Thursday, 28 March 2024

Political Analysis : प्रियंका के हाथ में “हाथ” का भविष्य?

 विनय संकोची प्रियंका गांधी के तीखे तेवरों से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जोश तो आया है। प्रियंका की कार्यप्रणाली चर्चा का…

Political Analysis : प्रियंका के हाथ में “हाथ” का भविष्य?

 विनय संकोची

प्रियंका गांधी के तीखे तेवरों से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जोश तो आया है। प्रियंका की कार्यप्रणाली चर्चा का विषय भी बनी है और आम जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता में भी वृद्धि हुई है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि लोगों में ऐसे नेता अपेक्षाकृत जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं, जिनकी बातें स्पष्ट और तेवर आक्रामक होते हों और ये गुण प्रियंका गांधी में हैं। भाषणों और भीड़ के बीच आक्रामकता दिखाने में प्रियंका पीछे नहीं रही हैं। छात्रा से गैंगरेप का मामला हो, सोनभद्र में जमीन विवाद में आदिवासियों की हत्या की घटना हो, कोविड-19 काल में प्रवासी मजदूरों के लिए बसें उपलब्ध कराने की बात हो या फिर अब लखीमपुर में हिंसा की वारदात का मुद्दा हो प्रियंका की सक्रियता और निडरता ने लोगों का ध्यान हमेशा खींचा है।

प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में वास्तव में उस दिन आईं, जब होने पूर्वी उत्तर प्रदेश कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। इससे पहले प्रियंका अपने पिता स्वर्गीय राजीव गांधी, मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए प्रचार करती करती रही थीं। प्रियंका की पूर्ण राजनीतिक सक्रियता के बाद इस तरह की आवाजें उठने लगी है कि उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया जाए, जिससे कांग्रेस का प्रदेश में बनवास समाप्त हो सके। लेकिन यह विचार न तो कांग्रेस के सभी नेताओं को स्वीकार होगा और न ही इससे कांग्रेस का परचम एकदम से उत्तर प्रदेश में लहराने लगेगा। तमाम लोगों का मानना है कि प्रियंका में इतना दम तो नहीं है, जो उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने लायक विधायक जिता कर ले आएं।

ऐसे ही कुछ अन्य नेता मानते हैं कि प्रियंका गांधी की यूपी में ही नहीं पूरे देश में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। लेकिन तीन दशक से अधिक समय से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टियों पर निर्भर रही है और पार्टी के वोट प्रतिशत में साझेदारी कम हुई है। यूपी में कांग्रेस इतनी अशक्त और अप्रभावी हो चुकी है कि उसे सत्ता तक पहुंचाना आसान तो बिल्कुल भी नहीं है। कोई चमत्कार ही हो जाए तो बात दूसरी है।

इस बात को अस्वीकार किए जाने का कोई कारण नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार कई मोर्चों पर विफल रही है, इसी सच की रोशनी में कुछ नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी के लिए यह नि:स्संदेह कुछ कर दिखाने का एक अच्छा मौका है। उन्हें कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए ताकि वह कांग्रेस और देश को नई दिशा दे सकें। परंतु इस भाव और उम्मीद के चलते स्वीकार तो यह भी करना होगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ बहुत नीचे है और सब कुछ इतना आसान तो बिल्कुल भी नहीं है।

अब पार्टी का एक बड़ा धड़ा इस बात को सहर्ष स्वीकार करता है कि प्रियंका गांधी में हुनर है, क्षमता है, दृष्टिकोण है और लोगों को प्रेरित-प्रभावित करने की कला है। इसी के साथ प्रियंका गांधी जुझारू और प्रभावशाली वक्ता भी हैं, इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर पार्टी का एक धड़ा प्रियंका गांधी के चेहरे को ट्रंप कार्ड के रूप में देखता है और चमत्कार की उम्मीद रखता है।

जहां पार्टी के कई नेताओं की राय है कि अगर प्रियंका को कांग्रेस की बागडोर थमा दी जाए तो कांग्रेस के सभी सदस्य यहां तक कि जी-23 नेता भी उनके साथ खड़े हो जाएंगे। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। राजनीतिक संभावनाओं का खेल है। आम राय तो यही है कि यदि प्रियंका को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश कर, उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए तो सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। यही बात राहुल गांधी के मामले में भी कांग्रेस का एक वर्ग कहता और सोचता है। लेकिन राहुल या प्रियंका के चेहरे पर चुनाव लड़कर यूपी में सरकार बन सकती है, फिलहाल तो यह कपोल कल्पना ही प्रतीत होती है। लेकिन इस प्रयोग से कांग्रेस की स्थिति में सुधार की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है।

प्रियंका गांधी राहुल गांधी से 15 साल बाद राजनीति में आईं। योजना कुछ ऐसी थी कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे और प्रियंका गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालेंगी लेकिन अभी ऐसा कुछ होने वाला नहीं लगता है। उत्तर प्रदेश की कमान प्रियंका गांधी के पास है और उनके सामने पार्टी की सरकार बनवाने या पार्टी को सम्मानजनक सीटें दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है, बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 के परिणाम प्रियंका गांधी का राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे, इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है। फिलहाल खेल आसान नहीं है और यह देखना रोचक होगा कि प्रियंका गांधी तुरुप का पत्ता साबित होती है या नहीं।

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