Swami Vivekanand Jayanti: स्वामी विवेकानंद जी के विचार हर किसी को नई ऊर्जा से भर देते हैं। इनके विचार लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्हें जीवन में निरंतर प्रयास करते रहने की प्रेरणा देते हैं। स्वामी विवेकानंद हर युवा के लिए एक प्रेरणा हैं। बहुत ही छोटी सी उम्र में विवेकानंद जी ने दुनिया को बहुत कुछ सिखा दिया था। इनका स्वभाव बहुत ही शांत था और व्यक्तित्व जल की तरह निर्मल था। इतने महान व्यक्तित्व का इंसान बहुत जल्दी ही दुनिया को छोड़कर चला गया मगर अपने विचारों को एक तोहफे के तौर पर दुनिया के लिए छोड़ गया। आज भी इनके सकारात्मक विचारों के लिए लोग इन्हें याद करते हैं।
रामकृष्ण परमहंस थे विवेकानंद (Swami Vivekanand) के गुरु-
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका परिवार एक अपर मिडिल क्लास था। बचपन से ही इनकी बुद्धि काफी तेज थीं। इन्हें पढ़ने के लिए वेस्टर्न स्टाइल यूनिवर्सिटी भेजा गया था। विवेकानंद ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना था और स्वामी रामकृष्ण से विवेकानंद की मुलाकात तब हुई थी जब ये ईश्वर की तलाश कर रहे थे। बाद में विवेकानंद ब्रह्म समाज से भी जुड़े।
विवेकानंद जी के पिता का 1884 में स्वर्गवास हो गया था। जिसके बाद इनको आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ा था। ऐसी स्थिति में ये अपने गुरु के पास गए और उनसे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा। तब उनके गुरु ने उनको खुद ही प्रार्थना करने की बात कही। गुरु की बात सुनकर विवेकानंद (Swami Vivekanand) जी एक मंदिर गए और खुद ही प्रार्थना करने लगे। उसमें उन्होंने खुद के लिए वैराग्य और विवेक मांगा था। बस तभी से इनका झुकाव एक तपस्वी के जीवन की तरफ हो गया।
अमेरिका में अपने भाषण से किया लोगों को खड़े होने पर मजबूर-
ये बात है 1893 की। इसी समय विश्व धर्म संसद का आयोजन अमेरिका के शिकागो शहर में किया जाना था। स्वामीजी का बेहद मन था इस संसद में हिस्सा लेने का मगर शिकागो पहुंचना उनके लिए आसान न था। लेकिन स्वामीजी ने संकल्प नहीं छोड़ा और शिकागो गए। जब उन्होंने शिकागो में भाषण शुरू किया तो शुरुआत में उन्होंने बोला कि, ‘My brothers and sisters of America’, इसके बाद हर तरफ तालियों की गूंज थी और हर कोई खड़े होकर इनका सम्मान कर रहा था। इसके बाद दो साल तक स्वामीजी अमेरिका में ही रहे और वहीं रहकर इन्होंने 1894 में वेदांत सोसायटी की भी खोज की। हिंदू धर्म और अध्यात्म के प्रति इनका लगाव हमेशा से ही रहा। यूनाइटेड किंगडम तक स्वामी जी ने हिंदू अध्यात्म के सिद्धान्तों के बारे में लोगों को बताया।
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