क्रिकेट में अनुशासन की सीमा कहां तक? जाने आईसीसी नियमों की जानकारी

क्रिकेट में खिलाड़ियों का मैदान के बाहर आचरण भी उतना ही अहम माना जाता है जितना मैदान के अंदर प्रदर्शन। हाल ही में इंग्लैंड क्रिकेट टीम से जुड़ा एक मामला चर्चा में है, जिसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मैच खत्म होने के बाद या सीरीज के ब्रेक में क्रिकेटर्स शराब का सेवन कर सकते हैं?

Cricket ICC Rules
क्रिकेट आईसीसी के नियम (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar24 Dec 2025 03:01 PM
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दरअसल, गाबा में दूसरा टेस्ट आठ विकेट से हारने के बाद इंग्लैंड की टीम क्वींसलैंड के नूसा शहर में चार रातों के लिए रुकी थी। यह सीरीज के बीच का ब्रेक था। इसी दौरान खिलाड़ियों पर अत्यधिक शराब सेवन के आरोप लगे। टीम के हेड कोच ब्रेंडन मैकुलम ने इस ट्रिप को खिलाड़ियों के “रिफ्रेशमेंट” के तौर पर बताया, जबकि टीम के मैनेजिंग डायरेक्टर रॉब की इसमें मौजूदगी नहीं थी। कुछ रिपोर्ट्स ने इस ट्रिप की तुलना बैचलर पार्टी से भी की, जिसके बाद अब आईसीसी या टीम स्तर पर जांच संभव मानी जा रही है।

आईसीसी के नियम क्या कहते हैं?

बता दें कि इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) के कोड ऑफ कंडक्ट में खिलाड़ियों के व्यवहार को लेकर साफ दिशानिर्देश दिए गए हैं। नियमों के मुताबिक, सीरीज के दौरान, मैच के बीच ब्रेक, अभ्यास सत्र, टीम से जुड़े आधिकारिक समय इन सभी परिस्थितियों में खिलाड़ियों से अपेक्षा की जाती है कि वे नशीले पदार्थों और शराब के सेवन से बचें, खासकर ऐसे किसी भी व्यवहार से जो टीम, खेल या दर्शकों की छवि को नुकसान पहुंचाए। हालांकि आईसीसी पूरी तरह से निजी जीवन में दखल नहीं देता, लेकिन यदि शराब का सेवन अनुशासनहीनता, सार्वजनिक विवाद या प्रदर्शन पर असर डालता है, तो इसे नियम उल्लंघन माना जा सकता है।

मैच ब्रेक के दौरान सख्ती क्यों?

मैच या सीरीज के बीच मिलने वाला ब्रेक खिलाड़ियों के लिए रिकवरी और मानसिक ताजगी का समय होता है। इस दौरान शराब का सेवन प्रतिक्रिया समय को धीमा कर सकता है, फिटनेस पर असर डाल सकता है, टीम अनुशासन और फोकस को नुकसान पहुंचा सकता है और 

इसी वजह से आईसीसी और टीम मैनेजमेंट इस दौरान अतिरिक्त सतर्कता बरतते हैं।

नियम तोड़ने पर क्या कार्रवाई हो सकती है?

यदि कोई खिलाड़ी आईसीसी कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन करता पाया जाता है, तो उस पर आर्थिक जुर्माना, मैच फीस कटौती, एक या अधिक मैचों का बैन, गंभीर मामलों में लंबा प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इसके अलावा, संबंधित देश का क्रिकेट बोर्ड अपनी आंतरिक अनुशासनात्मक कार्रवाई भी कर सकता है।

हालिया मामलों से बढ़ी सख्ती

पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो और तस्वीरों के चलते कई युवा खिलाड़ियों को चेतावनी दी जा चुकी है। आईसीसी अब ऐसे मामलों को पहले से ज्यादा गंभीरता से ले रहा है और टीम मैनेजमेंट को भी खिलाड़ियों पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।

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अरावली की गोद में छिपा है बड़ा रहस्य, सुनकर हो जाएंगे इमोशनल

अरावली की पहाड़ियों पर स्थित अलवर का बाला किला अपने रहस्यमयी इतिहास और ‘कुबेर के खजाने’ की लोककथा के लिए प्रसिद्ध है। अरावली को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच जानिए इस किले का इतिहास, पर्यावरणीय महत्व और इससे जुड़े अनसुलझे रहस्य।

Aravalli
अरावली का बड़ा रहस्य
locationभारत
userअसमीना
calendar24 Dec 2025 02:33 PM
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आज जब देश के अलग-अलग हिस्सों में अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए आवाज उठ रही है, जब पहाड़ों को काटने, खनन और अंधाधुंध विकास के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं ऐसे समय में अलवर का बाला किला हमें सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि एक गहरी चेतावनी भी देता है। अरावली की उन्हीं पहाड़ियों पर खड़ा यह किला जिनकी उम्र 2.5 अरब साल बताई जाती है। यह किला इंसान की लालच भरी नजर और प्रकृति की टूटती हुई ढाल चुपचाप देख रहा है

अरावली है प्राकृतिक कवच

अरावली सिर्फ पत्थरों की श्रृंखला नहीं है। यह उत्तर भारत के लिए एक प्राकृतिक कवच है जो राजस्थान के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकता है, बारिश के पानी को जमीन में समेटता है और जीवन को संतुलन देता है लेकिन अफसोस की बात यह है कि जिस अरावली को कभी देवताओं की धरती माना जाता था आज वही विकास और मुनाफे की बलि चढ़ती जा रही है। इसी अरावली की एक ऊंची और मजबूत चोटी पर अलवर का बाला किला आज भी शान से खड़ा है मानो आने वाली पीढ़ियों से सवाल कर रहा हो, क्या तुम मुझे बचा पाओगे?

बाला किला की गोद में छिपे हैं कई रहस्य

बाला किला बाहर से जितना शांत और साधारण दिखता है इसके भीतर उतनी ही गहरी रहस्यमयी कहानियां दबी हुई हैं। एक दौर था जब यहां आम लोगों का आना लगभग नामुमकिन था। कहा जाता है कि इस किले में प्रवेश के लिए जिले के एसपी तक से अनुमति लेनी पड़ती थी। आज भले ही सुरक्षा गार्ड के रजिस्टर में नाम लिखवाकर लोग अंदर चले जाते हों लेकिन किले के भीतर कदम रखते ही एक अजीब सी खामोशी महसूस होती है जैसे अरावली खुद अपने जख्मों की कहानी सुना रही हो।

छिपा है कुबेर का कुबेर का बेशकीमती खजाना

इस किले से जुड़ा सबसे बड़ा और सबसे चर्चित रहस्य है ‘कुबेर का खजाना’। लोककथाओं के अनुसार, बाला किले की गहराइयों में धन के देवता कुबेर का बेशकीमती खजाना छिपा हुआ है। कहा जाता है कि मुगल, मराठा और जाट शासकों ने इस खजाने को पाने के लिए पूरी ताकत लगा दी लेकिन आज तक कोई भी सफल नहीं हो सका। कुछ लोग इसे सिर्फ कहानी मानते हैं लेकिन कुछ का विश्वास है कि यह खजाना अरावली की रक्षा के लिए बनाया गया एक रहस्यमयी संकेत है जो लालच से छेड़छाड़ करने वालों को कभी पूरा नहीं मिलता।

हसन खान मेवाती ने रखी थी नींव

इतिहास बताता है कि 1492 ईस्वी में हसन खान मेवाती ने इस दुर्ग की नींव रखी थी। करीब 5 किलोमीटर लंबा और 1.5 किलोमीटर चौड़ा यह किला अपनी सैन्य संरचना के लिए आज भी विशेषज्ञों को हैरान करता है। इसकी दीवारों में बने 446 छोटे छेद जिनसे 10 फुट लंबी बंदूकों से निशाना लगाया जाता था उस दौर की रणनीतिक समझ को दिखाते हैं। 66 बुर्जों से हर गतिविधि पर नजर रखी जाती थी लेकिन इसके बावजूद इस किले ने कभी बड़े युद्ध की आग नहीं देखी।

बाला किला को क्यों कहा जाता है कुंवारा किला

यही वजह है कि बाला किला ‘कुंवारा किला’ कहलाता है। मुगल, मराठा और जाट जैसे ताकतवर शासकों का कब्जा रहने के बावजूद यहां खून-खराबा नहीं हुआ। शायद अरावली की गोद में बसे इस किले का स्वभाव ही शांत था या फिर यह धरती खुद हिंसा को स्वीकार नहीं करती थी।

बाला किला का इतिहास है खास

मुगल इतिहास में भी बाला किले का खास स्थान रहा है। बाबर ने अपनी जीत के बाद यहां सिर्फ एक रात बिताई थी, जबकि शहजादे सलीम यानी जहांगीर ने इसे अपना बसेरा बनाया। आज भी ‘सलीम महल’ उस दौर की कहानी कहता है। जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, कृष्णा पोल और अंधेरी पोल जैसे छह विशाल दरवाजे इस किले की मजबूती के साथ-साथ उसकी भव्यता भी दर्शाते हैं।

अरावली को लेकर प्रदर्शन

आज जब अरावली को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तब बाला किला सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं रह जाता। यह हमें याद दिलाता है कि अगर हमने अरावली को खो दिया तो हम सिर्फ पहाड़ नहीं बल्कि अपना इतिहास, अपनी विरासत और अपनी सुरक्षा भी खो देंगे। शायद ‘कुबेर का खजाना’ सोने-चांदी में नहीं बल्कि इन पहाड़ियों को बचाए रखने में ही छिपा है। अरावली की गोद में खड़ा यह किला आज भी किसी ऐसे इंसान का इंतजार कर रहा है जो खजाना खोजने नहीं बल्कि इस धरती को समझने आए।

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असली धुरंधर को नहीं जानते है तो जान लीजिए

लेकिन लोग जिस धुरंधर फिल्म को परदे पर देख रहे है वह वास्तव में असली धुरंधर है ही नहीं। असल धुरंधर तो भारत माँ का वो लाडला बेटा था जो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए किसी बुरे सपने से काम नहीं था।

असल जिंदगी के धुरंधर रविंद्र कौशिक
असल जिंदगी के धुरंधर रविंद्र कौशिक
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar24 Dec 2025 10:20 AM
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Ravindra Kaushik : धुरंधर शब्द तो आप सभी ने सुना होगा। आजकल सोशल मीडिया पर धुरंधर शब्द खूब ट्रेंड कर रहा है। हर जगह धुरंधर शब्द की खूब चर्चा है। सोशल मीडिया से लेकर टीवी और अखबारों में इस शब्द की खूब चर्चा हो रही है। जी हां हम बात कर रहे है हाल में रिलीज हुई धुरंधर फिल्म की। आजकल सोशल मीडिया से लेकर टीवी और अखबारों तक इस फिल्म का जबरदस्त क्रेज दिख रहा है। इस फिल्म को लोगों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। लेकिन लोग जिस धुरंधर फिल्म को परदे पर देख रहे है वह वास्तव में असली धुरंधर है ही नहीं। असल धुरंधर तो भारत माँ का वो लाडला बेटा था जो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए किसी बुरे सपने से काम नहीं था।  

भारत माँ के लाडले बेटे थे रविंद्र कौशिक

भारत माँ के लाडले बेटे तथा असली धुरंधर का नाम रविंद्र कौशिक था। भारत माँ के लाडले बेटे तथा असल जिंदगी के धुरंधर रविंद्र कौशिक की असल जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। आपको बता दें कि भारत माँ के इस लाडले बेटे तथा असल जिंदगी के धुरंधर का जन्म भारत में योद्धाओ की भूमि कहे जाने वाले राजस्थान में हुआ था। भारत माँ के इस लाडले बेटे तथा असल जिंदगी के धुरंधर रविंद्र कौशिक से पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की पुलिस, पाकिस्तान की सेना यहाँ तक की सरकार भी डरती थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत माँ की सेवा करते हुए भारत माँ के इस सुपुत्र ने पाकिस्तान के जेल में ही शहादत दे दी थी। भारत माँ के सुपुत्र रविंद्र कौशिक शहीद तो हो गए लेकिन अपने पीछे अपनी वीर पुरुष की छवि छोड़ गए। 

जब भारत की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ की नजर पड़ी थी इस धुरंधर के ऊपर 

भारत माँ के इस लाडले बेटे तथा धुरंधर रविंद्र कौशिक को एक्टिंग का काफी शौक था। उनका यही शौक उनके असल जिंदगी के धुरंधर बनने का कारण बना। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक बार एक थिएटर प्रस्तुतीकरण के दौरान रविंद्र कौशिक की अभिनय प्रतिभा पर भारत की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) की नजर पड़ी। भारत माँ के लाडले रविंद्र कौशिक ने अपने नाटक में एक भारतीय सेना के अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जिसे दुश्मन देश के सैनिक पकड़ लेते है। लेकिन वो किसी भी हालात में देश से जुड़ी अहम् जानकारी को साझा नहीं करते है। उनके इस अभिनय से प्रभावित होकर भारत की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ ने उन्हें अपनी गुप्त सेवाओं के लिए उपयुक्त माना। रॉ में चयन होने के बाद भारत माँ के लाडले बेटे रविंद्र कौशिक को करीब दो साल तक कड़ी और गोपनीय प्रशिक्षण प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ा। उन्हें इस्लाम से जुड़ी अहम शिक्षा दी गई। उर्दू भाषा की समझ होने के कारण उन्होंने बहुत जल्दी ही नई भाषा और संस्कृति को आसानी से आत्मसात कर ली। इसके साथ - साथ उन्हें कई गुप्त मिशन पर भी भेजा गया, जहा उन्होंने सौपें गए हर काम को बड़ी ही कुशलतापूर्वक निभाया। उनकी इन सफलताओ को देखते हुए भारत की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ ने उन्हें साल 1975 में पड़ोसी मुल्क तथा भारत के सबसे बड़े दशम पाकिस्तान में एक बेहद ही संवेदनशील मिशन के लिए भेजा। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य एक बनावटी तथा गुप्त पहचान के साथ पाकिस्तान में रहते हुए भारत को पाकिस्तान की हर सैन्य जानकारी तथा उनकी हर गतिविधि की जानकारी उपलब्ध करना था। भारत की सबसे बड़ी ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ ने उन्हें इस मिशन के लिए एक खाकास नाम भी दिया था। भारत माँ के इस लाडले बेटे को इस मिशन के लिए नबी अहमद शाकिर नाम की एक नई पहचान दी गई। सत्तर के दशक के करीब भारत की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ ने उन्हें पाकिस्तानी पहचान के साथ साथ पाकिस्तान से जुड़े अहम् दस्तावेज भी उपलब्ध कराए। रॉ ने उन्हें जन्म प्रमाणपत्र से लेकर शैक्षणिक प्रमाण-पत्र और पासपोर्ट वीजा तक हर कागजात पूरी तरह वैध रूप में तैयार करके दिए। अपनी इसी पहचान के साथ वह पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर के निवासी नबी अहमद के रूप में जाने जाने लगे।

पाकिस्तान का छात्र तक बन गया था भारत माँ का लाडला धुरंधर 

पाकिस्तान पहुंचने के बाद भारत माँ के लाडले बेटे रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची के एक प्रमुख लॉ यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर वहां कानून से जुड़ी पढ़ाई पूरी की। स्नातक की पढ़ाई पूरी होते ही उन्हें पकिस्ता की सेना में कमीशन मिला और बाद में कार्यशैली से प्रभावित होकर पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पाकिस्तानी सेना में मेजर की उपाधि तक प्राप्त की। अपने मिशन के दौरान रविंद्र कौशिक ने एक पाकिस्तानी महिला से विवाह भी किया और एक बेटी के पिता भी बने। साल 1979 से लेकर 1983 के बीच उन्होंने लगातार पाकिस्तान तथा पाकिस्तानी सेना से जुड़ी अहम जानकारी भारत को महत्वपूर्ण को भेजीं, जिससे भारत की रक्षा रणनीति को मजबूती मिली। आपको बता दें कि उनका यह मिशन इतना खुफिया था कि उनके माँ बाप तक को उनके जासूस बनने की भनक तक नहीं थी। उन्होंने अपने माता से झूट बोलते हुए यह कहा था कि वो दुबई में कारोबार करते है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक मौके पर उन्हें बहुत ही गोपनीय ढंग से कुछ वक्त के लिए अपने देश भारत आने की इजाजत दी गई। इस दौरान वो अपने साथ कुछ उपहार लेकर आए, लेकिन अपने मिशन से जुड़ा रहस्य किसी के साथ साझा नहीं किया। परिवार की तरफ से शादी की बात को लेकर दबाब बढ़ते देखकर उन्होंने अपनी शादी दुबई में होने की बात कहकर मामले की गंभीरता को संभाला।  

1983 में बदला खेल

हालाकिं साल 1983 में परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई। भारत पाक सीमा पार करते वक्त भारतीय जासूस इनायत मसीहा गिरफ्तार हो गए। भारतीय जासूस इनायत मसीहा की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में उन्होंने रविंद्र कौशिक की पहचान उजागर कर दी। इसके बाद रविंद्र कौशिक को गिरफ्तार कर पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में से एक मुल्तान के जेल में दाल दिया गया। रविंद्र कौशिक को जासूसी के जुर्म में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई। हलाकि बाद में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को बदलते हुए रविंद्र कौशिक को आजीवन कारावास कर दिया। पाकिस्तान जेल में लंबे समय तक खराब स्वास्थ्य के चलते उनकी हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती गई , इसके बाद साल 2001 में दिल का दौरा पड़ने से भारत माँ के लाडले बेटे तथा असल जिंदगी के धुरंधर रविंद्र कौशिक पाकिस्तानी जेल में ही शहीद हो गए। अपने देश के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया। रविंद्र कौशिक को उनके इस जज्बे के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत ब्लैक टाइगर की उपाधि से सम्मानित किया। Ravindra Kaushik