Swami Ramdev : योग गुरू से उद्योगपति बने स्वामी रामदेव चिल्ला-चिल्लाकर माफी मांग रहे हैं। स्वामी रामदेव बार-बार बोल रहे हैं कि माफी दे दो- माफी दे दो किन्तु बार-बार बोलने पर भी स्वामी रामदेव को माफी नहीं मिल रही है। हो सकता है कि आपको पता ही ना हो कि स्वामी रामदेव का माफी मांगने वाला यह मामला क्या है? हम यहां विस्तार से बता रहे हैं कि स्वामी रामदेव का यह माफी वाला मामला दरअसल है क्या ?
Swami Ramdev
योग गुरू से उद्योगपति बने स्वामी रामदेव का
स्वामी रामदेव को सब जानते हैं। स्वामी रामदेव एक योग गुरू हैं। योग से प्रसिद्ध हासिल करने के बाद उन्होंने पतंजलि क नाम से कंपनी खोली थी। स्वामी रामदेव की पतंजलि कंपनी भारत में आयुर्वेद की सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती है। स्वामी रामदेव का दावा है कि वें पतंजलि को दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनाएंगे। इसी पतंजलि कंपनी से जुड़ा हआ है स्वामी रामदेव का ताजा विवाद। पतंजलि कंपनी में स्वामी रामदेव के पार्टनर हैं बालकृष्ण शास्त्री। बाल कृष्ण शास्त्री भी स्वामी रामदेव के साथ माफीनामे के विवाद में घिरे हुए हैं। योग गुरू से उद्योगपति बने स्वामी रामदेव का माफी वाला मामला दिलचस्प मामला है।
IMA से जुड़ा हुआ है यह मामला
दरअसल भारत की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. ये याचिका 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार किया और खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया है. आरोप लगाया कि विज्ञापन में यह दिखाया गया कि पतंजलि प्रोडक्ट कोविड वायरस समेत कुछ बीमारियों और बीमारियों को पूरी तरह और स्थायी तौर पर ठीक कर सकते हैं. इतना ही नहीं, आधुनिक चिकित्सा और कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम के खिलाफ पतंजलि आयुर्वेद ने अपमानजनक अभियान चलाया। आईएमए ने अपनी याचिका में पतंजलि पर दो कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया गया है। इसमें ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 का जिक्र है। ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट में प्रावधान है कि किसी भी बीमारी को बिना साइंटिफिक प्रूफ के पूरी तरह ठीक करने का दावा करना गलत और भ्रामक है और यह कानून का उल्लंघन है. कंज्यूमर प्रोटेशन एक्ट में प्रावधान है कि कोई कंपनी झूठा या भ्रामक प्रचार नहीं कर सकती है। अगर वो ऐसा करती है और वो उपभोक्ता के हित के खिलाफ है तो यह कानून के उल्लंघन के दायरे में आता है। दरअसल, पतंजलि ने प्रिंट मीडिया में कुछ विज्ञापन जारी किए थे। इन विज्ञापनों में डायबिटीज और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया था। इसी मामले से माफी का यह प्रकरण जुड़ा हुआ है।
नाराज हो गया था सुप्रीम कोर्ट
दरससल सुप्रीम कोर्ट में अदालत में दो अलग-अलग हलफनामे दायर किए गए हैं। एक हफलनामे में रामदेव और बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल 21 नवंबर के आदेश के बाद बयानबाजी करने पर माफी मांगी है. अदालत को दिए गए आश्वासनों के बावजूद पालन ना करने और उसके बाद दोनों द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों से पीठ नाराज हो गई थी. बाद में कोर्ट ने नोटिस जारी कर यह बताने के लिए कहा था कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए? इससे पहले 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की थी और बिना शर्त माफी मांगने वाले हलफनामे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे पर ढिलाई बरतने के लिए उत्तराखंड के लाइसेंसिंग अथॉरिटी को कड़ी फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अमानुल्लाह ने 21 नवंबर 2023 को सुनवाई के दौरान कहा था, पतंजलि को सभी भ्रामक दावा करने वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करना होगा. कोर्ट का कहना था कि ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा और हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। जस्टिस कोहली ने पिछले साल 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर रामदेव से सवाल पूछा. सुनवाई के दौरान रामदेव ने कहा कि उनका इरादा कभी भी किसी भी तरह से कोर्ट का अनादर करने का नहीं था. उस वक्त हमने जो किया, वो नहीं करना चाहिए था। भविष्य में भी इस बात को ध्यान में रखेंगे। उन्होंने कहा कि यह काम के प्रति उत्साह में हो गया है। किसी को भी गलत बताने का हमारा कोई इरादा नहीं था. आगे से इसके प्रति जागरूक रहूंगा। आगे से नहीं होगा।
23 अप्रैल को फिर होगी सुनवाई
इस पर कोर्ट ने कहा, आप इतने मासूम नहीं हैं. ऐसा लग नहीं रहा है कि कोई हृदय परिवर्तन हुआ हो. अभी भी आप अपनी बात पर अड़े हैं। हम इस मामले को 23 अप्रैल को देखेंगे और आप दोनों (रामदेव-बालकृष्ण) उस दिन भी कोर्ट में मौजूद रहें. बालकृष्ण ने भी गलती के लिए माफी मांगी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कोहली ने रामदेव से कहा, हम समझना चाहते हैं. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों यहां हैं। आपकी बहुत प्रतिष्ठा है। लोग आपको देखते हैं. आपके कार्यों की सराहना करते हैं। आपने योग के लिए बहुत सारे काम किए हैं। रामदेव ने हाथ जोडक़र कहा, मैं कहना चाहता हूं कि मैंने जो भी गलती की है उसके लिए मैं बिना शर्त माफी मांगता हूं। जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, आप एलोपैथी को नीचा नहीं दिखा सकते। आप अपना काम करें। आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। बेंच ने कहा, उसने पतंजलि के वकील के हलफनामा देने के बाद पिछले साल नवंबर में आदेश पारित किया था. बेंच ने कहा, आपने यह सब तब किया जब अदालत का आदेश था। आप इतने भोले नहीं थे कि आपको पता ना चले कि अदालत में क्या हुआ है। बेंच ने कहा, इतनी मासूमियत अदालत में काम नहीं आती है। अगर आप सोच रहे हैं कि आपके वकील ने माफी मांग ली है तो हमने अभी तक यह तय नहीं किया है कि आपकी माफी स्वीकार की जाए या नहीं।
बहुत नाराज हो गई अदालत
- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रही बेंच तब नाराज हो गई जब पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने कहा कि रामदेव का कंपनी के रोजमर्रा के मामलों से कोई लेना-देना नहीं है। जस्टिस अमानुल्लाह ने बालकृष्ण से कहा, आप फिर से अपने रुख पर अड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि माफी दिल से नहीं आती है।
- रोहतगी ने शुरुआत में ही अदालत से कहा कि वे सार्वजनिक माफी मांगने को तैयार हैं. उन्होंने कहा, मैंने एक सुझाव दिया था कि मैं खेद जताने के लिए और जनता को यह बताने के लिए सार्वजनिक माफी मांगने को तैयार हूं। ऐसा नहीं है कि मैं अदालत के प्रति कुछ दिखावा कर रहा हूं. बेंच ने उनसे कहा कि भारत में आयुर्वेद, योग, एलोपैथी और यूनानी जैसी कई चिकित्सा पद्धति हैं. जनता उन सभी में विश्वास करती है। किसी एक पद्धति को खराब कहना और उसे खत्म करने की सोच रखना, यह सही नहीं है।
- रामदेव ने बेंच से कहा कि चिकित्सा की दो पद्धति के बीच इस तरह के टकराव काफी समय से हैं और उनका इरादा एलोपैथी का अनादर करना नहीं था। इससे पहले रामदेव और बालकृष्ण ने फर्म द्वारा जारी विज्ञापनों पर अपने उत्पादों की औषधीय प्रभावकारिता के बारे में बड़े दावे करने पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगी थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल की सुनवाई में पतंजलि और बालकृष्ण को कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं देने पर फटकार लगाई थी और कहा था कि यह पूरी तरह कोर्ट की अवहेलना है. कोर्ट ने केंद्र पर भी सवाल उठाए थे और कहा था, आश्चर्य की बात यह है कि जब पतंजलि यह कह रही थी कि एलोपैथी में कोविड का कोई इलाज नहीं है तो केंद्र ने अपनी आंखें बंद रखने का फैसला क्यों किया? कोर्ट ने यह भी कहा था कि उसे रामदेव और बालकृष्ण के खिलाफ झूठी गवाही का मामला भी शुरू करना चाहिए. क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि हलफनामे के साथ जो दस्तावेज जोड़े गए, वो बाद में तैयार किए गए हैं. यह झूठी गवाही का स्पष्ट मामला है. हम आपके लिए दरवाजे बंद नहीं कर रहे, लेकिन वही सब बता रहे हैं जो हमने अब तक देखा है।
IMA के साफ आरोप
दरअसल, कोविड-19 महामारी के दौरान साल 2021 में योग गुरु रामदेव ने एलोपैथिक फार्मास्यूटिकल्स पर कुछ विवादास्पद टिप्पणियां भी की थीं। इसे लेकर कई राज्यों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थीं। रामदेव ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक एफआईआर से सुरक्षा की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। रामदेव का कहना था कि उनकी टिप्पणियां किसी अपराध के दायरे में नहीं आतीं हैं. उनके खिलाफ सभी एफआईआर को एक साथ जोडऩे और उन्हें दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग की थी। इस बीच, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( IMA ) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कहा, पतंजलि ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के खिलाफ एक बदनाम करने वाला अभियान चलाया. पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन से एलोपैथिक दवाओं की उपेक्षा हो रही है।
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