अंशु नैथानी
जैसे-जैसे अयोध्या में राम मंदिर बनने की गति तेज हो रही है वैसे ही भगवान राम को लेकर देशभर में राजनीति (Politics On Ram) भी तेज हो गई है। अचानक कई राजनीतिक पार्टियों के नेता रामचरितमानस पर सवाल उठाने लगे हैं। कोई इसे दलित विरोधी और महिला विरोधी बता रहा है तो कोई इस पर बैन लगाने की बात कर रहा है ।बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के बयान के बाद यूपी के सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरितमानस में जाति संबंधित दोहे की आलोचना करते हुए इस चौपाई को ही हटाने की बात कह डाली है।
ताजा मामले में कर्नाटक के लेखक और रिटायर प्रोफेसर के एस भगवान ने तो यह तक कह डाला कि भगवान राम आदर्श नहीं थे। उन्होंने शंबूक का वध किया वे आदर्श किस तरह हो सकते हैं। इसके अलावा भी उन्होंने कई विवादित बातें की हैं जिसमें भगवान राम और माता सीता के मदिरापान करने की बात कही गई है।
कौन बना रहा राम को खलनायक ?
सदियों से हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले बहु-संख्यक लोग भगवान राम को अपना आदर्श मानते आए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय समाज में आदर्श की प्रतिमूर्ति माने जाते हैं, जो एक आदर्श राजा और मर्यादा के प्रतीक माने गए हैं।
गांधी जी का सपना था रामराज्य –
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्र भारत के लिए रामराज्य की कल्पना की थी। ऐसा रामराज जहां शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं, जहां ताकतवर से निर्बल को भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। जहां हर किसी को न्याय मिलता है।
भारतीय संस्कृति के आदर्श हैं राम
राम को प्रतीक मानकर ही एक आदर्श राज्य, आदर्श व्यक्ति,आदर्श परिवार, आदर्श समाज का प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश की गई थी। लेकिन आज राम को नायक ना बता कर खलनायक बनाने की कोशिश की जा रही है। रामायण और उस में दर्शाए गए प्रसंगों की व्याख्या लोग अलग-अलग तरह से कर रहे हैं अलग-अलग प्रकरणों को उठाकर भगवान राम और रामचरित मानस से जुड़े प्रसंगों को दलित और महिला विरोधी बताने की कोशिश हो रही है। ऐसा नहीं है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम या रामचरितमानस का इससे पहले विरोध नहीं हुआ, लेकिन जब से राम मंदिर का मुद्दा राजनीति की धुरी बना , तब से एक धड़ा भगवान राम और अयोध्या में राम मंदिर विवाद और इसके निर्माण को वोट बैंक से जोड़कर देखने लगा। तब से रामचरित मानस की आलोचना भी मुखरता से हो रही है। राम के नाम का इस्तेमाल (Politics On Ram) राजनीतिक दल वोट की राजनीति के लिए अपने एजेंडा के मुताबिक करते आ रहे हैं। भगवान राम मीमांसा से अछूते कभी नहीं रहे। सदियों से रामचरित की मीमांसा होती आई है और आगे भी होती रहेगी ।लेकिन एक संस्कृति के आदर्श पर बार-बार प्रहार करने और उसे बदनाम करने की आखिर वजह क्या हो सकती है ? जबकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां अधिसंख्य लोग राम जैसा बेटा, राम जैसा राजा, राम जैसा पति, राम जैसा भाई बनने की कल्पना करते हैं। भगवान राम को सत्य और न्याय के समकक्ष रख कर देखा जाता है। ऐसे में बहुसंख्यक समाज के सबसे बड़े आदर्श या सबसे बड़े नायक पर बार-बार कुठाराघात करना यह कौन से नए सांस्कृतिक उन्माद की तरफ इशारा कर रहा है। राम का विरोध ज्यादातर वह राजनीतिक दल या नेता कर रहे हैं जो बीजेपी के धुर विरोधी हैं ,क्या राम सिर्फ बीजेपी की बपौती हैं। मतलब सीधा है- बीजेपी और संघ परिवार राम के नाम और राम मंदिर के निर्माण को अपने एजेंडे में शामिल कर बहुसंख्यक हिन्दुओं के वोट की राजनीति करने में सफल रहे। बीजेपी के इसी एजेंडे और राजनीति की काट के लिए ही राम के नाम का विरोध विपक्षी दल के नेताओं के द्वारा किया जाता रहा है। विरोधियों का यह सवाल कई अर्थों में विशुद्ध रूप से राजनीतिक नजर आ रहा है। लेकिन एक समाज की संस्कृति और आस्था. को .. राजनीतिक लाभ हानि का विषय बना कर सनसनी फैलाना कितना उचित है?
Ramcharitmanas Row
राम के नाम को आखिर बदनाम क्यों किया जा रहा है? राम नाम की राजनीति भाजपा ने की थी अब अन्य राजनीतिक दल भी अस्तित्व, पहचान और प्रासंगिक होने की होड़ में राम के विरोध को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने से पीछे नही हट रहे हैं!
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