाप जरूर करना चाहिए। जो भक्त नवरात्रि के अलावा सामान्य दिनों में भी दुर्गा सप्तशती का जाप करते हैं उन भक्तों के ऊपर अथवा उन भक्तों के परिवार के ऊपर कभी भी कोई कष्ट नहीं आता है। सामान्य दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने संभव नहीं हो पा रहा है तो दुर्गा माँ के भक्तों को नवरात्रि के पर्व में पूरे नौ दिन तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करना सैकड़ों तीर्थ यात्रा करने से भी बड़ा फल प्रदान करता है। नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान माँ दुर्गा की भक्ति से भरी हुई दुर्गा सप्तशती के पूरे इतिहास को हम यहां विस्तार पूर्वक बता रहे हैं।

कैसे हुई है दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति

नवरात्रि के पर्व में दुर्गा सप्तशती के पठन-पाठन के फायदे हमने आपको बताए हैं। नवरात्रि के शुभ अवसर पर दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति को भी आप यहां जान लीजिए।

आपको बता दें कि महाभारत ने दुर्गा को यशोदा एवं नंद गोप की पुत्री ‘नंदजा’ बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से महाभारत युद्ध में विजय के लिए दुर्गा स्तोत्र का पाठ करवाया है। गुप्तकाले के सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम (305-325 ईस्वी) के सिक्कों पर सिंहवाहिनी देवी का चित्र है। कुषाण राजा कनिष्क के सिक्कों पर भी चंद्र एवं सिंह के साथ देवी का चित्र है। शूलपाणि का दुर्गोत्सव-विवेक, दुर्गापूजा- प्रयोगतत्व, विद्यापति की दुर्गाभक्ति-तरंगिणी, विनायक (नंद पंडित) कृत नवरात्र-प्रदीप और उदयसिंह द्वारा 15वीं शती में लिखी दुगोत्सव-पद्धति जैसे ग्रंथ इसी विषय पर लिखे गए हैं। इन सबके अलावा सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है मार्कंडेय पुराण, जिसके 13 अध्यायों (78 से 90 तक) में ‘देवी- माहात्म्य’ वर्णित है। इन तेरह अध्यायों से बने स्वतंत्र ग्रंथ को ही दुर्गासप्तशती या चंडी पाठ कहते हैं। इन ग्रंथों के अतिरिक्त कालिका पुराण, बृहन्नन्दिकेश्वर पुराण एवं देवी पुराण में भी दुर्गा एवं उनकी पूजा का विशद वर्णन मिलता है।

मार्कंडेय पुराण का आरंभ वेदव्यास के शिष्य जैमिनि द्वारा महाभारत के विषय में मार्कंडेय ऋषि से पूछे गए चार प्रश्नों के साथ होता है। पहला, निर्गुण परमात्मा वासुदेव ने मानव रूप क्यों धारण किया? दूसरा, द्रौपदी पांच भाइयों की पत्नी क्यों बनी? तीसरा है कि बलराम ने ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त केवल तीर्थयात्रा से ही क्यों किया? चौथा, द्रौपदी के पांच अविवाहित पुत्र अश्वत्थामा द्वारा क्यों मारे गए, जबकि उनके सहायक महान पांडव और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे? मार्कंडेय इन प्रश्नों को सुनकर जैमिनि को विंध्याचल के बुद्धिमान पक्षियों के पास जाने की सम्मति देते हैं। इस प्रकार इन प्रश्नों के उत्तर पक्षियों द्वारा चौथे से सातवें अध्याय में दिए हुए हैं। पाश्चात्य विद्वान फ्रेडरिक ईडन पार्जिटर ने 1904 ईस्वी में मार्कंडेय पुसण का विद्वत्तापूर्ण अंग्रेजी अनुवाद किया था। वह लिखते हैं कि महाभारत में देवी के काली, भद्रकाली, महाकाली और चंडी नाम आए हैं, जबकि आठवीं शती के महाकवि भवभूति ने ‘मालती-माधवम्’ में देवी के लिए चामुंडा शब्द का प्रयोग किया है। सप्तशती का एक महिमाशाली श्लोक है- ‘सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।’ यह श्लोक मार्कंडेय पुराण (88/9) में भी है और देवी भागवत (7/30/66) में भी। देवी की महिमा से भरा यह प्रसिद्ध श्लोक नागौर जिले में स्थित दधिमथी माता मंदिर के सभा   मंडप में लगे अभिलेख में है। गणना करने पर यह अभिलेख 608 ईस्वी का बैठता है।

नवरात्रि के इस पावन पर्व में आप समझ गए होंगे कि माँ दुर्गा की भक्ति के लिए अवतरित हुई दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई है। नवरात्रि में इसी प्रकार की अनेक जानकारियां हम आपको देते रहेंगे।

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