Friday, 3 May 2024

RBI : चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर 5.2 फीसदी रहने का अनुमान : रिजर्व बैंक

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष (2023-24) के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान बृहस्पतिवार को मामूली…

RBI : चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर 5.2 फीसदी रहने का अनुमान : रिजर्व बैंक

नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष (2023-24) के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान बृहस्पतिवार को मामूली घटाकर 5.2 प्रतिशत कर दिया। हालांकि रिजर्व बैंक ने यह माना कि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ने से मुद्रास्फीति के मामले में भविष्य में जोखिम पैदा हो सकता है। फरवरी में हुई पिछली मौद्रिक समीक्षा में मुद्रास्फीति के 5.3 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया था।

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सितंबर और दिसंबर में बढ़ सकती है मुद्रास्फीति

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने वित्त वर्ष 2023-24 की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक के नतीजों की घोषणा की। उन्होंने कहा कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के कच्चे तेल के उत्पादन को घटाने के फैसले से मुद्रास्फीति का परिदृश्य गतिशील बना हुआ है। दास ने कहा कि सामान्य मानसून के बीच यदि कच्चे तेल के दाम औसतन 85 डॉलर प्रति बैरल पर रहते हैं तो चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत रहेगी। जून तिमाही में मुद्रास्फीति के 5.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। सितंबर और दिसंबर तिमाही में यह बढ़कर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच सकती है। उसके बाद मार्च, 2024 की तिमाही में इसके फिर से घटकर 5.2 प्रतिशत पर आने का अनुमान है।

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रबी फसल का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान

दास ने कहा कि जब तक मुद्रास्फीति संतोषजनक दायरे में नहीं आती है, केंद्रीय बैंक की इसके खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि रबी फसल का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है, जिससे खाद्य वस्तुओं के दाम नरम होंगे। हालांकि मांग-आपूर्ति की सख्त स्थिति पशु चारे के दाम बढ़ने से इन गर्मियों में दूध के दाम ऊंचे स्तर पर बने रहेंगे। रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के दायरे में रखने का लक्ष्य दिया गया है। खुदरा मुद्रास्फीति दो माह से रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है। फरवरी में यह 6.44 प्रतिशत पर थी। गवर्नर ने कहा कि प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां भविष्य में मुद्रास्फीति के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में बढ़ती अनिश्चितता और आयातित मुद्रास्फीतिक दबाव पर भी नजदीकी नजर रखने की जरूरत है।

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