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Political News-क्या इसलिए सीएम पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह?

मुख्य खबर – पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के इस्तीफे के बाद ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कांग्रेस भी बीजेपी की तरह चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति पर काम कर रही है? क्या ऐसा करने से कांग्रेस को फायदा होगा?

बीजेपी ने इसी साल, जुलाई से सिंतंबर के बीच तीन राज्यों में तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को हटाकर नये सीएम बनाए हैं। इसमें उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई और गुजरात में विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल शामिल हैं।

बीजेपी-कांग्रेस में कॉमन है ये बात

बीजेपी और कांग्रेस दोनों में एक बात समान है कि दोनों ही हाईकमान नियंत्रित पार्टी है। हालांकि, कांग्रेस लंबे समय से ऐसी पार्टी रही है जबकि बीजेपी में मोदी-अमित शाह के बाद हाईकमान संस्कृति मजबूत हुई है।

भारत के राजनीतिक दलों में परिवारवाद या हाईकमान कल्चर का होना कोई नई बात नहीं है। हालांकि, इन दोनों फैक्टर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि परिवार या हाईकमांड का जनाधार कितना मजबूत है।

फिलहाल, बीजेपी के हाईकमान नरेंद्र मोदी हैं जिनका व्यापक जनाधार है। वह अपने बलबूत किसी भी चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं। यह बात राहुल या प्रियंका गांधी के बारे में नहीं कही जा सकती। कम से कम पिछले दो लोकसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन से तो ऐसा ही जाहिर होता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो राहुल गांधी कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी से खुद ही चुनाव हार गए थे।

कांग्रेस में ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने बलबूते 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 117 में से 77 सीटों पर जीत दिलाई थी। इस चुनाव में बीजेपी को मात्र दो सीटें मिली थीं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि चुनावों में लगातार हार का सामना करने वाला हाईकमान क्या लोकप्रिय नेता को सीएम पद से हटाने का नैतिक अधिकार रखता है?

दो गुटों में बंट चुकी है पार्टी

हालांकि, इस बदलाव से यह संकेत भी मिलता है कि कांग्रेस बुजूर्ग नेताओं से छुटकारा पाना चाहती है और युवा नेतृत्व को कमान संभालने का रिस्क लेने के लिए तैयार कर रही है।

राहुल गांधी शुरु से ही पार्टी में युवाओं को आगे बढ़ाने और उन्हें नेतृत्व सौंपने को आतुर दिखते हैं, जबकि सोनिया गांधी ओल्ड गार्ड के साथ खड़ी दिखती हैं।

ऐसे में कांग्रेस पार्टी अंदरुनी तौर पर दो धड़ों में बंटी हुई दिखती है। एक ओर बुजूर्ग और घाघ नेताओं से घिरी सोनिया गांधी हैं जो पार्टी में पुराने नेताओं का बर्चस्व बनाए रखने मे यकीन करती हैं। दूसरी ओर राहुल और प्रियंका गांधी हैं, जो पार्टी को पुरानी जकड़नों से आजाद कराना चाहते हैं, ताकि देश के युवाओं और युवा नेताओं को पार्टी की ओर आकर्षित किया जा सके।

मौके पर चौका मारने से चूक गए राहुल

कांग्रेस पार्टी के अंदर दो गुटों के बनने की वजह भी खुद राहुल गांधी ही हैं। पुराने नेताओं को राहुल गांधी की क्षमता पर भरोसा नहीं है क्योंकि, पिछले दो आम चुनावों में वह कोई कमाल नहीं दिखा पाए हैं।

राहुल गांधी के पास सरकार चलाने या सरकार का हिस्सा होने का भी कोई अनुभव नहीं है। यूपीए के दस साल के दौरान राहुल ने कोई पद नहीं लिया। जबकि, वह चाहते तो अपनी कार्यशैली व क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर पार्टी और आम लोगों के बीच अपनी छवि बेहतर बना सकते थे।

युवाओं के सामने हैं तीन विकल्प
राहुल गांधी युवाओं को भी आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। अरविंद केजरीवाल (53) और योगी आदित्यनाथ (49) की उम्र राहुल गांधी (51) के बराबर ही है। ये दोनों ही नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने की क्षमता रखते हैं।

मोदी की लोकप्रियता के बावजूद केजरीवाल लगातार दो बार दिल्ली में बीजेपी को बुरी तरह हरा चुके हैं। इसी तरह योगी आदित्यनाथ ने भी दिखा दिया है कि मोद-अमित शाह की जोड़ी बीजेपी के अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह उन्हें हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकती।

युवाओं के सामने केजरीवाल, योगी और राहुल गांधी के तौर पर तीन विकल्प मौजूद हैं। फिलहाल, राहुल गांधी की तुलना में अरविंद केजरीवाल और योगी आदित्यनाथ काफी मजबूत दावेदार हैं। फिलहाल, राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने समकालीन नेताओं के मुकाबले खुद को बेहतर साबित करने की है। पंजाब में किया गया यह परिवर्तन अंतत: राहुल गांधी की क्षमता और कार्यशैली की ही परीक्षा साबित होने वाला है। क्योंकि, कैप्टन अमरिंद सिंह तो 80 के होने वाले हैं और अपने पॉलिटिकल करियर की अंतिम पारी खेल रहे हैं।

– संजीव श्रीवास्तव

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