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New Parliament House : संसद के उद्घाटन विवाद में भी विपक्ष को मिली ‘पटकनी’, जानिए विश्लेषकों का मत

New Parliament House

Even in the opening controversy of the Parliament, the opposition got 'patni', know the opinion of the analysts

भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर राजनीतिक हल्कों में तूफान चल रहा है। देश की सत्ता पर सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर इस मुददे को ‘आपदा में अवसर’ की भांति भुनाने का प्रयास कर रही है। वहीं, अपने आपको सबसे पुरानी पार्टी कहने वाली कांग्रेस इस संसद के मुद्दे के बलबूते पर विपक्षी एकता का ताना-बाना बुनने की फिराक में है। चेतना मंच ने इस मुददे पर देशभर के अनेक राजनीतिक विश्लेषकों से बात की है। अधिकतर राजनीति विश्लेषकों का मत है कि नए संसद भवन (New Parliament House) के उद्घाटन वाले इशू पर भाजपा ने एक बार फिर विपक्ष को ‘पटकनी’ दे दी है। अपने प्रचार तंत्र के जरिए भाजपा सबको यह समझाने में कामयाब हो गई है कि इस मामले को मुद्दा बनाकर कांग्रेस पार्टी व उसके सहयोगी दल विदेशों तक में देश की छवि धूमिल कर रहे हैं।

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क्या कहना है विश्लेषकों का ?

इस मुद्दे पर पूछे जाने पर वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक मनोज रघुवंशी कहते हैं कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति करें अथवा प्रधानमंत्री, यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं था, जितना इसे बना दिया है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री रघुवंशी कहते हैं कि अब तो स्थिति यह हो गयी है कि भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मुद्दे को भी ‘आपदा में अवसर’ समझकर भुना लिया है। अपने प्रचार तंत्र के जरिए भाजपा तथा पीएम (PM) देश को यह बताने में कामयाब हो गए हैं कि विपक्ष हताशा और निराशा के कारण संसद भवन के मामले को जबरन बड़ा मुद्दा बना रहा है। इस मुद्दे से दुनिया में भारत की छवि खराब हो सकती है। दूसरे देशों के लोग तो यही कहेंगे ना कि अपने संसद भवन के गृह प्रवेश के मुददे पर भी भारत के सारे सांसद एक साथ नहीं हैं।

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इसी प्रकार की राय अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने व्यक्त की है। हम अगली कुछ कड़ियों में सभी विश्लेषकों की राय से आपको हू-ब-हू अवगत कराएंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का एक दूसरा पक्ष भी है। इस पक्ष के विश्लेषकों का कहना है कि राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग हैं। ऐसे में राष्ट्रपति को उद्घाटन समारोह में ना बुलाना सरासर गलत है। इस पक्ष का यह भी कहना है कि इस मुद्दे पर जिस प्रकार विपक्षी दलों ने एकजुटता दिखाई है। यदि यह एकजुटता 2024 के लोकसभा चुनाव तक यूं ही बनी रही तो यह एकता भाजपा को बड़ी चुनौती देने में कामयाब हो जाएगी। साथ ही इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने यह संदेश भी स्थापित करने का प्रयास किया है कि पीएम (PM) मोदी तानाशाही पर उतर आए हैं। पूरे विपक्ष के विरोध के बावजूद वे ‘मनमर्जी’ से काम कर रहे हैं। विश्लेषक मानते हैं कि इस मामले को आदिवासी समाज के अपमान से जोड़ने में विपक्ष पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। यह अलग बात है कि विपक्ष ने एक नैरेटिव बिल्ड करने का प्रयास किया है।

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