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अपने सपने को छोड़ संभाला पिता का कारोबार, आज 40 से ज्यादा देशों में है पहुंच

Success Story of Ved Krishna

Success Story of Ved Krishna

Success Story : आज के समय में युवा अपना खुद का करियर बनाना चाहते है। ऐसे में वह अपने परिवार के करोबार के बारे में नहीं सोचते जिसे उनके दादा या पिता ने शुरू किया था । लेकिन कई बच्चें ऐसे भी होते हैं जो अपने करियर के साथ साथ अपने पुश्तैनी बिजनेस को नई सोच के साथ एक नई ऊँचाई तक पहुंचा देते हैं। ऐसी ही कहानी है उत्तर प्रदेश के अयोध्या में जन्में वेद कृष्ण की। जिन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई देहरादून के वैलहम ब्वॉयज स्कूल से पूरी की। इसके बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए यूके चले गए। जहां उन्होंने लंदन मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई को पूरा किया। वहीं जब मुश्किल वक्त में परिवार ने उन्हें घर वापस बुलाया तो बिना किसी झिझक के वह वापस आए और अपने पिता के करोबार को न केवल संभाला बल्कि उसकी पहुँच 40 से ज्यादा देशों में कर दी।  आइए जानते हैं पैका लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट वेद कृष्ण की सफलता की कहानी ।

90 के दशक में करोबार हुआ ठप

बात है 1990 के दशक की, इस समय वेद कृष्ण विदेश में अपनी पढ़ाई कर रहे थे। उनके बचपन का सपना था कि वह बड़े होकर पायलट बने। लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन अचानक वेद को उनके बाबूजी का फोन आया और उन्होंने वेद को वापस अपने देश आने का अनुरोध किया। बाबूजी के अनुरोध करने पर वेद उन्हें मना न कर पाए और अयोध्या लौट आए। दरअसल वेद के बाबूजी के.के. झुनझुनवाला ने साल 1981 में अयोध्या में एक छोटी सी फैक्ट्री खोली थी। जिसका नाम था यश पेपर्स। इस फैक्ट्री में कागज का काम किया जाता था। लेकिन इसमें सामान्य कागज नहीं बल्कि बादामी रंग के कागज बनाए जाते थे। जिसका इस्तेमाल लिफाफा यो ढोंगे बनाने में किया जाता है। फैक्ट्री के  खुलने के बाद कारोबार काफी अच्छा चला, लेकिन 90 का दशक आते-आते कारोबार में गिरावट आने लगी। जिसे देखते हुए के.के. झुनझुनवाला ने अपने बेटे वेद कृष्ण से वापस लौटने का अनुरोध किया। पिता के बुलाने और कंपनी की हालत देख कर वेद ने अपना पायलट बनने का सपना छोड़ दिया और फैक्ट्री को संभलाने की कोशिश करने लगे। लेकिन फैक्ट्री उनसे भी न संभल सकी, जिसके बाद उन्होंने  इसे बेचने का फैसला किया। पर इसमें भी वह असफल रहे। Success Story

Pakka Limited

नेचर की मदद से चल पड़ी कंपनी

जब फैक्ट्री बेचने में भी वह असफल रहे, तो उन्होंने उसी को चलाने की कोशिश की। इन्हीं कोशिशों को दौरान साल 2005 में वेद कृष्ण के बाबूजी का निधन हो गया। लेकिन इसके बाद भी वेद कृष्ण (Success Story) ने हार नहीं मानी। इस बीच उन्होंने कई तरह के नए तरीके ट्राई किए। कई बार उन्होंने प्रोडक्टस को चुनने में गलती की तो कई बार गलत मशीन के चुनने से बात नहीं बनी। इतनी असफलताओं के बाद भी वेद कृष्ण ने हार नहीं मानी। वेद को बचपन से ही नेचर से जुड़ी चीजें काफी पसंद थी। अपने इसी बचपन के लगाव को याद करते हुए उन्हें एक नया आइडिया आया। इसके बाद उन्होंने यश पेपर को फ्लेक्जिबल और सस्टेनेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी में बदला दिया। साल 2007-08 में फैक्ट्री ने फूड ग्रेड पेपर बनाना शुरू किया। उनका यह नया आइडिया काम कर गया और इससे कंपनी की एक नई पहचान भी मिल गई।

सरकार की सिंगल यूज प्लास्टिक नीति ने की मदद

लेकिन इसके बाद भी वेद फैक्ट्री को और आगे ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक कंपोस्टेबल टेबलवेयर बनाने का काम शुरू किया और इसका ब्रांड चक लॉन्च कर दिया। इसमें गन्ने की खोई से खाने के प्लेट और पैकेजिंग प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। इस प्रोडक्ट का पॉजिटिव पॉइंट यह था कि प्रोडक्ट के इस्तेमाल के बाद उसका कंपोस्ट बन जाता है जिससे पार्यवरण को कोई नुकसान नहीं होता। इसके अलावा टेबलवेयर को अगर कोई गाय या बकरी भी खा ले तो इससे उन्हें किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि यह गन्ने की खोई से बना होता है। लेकिन इस काम में भी उन्हें इतना अच्छा रिपॉंस नहीं मिल रहा था। इसी बीच सरकार की ओर से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसके लागू होने के बाद लोगों में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर जागरूकता भी बढ़ने लगी। इसका सीधा-सीधा लाभ चक ब्रांड को पहुंचा और फैक्ट्री की निकल पड़ी। इसके अलावा फैक्ट्री ने आगे बढ़ने के लिए अपने पैकेजिंग प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट भी शुरू कर दिया।(Success Story)

Pakka Limited

बदलाव ने दिलाई नई पहचान

कारोबार को समय के साथ बदलना वेद कृष्ण के लिए अच्छा साबित हुआ, इससे फैक्ट्री को शानदार सफलता हासिल हुई। इस सफलता के बारे में बात करते हुए वेद कृष्ण ने बताया कि बदलाव के लिए दुनिया भर से अच्छी मशीनों की एक्विजिशन करनी शुरू की गई। इंडस्ट्री में उपलब्ध बेस्ट टेलेंट को किसी भी कीमत पर हायर किया। और एक नए सिरे से काम को शुरू किया। जब नया काम शुरू हुआ तो सफलता भी मिली। और मैकडोनाल्ड जैसी एमएनसी से पैकेजिंग मैटेरियल के आर्डर मिलने भी शुरू हो गए। विदेशों में निर्यात होने लगा। आज की तारीख में कंपनी का एक्सपोर्ट 40 से भी ज्यादा देशों में हो रहा है। इसके साथ ही कंपनी जल्द ग्वाटेमाला (Guatemala) में भी फैक्ट्री लगाने की शुरुआत करने वाली है। इसके लिए कंपनी ने वहां जमीन भी खरीद ली है। और कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह की कोशिशें की जा रही है।

दुनिया में पैका लिमिटेड से जानी जाती है कंपनी

इस दौरान कंपनी में कई तरह के बदलाव भी किए गए। वेद कृष्ण (Success Story) ने कंपनी के रेगुलर काम को अलविदा कह कर कंपनी के सीईओ (CEO) पद पर एक प्रोफेशनल व्यक्ति को बैठा दिया। लेकिन इसके बाद भी उनका काम खत्म नहीं हुआ। वह अब बाहर से ही कंपनी के हित में रणनीति बनाते है और उसको कंपनी के CEO के साथ साझा करते हैं। इस बीच साल 2019 में यश पेपर्स का नाम बदल कर यश पैका लिमिटेड किया गया। वहीं इसके बाद फिर से एक बार कंपनी का नाम बदला गया और अब कंपनी को पैका लिमिटेड (Pakka Limited) के नाम से जाना जाता है। कंपनी की तरक्की का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है और सोमवार, 29 जनवरी 2024 को पैका लिमिटेड का 10 रुपये का एक शेयर 357.75 रुपये पर बंद हुआ। इसी के साथ कंपनी का मार्केट कैप भी 1401.63 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।

Pakka Limited

4 साल से कम समय में शेयर में दिखा भारी उछाल

आपको बता दें पैका लिमिटेड के शेयर साल 2014 की शुरूआती महीने में 5 रुपए के स्तर पर थे। वहीं इस साल 29 जनवरी में इसी कंपनी के शेयर ने लंबी उछाल के साथ 357 रुपए तक पहुंच गया है। इस दौरान कंपनी के शेयरों में करीबन 7100 फीसदी की उछाल हासिल की है। बीते 4 साल से कम समय में ही कंपनी का शेयर 1700 फीसदी से ज्यादा उछला है। वहीं पिछले एक साल में पैका लिमिटेड ने निवेशकों को करीबन 300 फीसदी रिटर्न का बेहतरीन तोहफा दिया है।(Success Story)

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