Saturday, 23 November 2024

सूद्र शब्द का अर्थ : स्वामी प्रसाद मौर्य को करारा जवाब दिया मानस मर्मज्ञ ने, पढ़कर आप भी मानेंगे

Ramcharitmanas controversy: / ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी Ramcharitmanas controversy : डॉ. भगवान दास पटैरया, महासचिव, श्रीरामचरितमानस राष्ट्रीय समिति गोस्वामी…

सूद्र शब्द का अर्थ : स्वामी प्रसाद मौर्य को करारा जवाब दिया मानस मर्मज्ञ ने, पढ़कर आप भी मानेंगे

Ramcharitmanas controversy: / ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी

Ramcharitmanas controversy : डॉ. भगवान दास पटैरया, महासचिव, श्रीरामचरितमानस राष्ट्रीय समिति

गोस्वामी तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे समाज के सभी वर्गों के हितों के लिए ऐसे जीवन सूत्र हैं, जिनका अनुशरण करने से इहलोक और परलोक दोनों सुधर सकते हैं। यह महाकाव्य भगवान शिव की प्रेरणा से ही गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है। इसके प्रारंभ में ही प्रथम काण्ड (बालकाण्ड) के 36वें दोहे की प्रथम चोपाई में उन्होंने लिखा है-

संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी रामचरितमानस कवि तुलसी।। (1/36/1)

Ramcharitmanas controversy

यह लिखने के साथ ही उन्होंने इसमें सुधार करने की बात भी लिखी है – सुजन सुमति सुनि लेहु सुधारी’ (1/36/ 2) अर्थात् सज्जन लोग अपनी सद्बुद्धि से इसमें सुधार कर सकते हैं।  विचारणीय तथ्य यह है कि इसके लिए दो शर्तें है एक तो सुधार करने वाला सुजन अर्थात् सज्जन होना चाहिए और दूसरे वह अपनी सुमति अर्थात् सद्बुद्धि से यह कार्य करें। उल्लेखनीय है कि कुछ विद्वानों ने श्रीरामचरितमानस की कुछ चौपाइयों में, जिसमें शीर्षकान्तर्गत चौपाई भी शामिल है, सुधार किया है, किंतु संत समाज ने इस सुधार को इस तर्क के साथ अस्वीकार कर दिया कि जब यह महाकाव्य भगवान शिवजी की प्रेरणा से लिपिबद्ध किया गया है, तब हम उसमें सुधार कैसे कर सकते हैं। हमें चौपाइयों के संदर्भित परिप्रेक्ष्य में सकारात्मक सही अर्थ की खोज करनी चाहिए। आजकल कुछ लोग श्रीरामचरितमानस की कुछ चौपाइयों का अर्थ का अनर्थ करने में लगे हैं। उनकी शंका निवारणार्थं कुछ विवेचना निम्नांकित चौपाई के संदर्भ में प्रस्तुत है-

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी ।। (5/59/6)

यह सुंदरकाण्ड के 59वे दोहे की छठवीं चौपाई है। इस पर विवेचना करने से पूर्व सिद्धांत रूप में यह समझ लेना आवश्यक है कि यह किसने कहा है, किससे और कब कहा है तथा किस परिस्थिति में कहा है। श्रीरामचरितमानस के सभी प्रसंगों में इस प्रकार वस्तुस्थिति समझने की आवश्यकता है। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारी विचारधारा का प्रभाव अर्थ समझने पर पड़ता है। यह प्राकृतिक नियम है कि जिसके मन में जैसे भाव होंगे, उसे संपूर्ण प्रकृति और समाज वैसा ही प्रतीत होगा। सुख की स्थिति में हमें चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है किंतु विरह की स्थिति में यही दुखमय लगता है। विरहाकुल सीताजी अपनी व्यथा व्यक्त करती हुई कहती है-

पावकमय ससि प्रगट न आगी मानहुँ मोहि जानि हतभागी।। (5/12/9)

उपर्युक्त चौपाई में यही भाव प्रकट है अर्थात् यदि हम सकारात्मक भाव से विचार करेंगे तो हमें श्रीरामचरितमानस की चौपाई सद्शिक्षा प्रदान करेगी और हमें सावधान करेगी कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जिसके मन में जैसा भाव होता है, उसे सब कुछ अपने भाव के अनुसार दिखाई देता है। जब श्रीरामजी धनुष यज्ञ में जाते हैं, वो भक्तजन उन्हें ईश्वर के रूप में, राक्षसगण भयानक रूप में और राजा जनक के लोग एक सगे संबंधी के रूप में उनका दर्शन करते हैं –

जिन्ह के रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।। (1/241/4)
रहे असुर छल छोनिप वेसा। तिन्ह प्रभु प्रगट काल सम देखा।। (1/241/77)
जनक जाति अवलोकहिं कैसे। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें।। (1/242/2)

यही भाव श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों के संदर्भ में भी समझना चाहिए। सर्वप्रथम इस चौपाई में ”ताड़ना” शब्द को सही अर्थ में समझना होगा। ताड़ना के कई अर्थ होते हैं। सामान्यतया इसके प्रचलित अर्थ है डांटना, पीटना, सुधार हेतु कष्ट देना, समझना (जानना) आदि पर यहाँ पर ताड़ना का अर्थ ”समझना” है। कई बार हम कहा करते हैं कि हमने तो पहले से ”ताड़” लिया था कि अमुक घटना घटित होने वाली है। दूसरा तथ्य यह है कि यह कथन समुद्र का है, जो उसने उस समय श्रीरामजी से कहा था जब उनकी तीन दिन तक की जाने वाली प्रार्थना पर उसने ध्यान नहीं दिया था, जिसके कारण उन्होंने उस पर धनुष तान दिया था। इस संदर्भ में केवल एक चौपाई का नहीं, बल्कि समुद्र के पूरे कथन पर विचार करना आवश्यक है। उसने यह कहा था कि-

गगन समीर अनल जल धरनी । इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ।। (5/59/2)
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी ।। (5/59/6)

समुद्र अर्थात् जल, प्रकृति के पंच महाभूतों में से एक है। वह कहता है कि इनको सूक्ष्मता से समझने की आवश्यकता है। यदि आपने मेरी जड़ता को पहले से ताड़ लिया होता तो आप अपने तीन दिवस मुझसे प्रार्थना करने में बर्बाद न करते, बल्कि लक्ष्मणजी के सुझाव अनुसार पहले ही मुझ पर धनुष चढ़ा देते। इसी संदर्भ में उसने पंच महाभूतों की तरह दूसरों को भी भलीभांति ताड़ने (समझने) का सुझाव दिया है। अब विचार करें कि उसने किससे किसकी तुलना की है। उपर्युक्त दोनों चौपाइयों के क्रम में देखें तो ज्ञात होगा कि ढोल की तुलना गगन (आकाश) से, समीर (हवा) की गवाँर से, अनल (अग्नि) की सूद्र से, जल की पशु से और धरनी (पृथ्वी) की तुलना नारी (स्त्री) से की है। यदि हम सकारात्मक सोच से विचार करें तो इसका अर्थ इस प्रकार से निकलता है।

1) ढोल –
ढोल केवल आकाश (स्पेस) में बज सकता है। ढोल बजाते समय उसे ताड़ना पड़ता है अर्थात् पहले यह देखना होता है कि वह ठीक से कसा (बँधा) है या नहीं। यदि वह ढीला होगा तो उस पर चोट पड़ते ही वह टूट सकता है। ठीक से बँधा होने पर उसे इसके लिए ताड़ना (समझना) पड़ता है कि उसके किस अंग पर किस गति से चोट की जाए ताकि उससे वांछित स्वर प्राप्त हो सके। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि ढोल को केवल पीटने की बात नहीं है, उसे ताडकर (समझकर) उस पर सही प्रकार से बजाने के उद्देश्य से चोट की जाती है न कि उसे फाड़ने के उद्देश्य से।

2) गवांर –
गवांर उस व्यक्ति को कहते हैं जो अपनी बुद्धि का उपयोग न करके जो जैसा कहे उसकी ही बात मानकर कार्य करने लगता है। गवांर की तुलना समीर (हवा) से की गई है। हवा कब किस दिशा में चल पड़े आम लोगों की समझ से बाहर है, हालांकि अब वैज्ञानिक बता देते हैं कि कहाँ कितना दबाव है और इस कारण हवा की गति और दिशा क्या होगी, इस सिद्धांत के अनुसार गवॉर के साथ व्यवहार करते समय उसके इस स्वभाव को ताड़ (समझ) लेना आवश्यक है।

3) सूद्र-
सूद्र की तुलना अग्नि से की गई है। जिस प्रकार अग्नि शुद्ध और अशुद्ध सभी को जलाकर भस्म करके उसे पवित्र कर देती है, उसी प्रकार सूद्र भी समाज को पवित्र करता है। सूद्र शब्द को समझने के लिए हमें सबसे पहले अपने शरीर को समझ लेना चाहिए। समाज के जिन चारों वर्णों का शास्त्रों में उल्लेख है उनका समावेश हमारे शरीर में है। हम सभी मानव सूद्र रूप में ही पैदा होते हैं, पर संस्कारों के माध्यम से ही हम ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य बनते हैं। यदि उचित संस्कार न मिले तो हम सभी सूद्र ही है। ब्राह्मण को द्विज कहा गया है। द्विज का अर्थ है दूसरा जन्म अर्थात् जब ब्राह्मण बालक का जनेऊ संस्कार होता है तभी वह ब्राह्मण बनता है और तभी तक वह ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है, जब तक वह त्रिकाल संध्या करके ब्राह्मण धर्म का पालन करता है, अन्यथा वह सूद्र ही है।

4) पसु-
पसु की तुलना जल से की गई है। जल का स्वभाव है कि वह गुरुत्वाकर्षण के कारण ऊपर से नीचे की ओर बहता है। ऊपर ले जाने के लिए उस पर यंत्र (मशीन) का प्रयोग करना पड़ता है। इसी प्रकार से पशु को ताङना (समझना) पडता है कि वह किस दिशा में जा रहा है और हमें उसे किस दिशा में ले जाने की आवश्यकता है। एक भेड़ जिस दिशा में चलती है, सभी उसका अनुशरण करके उसके पीछे-पीछे चल पड़ती हैं। इसी को भेड़ चाल कहते हैं, अतः हमें पशु की इस प्रवृत्ति को ताड़कर (समझकर ) उसके साथ व्यवहार करना चाहिए।

5) नारी-
नारी शब्द की तुलना धरनी (पृथ्वी) से की गई है। जिस प्रकार पृथ्वी – सहनशीलता की सीमा है, उसी प्रकार नारी भी सहनशील होती है, किंतु जब उन पर अत्याचार बढ़ जाता है तब ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार पृथ्वी में भूकंप / भूचाल आने पर सब अस्त-व्यस्त हो जाता है, नारी भी यह सब कर सकती है। अतः हमें नारी के स्वभाव को ताड़कर (समझकर) उनसे व्यवहार करना चाहिए। एक बात और महत्वपूर्ण है जो समुद्र ने कही है। उसने पंचमहाभूतों (गगन, समीर, अनल, जल और धरनी) को ‘जड़’ कहा है। ‘जड़’ का अर्थ जो व्यवहार में बुद्धि का उपयोग नहीं करे।

नारी हृदय प्रधान होती है और पुरूष बुद्धि प्रधान। इसका उदाहरण श्रीरामचरितमानस में पुष्प वाटिका प्रसंग में मिलता है, जहाँ पर प्रथम बार श्रीरामजी और सीताजी एक दूसरे का दर्शन करते हैं। सीताजी के जाने पर उनकी छवि को श्रीरामजी अपने मस्तिष्क में और सीताजी उनकी छवि को अपने हृदय में धारण करती है। इस संदर्भ में समुद्र ने ‘जड़’ शब्द का प्रयोग करके हमें सावधान किया है कि नारी हृदय प्रधान होती है, अत: उसके इस स्वभाव को ताड़कर (समझकर) उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त (संदर्भित) चौपाई से किसी का अनादर नहीं हुआ है। विचारणीय तथ्य है कि जिन भगवान श्रीराम ने अधम जाति की नारी शबरी झूठे बेर खाए और निषादराज को गले से लगाया, उनके परमभक्त गोस्वामी तुलसीदास जी किसी का अपमान कैसे कर सकते हैं। लोग अपनी समझ से अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने तो सारे जगत को सीताराममय समझ कर उनकी वंदना की है, फिर वें किसी का अपमान करने के उद्देश्य से कैसे लिख सकते हैं। श्रीरामचरितमानस के प्रारंभ में ही उन्होंने लिखा है कि –

सीय राममय सब जग जानी। करउं प्रनाम जोरि जुग पानी।। (1/8/2)

इस आलेख के लेखक डा. भगवान दास पटैरया श्रीरामचरितमानस राष्ट्रीय समिति के महासचिव हैं, अमे​रिका की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी तक से उच्चतम शिक्षा प्राप्त पटैरया जी प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।

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