SEX EDUCATION: उचित ज्ञान से मिटाने होंगे यौन शिक्षा के मिथक

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calendar09 Aug 2023 06:20 PM
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SEX EDUCATION: आज के दौर में यौन शिक्षा उतनी ही जरूरी है, जितना कि दूसरे विषयों का ज्ञान। हमारे देश में मेडिकल कॉलेज तक में सेक्स एजुकेशन नहीं दिया जाता, जिसके परिणामस्वरूप सेक्स संबंधी अंधविश्वास, भ्रांतियां और इससे जुड़ी कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह कहना है एसोसिएशन ऑफ सेक्सुअलिटी एजुकेटर्स, काउंसलर्स एवं थेरेपिस्ट्स के अध्यक्ष प्रसिद्ध सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. महेश नवाल का। उनका कहना है कि यदि सही उम्र में यौन शिक्षा दी जाए तो किशोर मातृत्व, अनचाहे गर्भ, यौन अपराध, गुप्त रोग तथा एड्स जैसी गंभीर और लाइलाज बीमारियों से बचा जा सकता है। साथ ही सेक्स संबंधी समस्याएं जैसे- हस्तमैथुन से उत्पन्न अपराधबोध, नपुंसकता, स्वप्नदोष, धातु रोग आदि को लेकर विभिन्न भ्रांतियों से भी आसानी से मुक्त हुआ जा सकता है। यौन शिक्षा में व्याप्त मिथकों के बारे में उनका मानना है कि इस विषय पर देशव्यापी बहस की जरूरत है, लेकिन बदलते परिवेश और युवाओं की जिज्ञासाओं को देखते हुए 9वीं-10वीं कक्षा से सेक्स एजुकेशन दिया जा सकता है क्योंकि 13-14 वर्ष की उम्र में लड़के-लड़कियों में शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इसलिए सही उम्र से ही यौन शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

यौन शिक्षा से शांत होती हैं जिज्ञासाएं

डॉ. नवाल का कहना है कि सही यौन शिक्षा मिलने से लड़के-लड़कियां अपने शारीरिक परिवर्तनों से घबराएंगे नहीं, नकारात्मक रूप से नहीं सोचेंगे और शारीरिक परिवर्तनों को सहज रूप से लेकर जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। दुर्भाग्य से हमारे देश में सेक्स संबंधी वैज्ञानिक व तार्किक पहुलओं पर खुलेआम चर्चा नहीं होती। इस विषय पर बात करना भी वर्जित माना गया, जबकि गुप्तांग भी शरीर के वैसे ही अंग हैं, जैसे कि अन्य अंग। क्या सेक्स एजुकेशन से लड़के-लड़कियों में प्रयोग करने की प्रवृत्ति नहीं बढ़ेंगी? इस सवाल के पक्ष में तर्क देते हुए कहते हैं कि यह एक भ्रम है। स्वीडन, नार्वे तथा अन्य देशों का रिकॉर्ड बताता है कि यौन शिक्षा के बाद सेक्स संबंधी प्रयोग करते की रुचि कम होती है और सही जानकारी से उनकी वे सभी जिज्ञासाएं शांत हो जाती हैं, जिनकी पूर्ति के लिए वे प्रयोग करते हैं अथवा करना चाहते हैं। इतना ही नहीं जिन देशों में SEX EDUCATION दी गई वहां सेक्स से जुड़े अपराधों में भी कमी आई।

SEX EDUCATION के अभाव से होती हैं मानसिक परेशानियां

[caption id="attachment_106805" align="aligncenter" width="1024"]SEX EDUCATION SEX EDUCATION[/caption] अमेरिकन बोर्ड ऑफ सेक्सोलॉजी से डिप्लोमेट की मानद उपाधि प्राप्त डॉ. नवाल मानते हैं कि सेक्स का संबंध शरीर से ज्यादा मन से होता है। ब्रेन में भी सेक्स का एक सेंटर होता है, जो विभिन्न संवेदनाओं के जरिए उत्तेजित होता है। बढ़ते बलात्कार और सेक्स संबंधी अपराधों के संबंध में उन्होंने कहा कि सेक्स में असंतुष्ट व्यक्ति गलत तरीके से संतुष्टि हासिल करने के लिए इस तरह की क्रियाएं करता है। इसके लिए अन्य कारण गिनाते हुए डॉ. नवाल ने कहा कि नैतिकता का पतन, नशाखोरी की प्रवृत्ति, अश्लील साहित्य, पोर्न मूवी देखकर भी व्यक्ति यौन अपराध करता है। यौन समस्याओं का कारण भले ही मानसिक हो अथवा शारीरिक, लेकिन एक बात की कमी सभी व्यक्तियों में समान रूप से पाई गई है, वह है यौन शिक्षा का अभाव। सेक्स एजुकेशन न होने से व्यक्ति सेक्स संबंधी अनेक मानसिक परेशानियों से घिर जाता है, जो कि वास्तव में होती ही नहीं हैं। आधी-अधूरी जानकारी के कारण व्यक्ति ऐसी समस्या को स्वयं विकराल बनाकर आत्मग्लानि का शिकार हो जाता है। इसके लिए हमें SEX EDUCATION से जुड़े मिथक भी तोड़ने होंगे।

SEX EDUCATION से जुड़े कुछ मिथक

मिथक: यौन शिक्षा कार्यक्रम अभिभावकों के अधिकार को नष्ट कर देते हैं। सच्चाई: संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार, प्रशिक्षण, स्कूलों और शिक्षकों की सेवाओं के माध्यम से सरकारों का काम बेहतर और सीखने का माहौल बनाकर बच्चों को यौन शिक्षा प्रदान करना है, जो कि अभिभावकों के कार्य में मदद करना है।  विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि अभिभावक संपूर्ण कामुकता प्रशिक्षण का समर्थन करते हैं और मानते हैं कि बच्चों को सेक्स के बारे में सटीक जानकारी दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, कैसर फैमिली फाउंडेशन और एनपीआर द्वारा निर्देशित एक सर्वे में पाया गया कि केंद्रीय विद्यालय और माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के 90 प्रतिशत से अधिक अभिभावकों का मानना है कि उपयुक्त आयु में स्कूल शैक्षिक कार्यक्रम में यौन शिक्षा कार्यक्रम को अनिवार्य करना चाहिए। ▪ मिथक: यौन शिक्षा गुणों और नैतिकता की अनदेखी करती है। सच्चाई: गुणवत्तापूर्ण यौन शिक्षा एक अधिकार-आधारित पद्धति को कायम रखती है, जिसमें मान, सम्मान, स्वीकार्यता, लचीलापन, समानता, सहानुभूति और पत्राचार आमतौर पर  बुनियादी स्वतंत्रता से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं। संपूर्ण यौन शिक्षा प्रशिक्षण भी युवाओं को अपने परिवार और नेटवर्क के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत गुणों की जांच करने और उनका वर्णन करने का अवसर प्रदान करता है। ▪ मिथक: यौन शिक्षा छोटे बच्चों को सेक्स की प्रक्रिया बताती है। सच्चाई: यौन शिक्षा कार्यक्रम में विषयों में ग्रेड के अनुसार बदलाव सुनिश्चित किया गया है और बच्चों के विकास के साथ-साथ उनकी जानकारी और क्षमताओं को इकट्ठा करने के लिए व्यवस्थित और क्रमबद्ध किया गया है। उदाहरण के लिए किंडरगार्टन से दूसरी कक्षा तक, छात्र पारिवारिक संरचना, शरीर के अंगों के सही नाम और यदि कोई उनसे गलत तरीके से संपर्क करता है तो क्या करना चाहिए, इसके बारे में सीखते हैं। तीसरी से पांचवीं कक्षा में, छात्र यौवन और अपने शरीर में होने वाली प्रगति के बारे में पता लगाते हैं। छठी से आठवीं कक्षा के छात्रों को कनेक्शन, गतिशीलता, निर्णायकता और सामाजिक/साथियों के दबाव का विरोध करने की क्षमता पर डेटा मिलता है। संयम पर जोर दिया गया है और बीमारी और गर्भावस्था के प्रतिकार के विचार अंतिम कक्षाओं में प्रस्तुत किए गए हैं। सहायक विद्यालयों में छात्रों को स्पष्ट रूप से संचारित संदूषण और गर्भावस्था, संयम और गर्भनिरोधक और कंडोम के बारे में अधिक संपूर्ण डेटा दिया जाता है। । ▪ मिथक: यौन शिक्षा कार्यक्रम संयम को आगे नहीं बढ़ाते। सच्चाई:यौन शिक्षा कार्यक्रम एसटीआई, एचआईवी और अनपेक्षित गर्भावस्था से बचने के लिए सहनशीलता को सर्वाेत्तम और सर्वश्रेष्ठ रणनीति के रूप में रेखांकित करते हैं। वे बच्चों को गर्भनिरोधक और कंडोम के बारे में जानकारी भी देते हैं ताकि जब वे स्पष्ट रूप से सक्रिय हो जाएं तो उनकी भलाई और जीवन को सुरक्षित रखने में मदद मिल सके। अन्वेषण से पता चलता है कि ये परियोजनाएँ केवल यौन क्रिया पर रोक लगाने की तुलना में युवाओं को यौन शुरुआत को स्थगित करने में मदद करने में अधिक शक्तिशाली हैं। दरअसल, अमेरिकी कांग्रेस द्वारा शादी तक यौन कार्यक्रमों पर रोक लगाने के आदेश पर किए गए पांच साल के अध्ययन से पता चला है कि केवल रोक लगाने से युवाओं के यौन व्यवहार पर कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा, अमेरिका में एक बड़ी रिपोर्ट से पता चला कि केवल सहनशीलता से युवाओं को सेक्स टालने में मदद नहीं मिली। ▪ मिथक: प्राथमिक विद्यालय के छात्र यौन शिक्षा के लिए बहुत छोटे हैं। सच्चाई: प्राथमिक विद्यालय के छात्र के यौन शिक्षा पढ़ने से उसके आचरण में परिवर्तन करना आसाना होता है। राष्ट्रीय यौन शिक्षा मानक ग्रेड स्कूल के छात्रों को उम्र के अनुरूप और कामुकता से संबंधित शारीरिक रूप से सटीक प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त होता है। धीरे-घीरे प्राथमिक विद्यालय से बड़े क्लास तक सिखाने से बच्चे के मस्तिष्क में आसानी से चीजें समझ आ जाती हैं। ▪ मिथक: यौन शिक्षा कार्यक्रम यौन जोखिम वाले व्यवहार को बढ़ाते हैं। सच्चाई: ऐसा कोई सबूत नहीं है जो दर्शाता हो कि यौन शिक्षा बच्चों को जोखिम भरे यौन व्यवहार में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इसके विपरीत, ये कार्यक्रम उन्हें अपने यौन जीवन में अधिक स्वस्थ और जिम्मेदार निर्णय लेने में मदद करेंगे। ▪ मिथक: यौन शिक्षा कार्यक्रम संभोग की आवृत्ति को बढ़ाते हैं। सच्चाई: इसका कोई सबूत नहीं है. दूसरी ओर, इस बात के बहुत से सबूत हैं कि ऐसे कार्यक्रमों के कारण अक्सर प्रतिभागी को संभोग की शुरुआत करने में देरी होती है। अक्सर इन कार्यक्रमों के कारण यौन रूप से सक्रिय युवा वयस्कों को एक ही साथी के साथ रहना पड़ता है और अपने साथी बदलने की आवृत्ति कम हो जाती है। ▪ मिथक: यौन शिक्षा से अवांछित किशोर गर्भधारण की घटनाएं बढ़ने की संभावना है सच्चाई: अध्ययनों से पता चला है कि जिन किशोरों के पास यौन शिक्षा नहीं है, वे संभोग करते समय कंडोम का उपयोग करने की संभावना नहीं रखते हैं, जबकि यौन शिक्षा के साथ कंडोम का उपयोग करने और गर्भधारण से बचने की संभावना बहुत अधिक है।

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Sex Education : लड़कियां ही नहीं ,लड़कों को भी दें गुड-बैड टच (Good Bad Touch)की सीख

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calendar14 Jul 2023 03:49 PM
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Sex Education :   सैय्यद अबू साद Sex Education :  हम विकसित होते समाज में जी रहे हैं, जहां आधुनिकता बहुत हावी है। इस आधुनिकता के साथ मनुष्य की आपराधिक भावना भी बढ़ रही है। पहले आपराधिक व्यक्ति महिलाओं को निशाना बनाते थे, लेकिन हाल के वर्षों में ये छोटे बच्चों और शिशुओं को भी निशाना बनाने लगे हैं। आसान शिकार समझ कर और बच्चे अपनी बात नहीं बता पाएंगे, ये सोचकर आपराधिक व्यक्ति मासूमों को अपना साफ्ट टारगेट बना रहे हैं। इन्हें मालूम है कि कम उम्र के बच्चे कमजोर व नासमझ होते हैं और दूसरों से जल्दी घुल-मिल जाते हैं व दूसरों पर जल्दी विश्वास भी कर लेते हैं। गलत व्यवहार करने वालों में अधिकतर अपराधी घर में से ही या आस-पड़ोस या जान पहचान वाले ही होते हैं। कई बार बच्चों को स्कूल कर्मचारी के साथ स्कूल ले जाने वाले ट्रांसपोर्ट के लोग भी ऐसे अपराध करते हैं। अभिभावक बच्चों को अच्छी शिक्षा, खाना-पीना, कपड़े पहनना, बड़ों का सम्मान करना और अच्छे संस्कार देना तो सिखा देते हैं, लेकिन सेक्स एजूकेशन और गुड टच और बैड टच के बारे में बताना जरूरी नहीं समझते। ऐसे में ही नसमझी में बच्चे यौन शोषण के शिकार हो जाते हैं। कई बार हमें लगता है कि लड़कियों को ही बस गुड टच और बैड टच बताने की जरूरत है। अगर आप भी ऐसा सोचते है, तो आपको बिल्कुल गलत है। आपको अपने दोनों बच्चे को चाहे वह लड़का हो या लड़की उन्हें गुड या बैड टच के बारे में बताना चाहिए।

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लड़कों को बताएं क्या है गुड और बैड टच गुड टच- अभिभावको को लड़कों को बताना चाहिए कि जब कोई आपको छूता है और उसके छूने से आपको प्यार का एहसास होता है या अच्छा लगता है या कोई छूकर आपको सुरक्षित महसूस करवाता है, तो इसे गुड टच कहते हैं। इसके अलावा अगर कोई आपको प्यार से टच करें, जैसे कि माथे पर हाथ फेरना या प्यार से गालों को खींचना। ये सभी गुड टच में गिने जाते हैं। बच्चों को बताकर ही नहीं बल्कि खुद करके समझाएं। बच्चे को समझाएं कि जब आपका कोई दोस्त आपका हाथ पकड़ता है, तो उसे अच्छा फील होता है। बैड टच- उसे बताएं कि उसका शरीर सिर्फ उसका है और उस पर किसी और का हक नहीं है इसलिए कोई उसे वैसे नहीं छू सकता है, जो उसे पसंद न हो। जब कोई आपको इस तरह से छुए कि आपको उससे बुरा लगे तो ये बैड टच होता है। अगर कोई अनजान व्यक्ति प्राइवेट पार्ट्स गलत तरीके से छूने की कोशिश करे तो यह बैड टच होता है। जब किसी के छूने से आपको अजीब लगे और अच्छा महसूस ना हो तो ये बैड टच होता है। कैसे सतर्क करें गुड और बैड टच के बारे में ये न सोचें कि लड़का है, तो सुरक्षित ही रहेगा। आपको बच्चे के बदलते व्यवहार के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। ऐसे में छोटी उम्र में ही बच्चों के साथ विश्वास का रिश्ता कायम करना बेहद जरूरी हो जाता है। बच्चों और माता-पिता में प्यार और भरोसेमंद बंधन बनाना आवश्यक है। जहां बच्चे बिना डर के आपको कुछ भी बता सकते हैं। बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार रखे कि वह आप से हर बात शेयर करें। अगर उसने कुछ गलत भी हो जाए तो वह भी बता दे। उनको शारीरिक संरचना के बारे में बताएं बच्चों को उनके शरीर के बारे में जानकारी दें। बच्चों को उनके प्राइवेट पार्ट्स के बारे में जानकारी देना जरूरी है। अपने बच्चों को ये समझा सकते हैं कि हमारे शरीर में कुछ अंग ऐसे होते हैं जो सबको दिखते हैं, परंतु कुछ अंग ऐसे होते हैं, जिन्हें सिर्फ और सिर्फ वे ही देख या छू सकते हैं। उन्हें प्राइवेट पार्ट्स कहते हैं। बच्चों को बताएं कि उनके प्राइवेट पार्ट्स कौन से हैं और शरीर के इन हिस्सों को किसी को न छूने दें। माता-पिता को बताना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति उनके प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश करें, तो उन्हें इसका विरोध करना चाहिए या फिर वे आपको इस बारे में बताएं। अपने शरीर का मालिक बनने दें जब बच्चे 3-4 साल के हो जाए तो उन्हें समझाये कि उनके शरीर पर केवल उनका ही अधिकार है। अगर किसी के द्वारा उनके शरीर को छूना अच्छा न लगे तो उसका कड़ा विरोध करें और ऐसी बाते आपको आकर जरूर बताएं। साथ ही उन्हें समझाएं कि इससे उन्हें डरकर चुप नहीं रहना चाहिए। उसको ना कहना सिखाएं बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाना सबसे जरूरी है और बच्चों के मन से डर दूर करें और उन्हें ना कहना सिखाएं। अगर उन्हें कोई गलत तरीके से छूने की कोशिश करे तो वे ऐसा करने वाले व्यक्ति से डरे नहीं बल्कि उन्हें ऐसा ना करने के लिए बोलें। ऐसा करने वाले व्यक्ति से बचने के लिए शोर मचाने की तरकीब बच्चों को सिखाएं ताकि आसपास के लोग उसकी आवाज सुनकर उसकी मदद को आ सकें। गलत व्यवहार के बारे में बताएं खेल-खेल में उन्हें बताएं कि किस तरह से टच करने का उनको विरोध करना चाहिए। जैसे अगर कोई उन्हें जबरदस्ती गोद में उठाने या चूमने की कोशिश करें, तो उन्हें अपने आपको छुड़ाकर तुरंत उस व्यक्ति से दूर भाग जाना चाहिए। अगर स्कूल में है, तो उन्हें अपने टीचर के पास भाग जाना चाहिए। Sex Education: Not only girls, boys should also be taught good-bad touch उनके बर्ताव पर ध्यान दें बच्चों के साथ जब भी कुछ गलत होता है तो उनके व्यहार में परिवर्तन देखने को मिलता है। ऐसे में उसके मन को पढने की कोशिश करें और उनसे खुलकर बात करें। बच्चे को खुलकर इस बारे में बात कर बताएं कि आपको लिए यह अच्छा है और यह आपके लिए बुरा है। बच्चों को कई बार गुड टच या बैड टच के बारे में पता नहीं होता है या बहुत बच्चे किसी से खुलकर अपने मन की बात नहीं कह पाते हैं। ऐसे में वे अंदर ही अंदर उसे चीज से परेशान होते हैं और ये बातें उनकी पढ़ाई और शारीरिक विकास पर प्रभाव डालती है। इसलिए हमेशा बाहर या स्कूल से आने के बाद अपने बच्चे के व्यवहार पर जरूर ध्यान देने की कोशिश करें कि कहीं आपका बच्चा बहुत ज्यादा चुप तो नहीं रहता है। साथ ही खाना कम खाना, पढ़ाई में मन न लगना और हमेशा खोया हुआ तो नहीं रहता है।

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दोस्तों की तरह व्यवहार बनाएं ये सब बातें सिखाने के लिए अपने बच्चों को सबसे पहले ये विश्वास करवाएं कि वह आपसे कुछ भी शेयर कर सकते हैं। आप उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखें। इसके लिए छोटी उम्र से ही बच्चों के साथ विश्वास का रिश्ता कायम करना शुरू कर दें। कुछ बच्चे अगर आपको बताते हैं, तो उस पर बच्चों को डांटने की जगह समझाएं। अगर आप डांटेंगी तो बच्चे आपसे डर जाएंगे और आपको कुछ बताएंगे नहीं। अगर वह कुछ गलत भी करता है तो उसे समझाएं कि ऐसा करना गलत है। फिर देखिएगा, बड़े होने पर आपको अपने बच्चे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। वे अपने साथ दूसरों के लिए भी आवाज उठा सकेंगे। #sexeducation #trending #latesttopic #goodtouchbadtouch