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रामकिशन यादव से यूं ही स्वामी रामदेव नहीं बन गए योग गुरू, पूरा परिचय

Swami Ramdev

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Swami Ramdev : भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आज योग गुरू रामदेव की पहचान है। सवाल उठता है कि क्या कोई यूं ही बन जाता है स्वामी रामदेव। आज हम आपको संक्षिप्त शब्दों में बता रहे हैं पतंजलि कंपनी के संस्थापक तथा अरबपति योग गुरू स्वामी रामदेव की पूरी कहानी। स्वामी रामदेव की कंपनी पतंजलि का टर्न ओवर 1600 करोड़ रूपए का है। स्वामी रामदेव ने टारगेट तय किया है कि वें पतंजलि को एक लाख करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी बनाएंगे।

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रामकिशन यादव से स्वामी रामदेव तक

पहले बात करते हैं स्वामी रामदेव के बचपन की। वह बचपन जिसमें भूख थी, गरीबी थी और खूब सारा दु:ख था। आज के योग गुरू स्वामी रामदेव के बचपन का नाम रामकिशन यादव था। आज के स्वामी रामदेव जो बचपन में रामकिशन यादव के नाम से जाने-जाते थे। वें स्वामी रामदेव यादव समाज से आते हैं। स्वामी रामदेव का जन्म 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर गांव के किसान परिवार में हुआ था रामनिवास यादव और गुलाब देवी के चार बच्चों में दूसरे नंबर की संतान रामदेव शुरू से मेधावी और अनुशासित थे। मां साइकिल के खराब टायर से चप्पल बनाकर पहना देती थीं। मां ने उन्हें संघर्ष करना सिखाया। 70 के दशक में अपने गाँव में कर्ज से दबे एक किसान की आत्महत्या की खबर ने इनको रातभर सोने नहीं दिया। उनके दिमाग में एक ही सवाल कौंधता रहा कि आखिर पड़ोस के ताऊ ने खुदकुशी क्यों की? अगले दिन स्कूल पहुंचकर उन्होंने अपने शिक्षक से पूछा कि सरकार असहाय किसानों की मदद क्यों नहीं करती। शिक्षक ने कहा, भ्रष्टाचार बहुत है, तभी उन्होंने तय कर लिया कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाना है। 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में तत्कालीन सरकार के खिलाफ दिए गए धरने ने एक तरफ उनकी छवि का द्वैध खड़ा किया, दूसरी तरफ सरकार की विश्वसनीयता घेरे में आई।

बोले स्वामी रामदेव कि मुझे भी हुक्का पीना है

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं। ऐसा ही बचपन में कुछ स्वामी रामदेव के साथ भी हुआ था। एक बार जब उन्होंने अपने पिता को हुक्का पीते हुए देखा तो उन्होंने कहा, मैं भी पीना चाहता हूं। पिता ने मना किया और उनके पास बैठे लोगों ने कहा आपको हुक्का छोडऩा होगा, क्योंकि इससे बच्चों पर गलत असर होता है। रामदेव की पहली सफलता यह थी कि इसके बाद उनके पिता ने हुक्का पीना छोड़ दिया। वहीं, एक बार स्कूल में शिक्षक को बीड़ी पीते देखकर उन्होंने इसका भी विरोध किया। बाद में जब वे प्रसिद्ध हो गए तो उक्त शिक्षक ने चि_ी के माध्यम से बताया कि मैंने धूम्रपान उसी दिन से छोड़ दिया था।दरअसल आज के स्वामी रामदेव बचपन के रामकिशन यादव के पिता रामनिवास यादव हुक्का बहुत पीते थे। स्वामी रामदेव ने पिता का हुक्का छुड़वाने की ठान ली थी।

लड़ते थे कुश्ती

स्वामी रामदेव को बचपन से ही कुश्ती लडऩे का बड़ा शौक था। आज के स्वामी रामदेव दुबले-पतले रामकिशन ने अपने हट्टे-कट्टे बड़े भाई देबदत्त को गुदगुदी करके कुश्ती में हराने का ह तरीका ढूंढ लिया था। उनके भाई गैर-शिकायती अंदाज में याद करते हुए कहते हैं, ‘वह जानता था कि मैं गुदगुदी बर्दाश्त नहीं कर सकता। लेकिन वह केवल महत्वपूर्ण मैचों में ही इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करता था।’ कालांतर में बाबा रामदेव के रूप में रामकिशन की कामयाबी में योग, मार्केटिंग और मीडिया से लेकर व्यापार जैसे सभी गुण शामिल हो गए। पारंपरिक योग को घर-घर तक पहुंचाने की उनकी मुहिम में स्वदेशी का नारा और मल्टी-नेशनल कंपनियों का विरोध समय के साथ एक बड़े अभियान में बदल गया। योग से आयुर्वेदिक दवाइयां और फिर रसोई के सभी सामानों के रिटेल स्टोर खोलने की अपनी यात्रा में उन्होंने पतंजलि को हजारों करोड़ की कंपनी तो बनाया, लेकिन अपने बयानों से बाबा अपनी पोटली में विवाद भी जोड़ते चले गए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनके एलोपैथी को बकवास और दिवालिया साइंस वाले बयान को आधार बनाकर इम्यूनिटी बढ़ाने वाली पतंजलि आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल के विज्ञापन को, भ्रामक बताकर उनके खिलाफ कोर्ट में केस दायर किया। सुनवाई के दौरान जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने जो कहा उसमें हिदायत के साथ योग के क्षेत्र में उनके योगदान को स्वीकृति भी शामिल है। उन्होंने कहा, ‘मानते हैं रामदेव ने योग के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर चीज में खामियां निकाली जाएं।’

जब बने सन्यासी

स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर उन्होंने गुरुकुल में पढऩे का निश्चय किया। उनके गांव में एक संन्यासी आते थे, जिनका कहना था योग से असाध्य रोगों का इलाज संभव है। रामदेव अंतत: योग से रोग दूर करने के सफल अभियान के अगुआ बने। आठवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद वे खानपुर गुरुकुल में पढऩे गए। यहीं पर 1990 में उनकी मुलाकात आचार्य बालकृष्ण से हुई। खानपुर से शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद बालकृष्ण काशी चले गए। इसके बाद दोनों गुरुभाइयों का मिलन 1994-95 में हरिद्वार जिले के कनखल स्थित कृपालु आश्रम में हुआ। आश्रम के स्वामी शंकरदेव से संन्यास की दीक्षा के बाद रामकिशन का नाम परिवर्तन हुआ। यहां दोनों मित्रों ने गुरुकुल की शिक्षा का लाभ समाज को देने का निश्चय किया। कृपालु आश्रम में ही दोनों ने 5 जनवरी, 1995 में परिचितों से उधार लेकर 13,000 रुपये में दिव्य योग मंदिर फाउंडेशन की स्थापना की। उस वक्त उनके पास 3,500 रुपये ही थे। यहां निशुल्क योग प्रशिक्षण के बचपन से ही 2 और इलाज किया जाने लगा।

एक लाख करोड का है लक्ष्य

वर्ष 2006 में पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना की। रामदेव योग कराने के साथ ही आयुर्वेद के फायदे बताते हैं, जबकि आचार्य बालकृष्ण कंपनी का पूरा प्रबंधन संभालते हैं। वे कंपनी के चेयरमैन और सीईओ हैं। कंपनी में 94 फीसदी उनकी हिस्सेदारी है। हालांकि कंपनी का असली चेहरा योगगुरु रामदेव ही हैं। दोनों ने तीन दशक के संघर्ष से पतंजलि ग्रुप को करीब 31 हजार करोड़ रुपये के वार्षिक टर्नओवर की कंपनी बना दिया है। बाबा की कंपनी की नेटवर्थ 1,600 करोड़ रुपये हैं। रामदेव ने पिछले साल जून में एक प्रेसवार्ता में दावा किया था कि उनका लक्ष्य अगले पांच वर्षों में पतंजलि ग्रुप के टर्नओवर को एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाना है। इसके साथ ही स्वदेशी और आयुर्वेद उद्योग में एक नई हलचल बनी है।

विवादों से गहरा नाता Swami Ramdev

बाबा रामदेव की तुलना अमेरिका के 20वीं सदी के धर्म प्रचारक व मंत्री बिली ग्राहम से की जाती है, जिन्होंने कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों को ईसाई अधिकारों के लिए प्रेरित किया। पतंजलि आयुर्वेद ने बीते 18 वर्षों में जिस गति से प्रगति की है, उसी गति से कंपनी के कर्ताधर्ताओं पर गड़बड़ी के आरोप भी लगे। 2013 में उनके खिलाफ जमीन की धोखाधड़ी के आरोप में उत्तराखंड सरकार ने 81 मुकदमे दर्ज किए थे। ईडी और सीबीआई ने भी उनके खिलाफ केस दर्ज कर जांच की। उनके ऊपर अपने गुरु स्वामी शंकरदेव के अपहरण के भी आरोप लगे और सीबीआई ने केस दर्ज किया था। हालांकि बाबा ने सारे आरोपों को बेबुनियाद बताया। उन्होंने कहा था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई गई आवाज को दबाने के लिए षड्यंत्र कर उन पर मुकदमे दर्ज कराए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की साजिश भी उनका एक तर्क है। चाहे जो हो, वे अब भी योग और आयुर्वेद के मामले में कई लोगों की आशा का केंद्र हैं। तो यह थी रामकिशन यादव से स्वामी रामदेव तक की पूरी कहानी। आशा है आपको यह कहानी खूब पसंद आई होगी। स्वामी रामदेव के कुछ और किस्से जल्दी ही अपडेट करेंगे। Swami Ramdev

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