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भारत के संविधान की आत्मा को सात महान आत्माओं ने दिया था आकार

Samvidhan Divas

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Samvidhan Divas : मंगलवार 26 नवंबर 2024 को भारत ने अपना 75वां संविधान दिवस (Constitution Day) मनाया है। संविधान दिवस मात्र एक औपचारिकता नहीं है। संविधान दिवस (Constitution Day) के मौके पर हमें भारत के महान संविधान के इतिहास, संविधान की विशेषताओं तथा संविधान के निर्माताओं के विषय में जानने का बड़ा अवसर मिलता है। तमाम व्यवस्तताओं के कारण हम भारत के महान संविधान को हर रोज याद नहीं रख पाते हैं। संविधान दिवस (Constitution Day) हमें संविधान की याद दिलाता है तथा संविधान की मूल भावना की कदर करना भी सिखता है। इस आलेख में हम आपको बता रहे हैं कि भारत के संविधान (Constitution of India) की आत्मा यानि कि उसका मूल स्वरूप कैसे तैयार हुआ? साथ ही आम बोलचाल की भाषा में संविधान का पूरा इतिहास और महत्व भी आपको बताते हैं।

भारतीय संविधान को संविधान मसौदा समिति ने दिया था आकार

भारतीय संविधान का जो लिखित प्रारूप हमारे सामने आज मौजूद है। संविधान का वह स्वरूप संविधान मसौदा समिति ने हमें दिया था। भारतीय संविधान  को अंतिम रूप देने के लिए संविधान मसौदा समिति का गठन किया गया था। संविधान मसौदा समिति का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) की अध्यक्षता में किया गया था। संविधान मसौदा समिति ने ही संविधान का लिखित प्रारूप तैयार किया था तथा उस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। इसी कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक (Father of Indian Constitution) माना जाता है। संविधान दिवस के मौके पर जितनी चर्चा संविधान की हुई है उतनी ही चर्चा संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव अंबेडकर की भी हुई है। डा. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में गठित संविधान मसौदा समिति में कुल सात सदस्य थे। संविधान मसौदा समिति के सात सदस्य इस प्रकार थे- डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष), अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, के.एम. मुंशी, एन. गोपालस्वामी आयंगर, मौहम्मद साहुल्ला, देबी प्रसाद खेतान तथा एन माधव राव समिति के सदस्य थे।

संविधान मसौदा समिति ने ही डाली थी संविधान में आत्मा

संविधान दिवस पर हमें उन लोगों को जरूर याद करना चाहिए जिन्होंने भारतीय संविधान के अंदर आत्मा विकसित की थी। हम आपको संविधान मसौदा (Constitution Drafting Committee) समिति के साथ सदस्यों के नाम बता चुके हैं। यहां संविधान मसौदा समिति के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय भी अवश्य जान लेते हैं। भारतीय संविधान की मसौदा समिति के सदस्यों का परिचय इस प्रकार है।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर (सभापति)  (Dr. B.R. Ambedkar)

मुख्य रचनाकार डॉ. अंबेडकर विद्वान, समाज सुधारक और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। सामाजिक न्याय के कट्टर समर्थक के तौर पर उन्होंने सुनिश्चित किया कि संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए और दबे-कुचले समुदायों के अधिकारों की रक्षा हो सके।

अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर (Alladi Krishnaswamy Iyer)

प्रख्यात न्यायविद और अधिवक्ता, कानूनी-सांविधानिक ढांचे को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने संघवाद को एकात्मक ढांचे के साथ संतुलित करने और न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

के.एम. मुंशी (K.M. Munshi)

लेखक, वकील और राजनेता, मसौदे में एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य रखा। राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों और भाषाई व सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने का समर्थन किया।

एन. गोपालस्वामी अयंगर (N. Gopalaswami Iyengar)

जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रशासनिक पहलुओं को आकार देने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। जम्मू-कश्मीर के लिए संसदीय ढांचे और विशेष प्रावधानों को तैयार करने में उनकी अंतर्दृष्टि महत्वपूर्ण रही। जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 का मसौदा अयंगर ने तैयार किया।

मोहम्मद सादुल्ला (Mohammed Saadullah)

असम के रहने वाले बकील और राजनेता, अल्पसंख्यक अधिकारों और संघवाद पर चर्चा में योगदान दिया, पूर्वोत्तर क्षेत्र को अहमियत के साथ शासन ढांचे में समावेश सुनिश्चित किया।

देवी प्रसाद खेतान (Devi Prasad Khaitan)

बंगाल के प्रतिष्ठित वकील और विधायक, शुरुआती चरणों में अहम योगदान दिया। 1948 में असामयिक निधन ने एक शून्य उत्पन्न कर दिया, लेकिन उनके काम ने कई प्रगतिशील प्रावधानों की नींव रखी।

एन. माधव राव (N. Madhava Rao)

बतौर प्रशासक अपनी विशेषज्ञता का लाभ पहुंचाया। प्रशासनिक सुधारों और संस्थागत ढांचे से संबंधित प्रावधानों को आकार देने में भूमिका निभाई।

भारतीय संविधान का इतिहास भी जानना जरूरी है

संविधान दिवस पर भारतीय संविधान के इतिहास को भी जानना जरूरी है। आपको बता दें कि भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष ने एक ऐसे शासन ढांचे की आवश्यकता को उजागर किया जो सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित कर सके। संविधान सभा का गठन दिसंबर 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ। इसमें 389 सदस्य शामिल थे, जो विभाजन के बाद घटकर 299 हो गए। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमिटी ने संविधान का मसौदा तैयार किया। इस पर 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों तक 11 सत्रों में विचार-विमर्श किया गया। अंतत: 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया, और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। अपने प्रारंभ में इसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं (जो बाद में संशोधित हुईं)। यह संविधान कठोरता और लचीलापन का अनोखा मिश्रण है, जो विभिन्न वैश्विक संविधानों से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया है।

भारतीय संविधान के परिचय में कहे गए यादगार वाक्य

भारतीय संविधान की तारीफ में दुनिया भर में बहुत कुछ कहा गया है। यहां संविधान दिवस के मौके पर भारतीय संविधान को लेकर कहे गए कुछ यादगार वॉक्य यानि कि इंस्पिरेशनल कोट्स आपको बता रहे हैं।

“संविधान महज वकीलों का दस्तावेज नहीं है; यह जीवन का माध्यम है, और इसकी आत्मा हमेशा युग की आत्मा है।” – डॉ. बी.आर. अंबेडकर

“हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।” – डॉ. बी.आर. अंबेडकर

“संविधान की भावना प्रत्येक नागरिक को दर्जा और अवसर की समानता प्रदान करना है।” – सरदार वल्लभभाई पटेल

“स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को त्रिमूर्ति में अलग-अलग वस्तुओं के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। वे इस अर्थ में त्रिमूर्ति का एक संघ बनाते हैं कि एक को दूसरे से अलग करना लोकतंत्र के मूल उद्देश्य को पराजित करना है। – डॉ. बीआर अंबेडकर

“संविधान केवल काले और सफेद रंग का दस्तावेज़ नहीं है। यह एक जीवंत दस्तावेज़ है जो राष्ट्र के साथ विकसित होता है।” – न्यायमूर्ति पीएन भगवती

“लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है। यह मुख्य रूप से सहभागी जीवन जीने का एक तरीका है, संयुक्त संचारित अनुभव का।” – डॉ. बी.आर. अंबेडकर

“किसी राष्ट्र की महानता उसके संविधान के प्रति निष्ठा और कानून के शासन के प्रति उसके पालन में निहित है।” – प्रणब मुखर्जी

“संविधान की पवित्रता अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की इसकी क्षमता में निहित है।” – अज्ञात

“संविधान हमें बड़े सपने देखने और उन्हें साकार करने की स्वतंत्रता देता है।” – नरेन्द्र मोदी

“जनता की इच्छा ही किसी भी सरकार का एकमात्र वैध आधार है, और उसकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की रक्षा करना हमारा पहला उद्देश्य होना चाहिए।” – डॉ. राजेंद्र प्रसाद

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