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भारत में टीकाकरण की गति हुई धीमी, ये हैं वजहें

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Vaccination in India

भारत जल्द ही कोरोना वैक्सीन की 100 करोड़ डोज़ के आंकड़े को पार करने वाला है। कम ही लोग जानते हैं कि इस नंबर के पीछे कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो चिंताजनक हैं।

भारत ने इसी साल जनवरी में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू की लेकिन, वैक्सीन उत्पादन की पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण शुरुआत बेहद धीमी रही। हालांकि, दूसरी लहर के बाद सरकार की आंख खुली और इस दिशा में गंभीर प्रयास किए गए।

पिछले तीन महीने में सबसे धीमी ​रफ्तार
जुलाई तक भारत में रोजाना करीब 50 लाख डोज का उत्पादन होने लगा। इसका असर वैक्सीनेशन ड्राइव पर भी दिखा। 27 अगस्त को एक दिन में ही एक करोड़ से ज्यादा टीके लगाने का रिकॉर्ड बनाया गया और अगले ही महीने यानी, 17 सितंबर को एक दिन में 2.5 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए गए।

इन आंकड़ों के साथ ही पिछले तीन महीनों में कोरोना के मामलों में तेजी से कमी देखी गई। अक्टूबर में भारत में कुल एक्टिव केस की संख्या दो लाख से नीचे (1,780,98) पहुंच गई। यह मार्च 2020 के बाद सबसे कम है।

टीके का उत्पादन बढ़ा, टीककरण घटा
कहने को सारे आंकड़े उम्मीद बंधाने वाले हैं लेकिन, अक्टूबर के आंकड़े अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। अक्टूबर खत्म होने में दस दिन ही बचे हैं। इस महीने अब तक लगभग 54 लाख टीके ही लगाए गए हैं। जबकि, अक्टूबर में रोजाना करीब एक करोड़ टीकों का निर्माण हो रहा है। वहीं, जुलाई में केवल 50 लाख टीकों का निर्माण हो रहा था।

चार महीनों में टीकाकरण की गति से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वर्तमान हालात कैसे हैं। जुलाई में कुल 43.30 लाख टीके लगाए गए जबकि, अगस्त 69.29 लाख और सितंबर में 78.69 लाख टीके लगाए गए। अक्टूबर में 20 दिन बीत जाने के बाद भी महज 54 लाख टीके ही लगाए गए हैं। यानी, हम अगस्त के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाए हैं।

टीकाकरण की धीमी गति के लिए जिम्मेदार 3 चीजें
यह आंकड़ा तब है जब भारत में टीकों की रोज़ाना उपलब्धता एक करोड़ को पार कर चुकी है। इसके बावजूद टीकाकरण की गति पिछले तीन महीनों में सबसे धीमी है। टीकाकरण की गति में अचानक आई इस गिरावट के लिए तीन चीजों को जिम्मेदार बताया जा रहा है…

1. देश में बड़ी संख्या में लोगों ने कोविशील्ड का टीका लगवाया है जिसकी दूसरी डोज़ 12 से 16 हफ्ते बाद लगती है। ऐसे में पहली और दूसरी डोज़ के बीच गैप ज्यादा होने की वजह से टीकाकरण की गति का थोड़ा कम होना स्वाभाविक है।

2. अभी भी देश की लगभग तीस ​फीसदी आबादी (18 से 44 वर्ष) को पहली डोज़ ही नहीं लग पाई है। ऐसे में कोविशील्ड एक मात्र वजह नहीं है। अक्टूबर-नवंबर त्योहारी सीजन हैं और लोग अपनी छुट्टियां टीका लगवाने और उसके बाद बीमार होकर ज़ाया नहीं करना चाहते। आमतौर पर टीका लगवाने के दो से तीन दिन तक बुखार या कमजोरी महसूस होती है।

3. कोरोना के मामलों में लगातार आ रही कमी को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है क्योंकि, इससे महामारी के प्रति लोगों का डर कम होता है। पिछले एक महीने से कोरोना में मामलों में लगातार गिरावट और आर वैल्यू (R value) का एक से भी नीचे (0.90) जाना लोगों में टीके के प्रति ढीलाई की एक बड़ी वजह है।

इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र और केरल हैं जहां पिछले दिनों तेजी से टीकाकरण हुआ क्योंकि, देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहां कोरोना के मामले बढ़ रहे थे। आर वैल्यू का एक से नीचे होना बताता है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति एक से भी कम व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है। इसकी दो वजहें हो सकती हैं। पहला, टीकाकरण और दूसरी, हर्ड इम्यूनिटी यानी, कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में अपने आप प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाना।

धीमी रफ्तार से बढ़ता है दोहरा खतरा!
इसी हफ्ते स्वास्थ्य मंत्रालय की मीटिंग में राज्यों को टीकाकरण की गति को तेज करने के निर्देश दिए गए हैं क्योंकि, सरकार वैक्सीनेशन की धीमी गति से होने वाले नुकसान को जानती है। टीकाकरण नए लोगों के संक्रमित होने और कोरोना के नए वैरिएंट को पनपने से रोकने का एक मात्र रास्ता है। नया वैरिएंट दोहरा खतरा पैदा करता है। एक ओर यह नए लोगों को तेजी से संक्रकित करता है वहीं, इससे टीका लगवाए लोगों के भी संक्रमित होने का खतरा बढ़ता है।

टीके की उपलब्धता या टीकाकरण सेंटर की कमी के लिए सरकार को दोष दिया जा सकता है, लेकिन टीका लगवाने के लिए लोगों को खुद ही सेंटर तक जाना होगा। फिलहाल, लोगों में टीके के प्रति ढिलाई या लापरवाही का रवैया बढ़ रहा है। आमतौर पर ऐसा उन सभी देशों में देखा गया है जहां कोरोना के मामलों में कमी आने लगती है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार टीकाकरण की गति को बढ़ाने के लिए नए सिरे से प्रयास करे ताकि, देश को तीसरी लहर के खतरे से बचाया जा सके।

– संजीव श्रीवास्तव

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