Site icon चेतना मंच

नवरात्रि में क्यों की जाती है घट स्थापना, जानना है ज़रूरी

Navratri Ghat Sthapana

Navratri Ghat Sthapana

Navratri Ghat Sthapana : नवरात्र कहें या फिर नवरात्रि कहे। नवदुर्गा शब्द भले ही अलग-अलग हो लेकिन सब का अर्थ एक ही है। देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों- शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता कात्यायनी ,कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा, अर्चना एवं उपासना होने के कारण इसे नवदुर्गा एवं नौ दिनों तक अनुष्ठान चलने के कारण इसे नवरात्रि कहा जाता है ।

नवरात्रि के प्रथम दिन होती है घट स्थापना

नवदुर्गा/ नवरात्रि के इस अनुष्ठान में प्रथम दिन,जिसे प्रतिपदा कहा जाता है। इसी दिन घट स्थापना की जाती है। घट शब्द का अर्थ है कलश अथवा घड़ा या कुंभ होता है। लेकिन इस शब्द का एक और अर्थ काया या शरीर भी है। नवरात्रि के पूजन में कलश या घट स्थापना अत्यंत विधि-विधान से की जाती है । कलश संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि कलश के मुख में विष्णु, गले में रुद्र, मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में समस्त देवियां, कोख में समस्त समुद्र, पर्वत, पृथ्वी के सभी सात महाद्वीप निवास करते है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद अपने 6 वेदांगों (जिन्हें कल्प, निरुक्त ,छन्द ,ज्योतिष ,शिक्षा एवं व्याकरण कहते हैं ) सहित कलश में निवास करते है। इस प्रकार कलश रूपी पिंड में संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। एक माध्यम, एक ही केंद्र में समस्त ब्रह्मांड व समस्त देवताओं के दर्शन के लिए कलश की स्थापना की जाती है। कलश को सभी देव शक्तियों, सभी तीर्थो, सभी नदियों, समुद्रो, महाद्वीपों, समस्त वेदों, समस्त प्राणियों का संयुक्त प्रतीक मानकर विधिपूर्वक उसकी स्थापना की जाती है और पूजन किया जाता है।

कैसे हुई घट यानी कलश की उत्पत्ति

समुद्र मंथन का जो आख्यान (वर्णन) है, वह हमें बताता है कि कुंभ यानी कलश की उत्पत्ति देवों एवं दानवों  द्वारा किए गए समुद्र मंथन से हुई है। जिसे साक्षात भगवान विष्णु ने धारण किया। यह अमृत कलश है जो कि हमारी जिजीविषा (जीने की इच्छा) का प्रतीक है। आत्मा की अमृता का प्रतीक है। घट की स्थापना हमेशा जल से आपूर्ति करके ही की जाती है क्योंकि घट शरीर है और उसमें भरा जल आत्मा है। जो की विराट ब्रह्म अर्थात परमात्मा का ही अंश है। इसके जल में समस्त तीर्थ, समस्त देवता, समस्त प्राणी, प्राण आदि स्थित रहते है। कुंभ साक्षात शिव,विष्णु और ब्रह्मा है। आदित्य ,वसु ,रूद्र, सपैतृक, विश्व देव आदि समस्त कार्यों के फलदाता देवता इसके जल में सदैव स्थित रहते हैं।

कलश के आधार है जल देवता

जल के देवता वरुण को घट जल का आधार माना जाता है। वेदों में वरुण देव को बंधनों से मुक्ति प्रदान करने वाले देवता के रूप में माना गया है। इसलिए केवल नवरात्रि में ही नहीं बल्कि सभी मांगलिक कार्यों में घट स्थापना कर वरुण देव का आवाहन किया जाता है कि वह सभी देवताओं के साथ पधार कर कार्य की विघ्न बाधाएं समाप्त कर मंगल करे।

घट किसका प्रतीक है

जलापूरित घट आत्मा की उज्ज्वलता एवं उसकी निरंतरता का प्रतीक है। कितनी भी प्रतिकूल परिस्थितियों क्यों ना हो, जीवन की कामना का परित्याग ना हो। प्राणी निरंतर प्रयासरत रहे कि जीवन निर्बाध गति से आगे बढ़ता रहे। घट कों शरीर और जल को परमपिता परमात्मा का अंश आत्मा मानकर रची गई कबीर दास की यह साखी भी आत्मा एवं परमात्मा के संबंध को इसी प्रकार व्याख्यायित करती है-

जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहर भीतर पानी

फूटा कुंभ जल जलहि समाना यह तथ कह्यो गियानी

घट में जो जल है वह जल घट के आकार का है‌। जिस प्रकार अनुष्ठान के संपूर्ण होने पर उसे नदी या समुद्र में विसर्जित किया जाएगा तो वह उसी का रूप ले लेगा। उसी प्रकार मनुष्य के शरीर का अनुष्ठान पूर्ण हो जाने पर उसकी आत्मा भी शरीर रूपी घट को त्याग कर परमात्मा में विलीन हो जाती है।

अयोध्या में हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल, कई दशकों जा रहा रामलीला का आयोजन

ग्रेटर नोएडा – नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। 

देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें  फेसबुक  पर लाइक करें या  ट्विटर  पर फॉलो करें।
Exit mobile version