Prashant Kishor आखिर गांधी परिवार को क्यों पसंद नहीं आया प्रशांत किशोर का फॉर्मूला?

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calendar02 Dec 2025 01:57 AM
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Prashant Kishor : जाने माने चुनाव एवं राजनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर आखिरकार विराम लग गया है। उन्होंने स्वयं ट्वीट करके कांग्रेस से मिल रहे आफर को ठुकराए जाने की जानकारी दी है। हालांकि कहा जा रहा है कि आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, प्रशांत किशोर के अनुभव व रणनीति का लाभ लेना चाहती थी। लेकिन प्रशांत का फार्मूला कांग्रेस को पसंद नहीं आया।

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आपको बता दें कि पिछले दिनों संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पराजित होेने के कारण कांग्रेस की राजनीतिक छवि धुमिल हुई है। इस वक्त कांग्रेस बेहद ही नाजुक मोड़ से गुजर रही है। कांग्रेस को फिर से जीवित करने का फार्मूला चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस और गांधी परिवार के समक्ष रखा था। लेकिन इस पर मुहर लगाना कांग्रेस और गांधी परिवार के भविष्य को लेकर बड़ा जोखिम उठाने जैसा था, जिसके लिए न तो गांधी परिवार तैयार था, न पार्टी के दूसरी पंक्ति के कद्दावर नेता।

प्रशांत किशोर ने मंगलवार को ट्वीट कर बताया, ''मैंने एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 का हिस्सा बनने, पार्टी में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के कांग्रेस का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। मेरी राय में पार्टी की अंदरूनी समस्याओं को ठीक करने के लिए, कांग्रेस को मुझसे ज्यादा लीडरशिप और मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है।''

वहीं, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी ट्वीट कर बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष ने एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 का गठन किया और प्रशांत किशोर को जिम्मेदारी देते हुए ग्रुप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने स्वीकार करने से मना कर दिया। हम पार्टी को दिए गए उनके प्रयासों और सुझावों की सराहना करते हैं।

प्रशांत किशोर की बात से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस में अभी बहुत ही ज्यादा सुधार की आवश्यकता है। यहां तक कि वह खुद इसके लिए अपने आप को कम मान रहे हैं। उनका मानना है कि पार्टी में नेतृत्व के अलावा बहुत कमियां हैं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है। वहीं, प्रशांत किशोर को कांग्रेस लेने के लिए पूरी तरह तैयार थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक एम्पार्वड एक्शन ग्रुप बनाकर प्रशांत किशोर को उसका सदस्य बनाकर पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन प्रशांत किशोर ने जिस तरह से पार्टी में बदलाव करने के लिए प्रस्ताव दिए थे, उन पर कांग्रेस पूरी तैयार नहीं थी। इसी के चलते दोनों के बीच बातचीत बनते-बनते बिगड़ गई।

कांग्रेस प्रशांत किशोर के फॉर्मूले, रणनीतिक कौशल और चुनाव प्रबंधन का पूरा लाभ तो लेना चाहती है लेकिन उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने के लिए वह आजादी नहीं देना चाहती है जिसकी प्रशांत किशोर को दरकार थी। प्रशांत किशोर के प्लान के मुताबिक कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को सौंपने की थी। कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व इस पर राजी नहीं था, क्योंकि 2019 के बाद से इसीलिए कांग्रेस का अध्यक्ष का चुनाव अभी तक नहीं हो सका। राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। यूपीए अध्यक्ष के पद पर भी प्रशांत किशोर ने किसी सहयोगी दल का नेता देने का प्रस्ताव दिया था, जिस पर भी कांग्रेस राजी नहीं थी। कांग्रेस नेता हमेशा से विपक्षी गठबंधन की बात करते हैं, लेकिन नेतृत्व देने के लिए सहमत नहीं होते हैं।

कांग्रेस में गांधी परिवार की साख को बचाए रखने का भी सवाल है। पीके के शामिल होने के बाद पार्टी में जो भी फैसला लिए जाते उसका श्रेय गांधी परिवार के बजाय प्रशांत किशोर को जाता। ऐसे में गांधी परिवार की साख को भी गहरा झटका लगता, क्योंकि कांग्रेस में हाईकमान का कल्चर है। यहां पर गांधी परिवार के प्रति वफादारी ही कांग्रेस की असल वफादारी मानी जाती है। प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने से सबसे ज्यादा असर गांधी परिवार के ऊपर पड़ने की संभावना थी, जिसके चलते पीके को पार्टी में सुझाव देने तक के ही अधिकार देने के पक्ष में दिख रही थी. बिना गांधी परिवार के कांग्रेस का अस्तित्व फिलहाल नहीं।

प्रशांत किशोर ने अपने प्लान में कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव का सुझाव रखा था तो राज्यों में गठबंधन का भी एक फॉर्मूला दिया था। सोनिया गांधी ने प्रशांत की प्रेजेंटेशन और उनके पार्टी में शामिल होने पर विचार करने के लिए कांग्रेस नेताओं की समिति का गठन किया था। इस कमेटी ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में था कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में एंट्री से पहले बाकी सभी राजनीतिक दलों से दूरी बना लें और पूरी तरह कांग्रेस के लिए समर्पित हो जाएं।

इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, इसके बाद ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व इसे लेकर उहापोह में था कि प्रशांत किशोर या किसी भी एक व्यक्ति को इतनी छूट देना कांग्रेस और नेतृत्व दोनों के लिए ठीक नहीं होगा। इससे राहुल गांधी की छवि भी प्रभावित होगी और प्रशांत किशोर एक नए सत्ता केंद्र बन जाएंगे। ऐसे में प्रशांत किशोर की कांग्रेस में शामिल होने के अरमानों पर एक बार फिर से पानी फिर गया है।

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Azam Khan : अखिलेश का साथ छोड़ कहां जाएंगे आजम खान?

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calendar26 Apr 2022 07:38 PM
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Azam Khan news in hindi : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद सपा के दमदार नेता शिवपाल यादव जहां भाजपा में जाने को तैयार है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी ही स्थिति से रामपुर विधायक आजम खान (Azam Khan) के सामने भी है। राजनीतिक सूत्रों की माने तो, यदि आजम (Azam Khan) और अखिलेश के बीच खटपट होती है या अखिलेश, आजम का साथ साथ छोड़ते हैं तो आजम खान के सामने क्या विकल्प बचेगा। आजम खान किस राजनीतिक दल को चुनेंगे, यह सवाल राजनीतिक गलियारों में चल रहा है।

Azam Khan news in hindi

उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में इन दिनों सपा विधायक आजम खान हैं। आजम खान सीतापुर जेल में बंद हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव से आजम खान की जब से नाराजगी की बात सामने आई है, दूसरे दलों के नेताओं का जेल में उनसे मिलने की कवायद शुरू कर दी है। आजम खान ने शिवपाल यादव से लेकर कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम से तो मुलाकात की, लेकिन सपा विधायक रविदास मल्होत्रा को बैरंग वापस कर दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आजम खान अब अखिलेश यादव से अलग नई सियासी राह तलाश रहे हैं? अगर हां, तो उनके पास क्या-क्या राजनीतिक विकल्प हैं?

आपको बता दें कि विधायक आजम खान के खिलाफ दर्ज 78 मुकदमों में से 77 मामलों में उन्हें अलग-अलग अदालतों से जमानत मिल चुकी है। अब केवल एक मामला बचा हुआ है, उसमें भी सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन अभी कोर्ट का फैसला नहीं आ सका है।

आजम खान लंबे वक्त से जेल में हैं, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव महज एक बार उनसे मिलने गए थे। उनकी रिहाई के लिए भी सपा लड़ती नजर नहीं आई। ऐसे में आजम खान के जेल से बाहर आने से पहले ही उन्हें लेकर सियासी तानाबना बुना जाने लगा है। पिछले छह दिन में आजम खान से लेकर उनके परिवार से नेताओं की मुलाकात का सिलसिला जारी है।

बताया जाता है कि राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने रामपुर जाकर आजम परिवार से मुलाकात की तो अखिलेश के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले शिवपाल यादव शुक्रवार को सीतापुर जेल में आजम खान से मिले थे। सोमवार को कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम ने जेल पहुंचकर आजम खान से मुलाकात की। दलित नेता और आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद भी आजम खान से मिलने के लिए तैयार बैठे हैं तो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने तो आजम खान को अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता तक भेज दिया है।

सपा का एक प्रतिनिधिमंडल विधायक रविदास मल्होत्रा और सचिव अनुज मिश्रा की अगुवाई में रविवार को सीतापुर जेल पहुंचा था, लेकिन आजम खान ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। ऐसे में आजम खान का सपा नेताओं से न मिलना, साफ संकेत है कि अब आजम खान की सपा से दूरी बन रही है. अब मुद्दा सपा द्वारा आजम का साथ छोड़ने, मुस्लिमों की बात न करने तक पहुंच गई है।

आजम के सामने विकल्प

राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चाओं को देखें तो आजम खान के सामने बसपा, राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस, औवेसी की एआईएमआईएम ही विकल्प बचते हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव में इन दलों का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा है। ऐसे में आजम को यह भी देखना होगा कि कौन सा दल उनके लिए उपयुक्त हो सकता है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि वह शिवपाल यादव की पार्टी को यूपी खड़ा कर सकते हैं या फिर अपनी ही पार्टी बना सकते हैं। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि आजम खान क्या कदम उठाते हैं।

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Presidential Election 2022: राष्ट्रपति चुनाव : जानिए सभी पार्टियों के वोटों का गणित

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calendar02 Dec 2025 01:54 AM
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Presidential Election 2022: पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव को संपन्न होने के बाद अब देश में एक और अहम चुनाव होने वाला है। यह वह चुनाव है, जिस पर न केवल हर भारतीय, बल्कि विदेशों की भी नजर टिकी होती है। इस चुनाव के संपन्न होने के बाद जो व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित होता है, वह बेहद ही अहम होता है। यह चुनाव है, राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election)। राष्ट्रपति के चुनाव में अब केवल तीन माह का ही समय शेष रह गया है। सत्ताधारी दल समेत अन्य दलों के प्रतिनिधि भी इस चुनाव में प्रतिभाग करते हैं।

Presidential Election 2022

आपको बता दें कि जुलाई 2022 में राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म हो रहा है। पूरे देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल 10,98,882 वोट हैं। जबकि देश में एक सांसद के वोट की वैल्यू 708 है।राज्यसभा सीट 233 है, जबकि लोकसभा की 543 सीटे हैं। इसके अलावा देश के सभी राज्यों की विधानसभा सीटों की संख्या 4,120 है।

राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों के विधानसभा के सदस्य वोट डालते हैं। 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में अभी 230 सांसद हैं। आने वाले दो महीनों में खाली सीटों पर चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 राज्यसभा सांसद राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डालते हैं। वहीं, 543 सदस्यों वाली लोकसभा में अभी 540 सांसद हैं। तीन सीटें खाली हैं। देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट की वैल्यू सबसे ज्यादा 208 होती है। वहीं, इसके बाद झारखंड और तमिलनाडु के एक विधायक के वोट की वैल्यू 176 तो महाराष्ट्र के एक विधायक के वोट की वैल्यू 175 होती है। बिहार के एक विधायक के वोट की वैल्यू 173 होती है। सबसे कम वैल्यू सिक्किम के विधायकों की होती है। यहां के एक विधायक के वोट की वैल्यू सात होती है। इसके बाद नंबर अरुणाचल और मिजोरम के विधायकों का आता है। यहां के एक विधायक के वोट की वैल्यू आठ होती है।

उत्तर प्रदेश की भूमिका यूपी में सांसद का कुल वोट 42,480 हैं। वहीं यूपी देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य है। राज्य के एक विधायक की वोट का वैल्यू 208 है। जबकि राज्य में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश विधानसभा के कुल वोट का वेटेज 83,824 होता है। जो कि किसी भी अन्य राज्य की तुलना में काफी ज्यादा है।

अब बात राज्य में हर पार्टी के सांसदों के वोटों के वैल्यू की कर लें। उत्तर प्रदेश में कुल 80 सांसद हैं। यहां सबसे ज्यादा बीजेपी के 62 सांसद हैं। जबकि राज्य में एक सांसद के वोट का वेटेज 708 है। ऐसे में भाजपा सांसदों के वोट का कुल वेटेज 43,896 है, जबकि भाजपा गठबंधन की एक अन्य पार्टी अपना दल के दो सांसद हैं। अपना दल के इन दो सांसदों के वोट का वेटेज 1416 हो जाता है। भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सांसद बसपा के हैं। राज्य में बसपा के दस सांसद हैं, जिनके वोट का वेटेज 7,080 है। इसके अलावा सपा के पांच सांसदों के वोट का वेटेज 3,540 है। वहीं कांग्रेस के एक मात्र सांसद होने के कारण उसके पास 708 वोट का वेटेज है।

यूपी में एक विधायक के वोट का वेटेज 208 होता है। राज्य में कुल 403 विधानसभा सीट है। इसमें से सबसे ज्यादा 255 विधायक भाजपा के पास हैं। तो राज्य में बीजेपी विधायकों के वोट का कुल वेटेज 53,040 हुआ। एनडीए गठबंधन के दूसरे दल अपना दल (सोनेलाल) के पास राज्य में 12 विधायक हैं तो उनके वोट का वेटेज 3,060 होता है। एनडीए गठबंधन के साथी निषाद पार्टी के पास राज्य में छह विधायक हैं। जिससे उनके वोट का वेटेज 1,248 है। ऐसे में एनडीए के कुल 273 विधायकों के वोट का वेटेज 57,348 हो जाता है। विपक्ष का कितना है वोट वेटेज

एनडीए के खिलाफ यूपी में मुख्य विपक्षी सपा गठबंधन की बात करें तो समाजवादी पार्टी के पास 111 विधायक हैं। सपा के कुल विधायकों के वोट का वेटेज 23,088 है। इसी गठबंधन के एक अन्य दल रालोद के पास आठ विधायक हैं तो उनके वेटेज 1,664 हो जाता है। इस गठबंधन के सुभासपा के पास छह विधायक हैं, जिनके वोट का वेटेज 1,248 होता है। इसके अलावा बसपा के पास राज्य में मात्र एक विधायक है तो उसके विधायकों के वोट का वेटेज 208 है। वहीं कांग्रेस को दो विधायकों के वोट का वेटेज 416 और राजा भैया के जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के विधायकों के दो विधायकों के वोट का वेटेज भी 416 है।