नई दिल्ली. आज भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री लौह पुरुष भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की पुण्यतिथि है। वल्लभभाई एक गरीब किसान परिवार में जन्मे थे। उन्होंने खेतों में पिता के काम में हाथ बंटाया। यही कारण था कि पटेल 22 वर्ष की आयु में 10वीं कक्षा पास कर पाये। कॉलेज की पढ़ाई भी उन्हें घर से ही करनी पड़ी थी।
वल्लभभाई को सरदार नाम बचपन से नहीं मिला था। स्वाधीनता के दौरान वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार ने किसानों पर 30 प्रतिशत लगान थोप दिया था। इस पर वल्लभभाई (Sardar Vallabhbhai Patel) के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसे इतिहास में ‘बारडोली सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है। वल्लभ भाई ने आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजी सरकार को लगान कम करके 6 प्रतिशत करने के लिए मजबूर कर दिया था। इसी ऐतिहासिक सत्याग्रह के सफल नेतृत्व ने वल्लभभाई को ‘सरदार’ की उपाधि दिलाई, जो आजीवन उनके नाम के साथ जुड़ी रही।
किसे नहीं पता है कि सरदार पटेल आजीवन कांग्रेसी रहे। वे न केवल आजाद भारत की पहली सरकार के गृहमंत्री रहे, बल्कि राष्ट्र निर्माताओं में शीर्ष पर विराजमान हैं। देश के पहले उप प्रधानमंत्री भी सरदार पटेल ही थे। सरदार पटेल ने ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बापू की हत्या के बाद प्रतिबंध लगाया था।
पटेल का स्पष्ट रूप से मानना था-‘आरएसएस की गतिविधियों के कारण देश में गांधी जी के विरोध का माहौल बना।’ साथ ही उन्होंने संघ की गतिविधियों को सरकार और राज्य के लिए खतरा बताया था।
सरदार पटेल संघ के विरोधी और आलोचक थे। फिर क्या वजह है कि नेहरू, कांग्रेस, धर्मनिरपेक्षता, संसदीय लोकतंत्र, तिरंगा झंडा और संविधान के शासन का खुलकर-जमकर विरोध करने वाले पटेल के नाम और उनकी राजनीतिक-विरासत पर अपना हक जमा रहे हैं। आज गांधी-नेहरू के अनन्य सहयोगी सरदार पटेल को नेहरू से अलग करके उन्हें हिंदुत्व की राजनीति का नायक घोषित कर रही है भाजपा।
क्या इसके पीछे यह कारण नहीं हो सकता कि संघ और भाजपा ऐसा इसलिये कर रहे हैं क्योंकि आजादी की लड़ाई की विरासत के नाम पर इनके हाथ खाली है? क्या आजादी की लड़ाई में हिस्सा न ले पाने की शर्म से बचने के लिए उन्हें कांग्रेस से छीन लिया गया है? जिस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू कह रहे थे-‘यदि धर्म के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाने की कोशिश करेगा तो मैं उससे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक सरकार के प्रमुख और उससे बाहर दोनों हैसियत से लडूंगा।’-तब सरदार पटेल उनके साथ खड़े थे और उन्होंने हिंदू राज अर्थात् हिंदू राष्ट्र की चर्चा को एक पागलपन भरा विचार बताया था।’
आज भाजपा और संघ धर्म की राजनीति करते हुए सरदार पटेल के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को विकृत करने का काम कर रहे हैं और साथ ही अपने आप को पटेल की सिरासत का असली हकदार साबित करने का ढोंग रच रहे हैं। 2014 के बाद से पटेल और नेहरू को बांटने का काम किया जा रहा है। इसी के साथ नेहरू को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा खलनायक और सरदार पटेल को महानतम नायक के रूप में पेश करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। सरदार पटेल और नेहरू के बीच आत्मीय रिश्तों के तमाम सबूत आज भी इतिहास के पन्नों में उपलब्ध हैं। दोनों नेता एक दूसरे के परम सहयोगी, विश्वासपात्र और प्रशंसक थे। छतरी लगाने से सूरज नहीं छिपता। सच तो सच ही रहेगा।