पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी को हुए हैं 2 फायदे!
Anjanabhagi
आपका चौंकना बिलकुल सही है क्योंकि, पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ रही कीमतों से सरकार को फायदा होना तो समझ में आता है, लेकिन आम आदमी को इससे क्या फायदा हो सकता है?
बहुत से लोग मानते हैं कि बढ़ती महंगाई से इस सरकार का कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि चुनाव के वक्त हिंदू-मुस्लिम करके उन्हें वोट तो मिल ही जाने हैं।
तो क्या ये बात सही है कि सरकार जानबूझकर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा रही है? कुछ हद तक ये आरोप सच हैं, क्योंकि ईंधन पर सब्सिडी को खत्म किया जा रहा है। लेकिन, जनता को नाराज करने वाले इस फैसले से सरकार को क्या फायदा होगा?
वाहन बाजार पर हुआ गहरा असर मोदी सरकार आने के बाद 2014 से ही डीजल और पेट्रोल की कीमतें न सिर्फ बढ़ रही हैं, बल्कि दोनों के बीच कीमत का अंतर भी लगातार कम हो रहा है।
इसका सीधा असर देश के वाहन बाजार पर पड़ा है। 2012-13 में देश में बिकने वाले कुल वाहनों में 58% डीजल वाहन होते थे। यानी, अगर 100 गाड़ियां बिकती थीं तो उसमें से 58 डीजल वाली गाड़ियां होती थीं और 42 पेट्रोल से चलने वाले वाहन।
पिछले सात सालों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के चलते इस अनुपात में भारी अंतर आया है। 2020-21 में भारत में बिकने वाले कुल वाहनों में डीजल वाहनों की हिस्सेदारी 17% रह गई है। वहीं, पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की हिस्सेदारी 2012-13 के 42% से बढ़कर 2020-21 में 83% हो गई है।
क्यों बढ़ी डीजल की मांग
असल में 2014 से पहले सरकारें डीजल पर भारी सब्सिडी देती थीं जबकि, पेट्रोल पर कोई सब्सिडी नहीं थी। इस वजह से डीजल और पेट्रोल की कीमत में लगभग 60 फीसदी का अंतर होता था। फिलहाल, पेट्रोल-डीजल के दाम में महज 11 फिसदी का ही अंतर रह गया है, क्योंकि सरकार ने डीलज पर सब्सिडी को खत्म कर दिया है।
डीजल पर सब्सिडी देने के पीछे पुरानी सरकारों का तर्क था कि इसका इस्तेमाल गरीब, किसान, ट्रक, ऑटो, टैंपो चलाने वाले लोग करते हैं जबकि, पेट्रोल का इस्तेमाल अमीर लोग करते हैं। हालांकि, पेट्रोल पंप से डीजल कोई भी खरीद सकता था। चाहे वह ट्रैक्टर से आया किसान हो या मर्सिडीज से आया बिजनेसमैन।
अमीर करने लगे गरीबों के ईंधन का इस्तेमाल
नतीजा यह हुआ कि भारत में वाहन बेचने वाली सभी कंपनियों ने अपने एसयूवी यानी महंगी कारों में डीजल इंजन लगाने शुरू कर दिए, क्योंकि भारतीय बाजारों में इनकी भारी मांग थी। मर्सीडीज जैसे महंगे ब्रांड ने भी भारतीय बाजार के लिए डीजल इंजन वाले मॉडल बनाने शुरू कर दिए। यानी, गरीबों के ईंधन नाम पर बिक रहे डीजल का इस्तेमाल अमीरों की महंगी कारों में होने लगा।
इसके अलावा गुरुग्राम, नोएडा जैसे नवविकसित शहरों के आलीशान-बहुमंजिला कार्पोरेट ऑफिसों के बाहर लगे बड़े-बड़े जनरेटर में भी डीजल का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता रहा। बहुत से ऑफिसों में तो चौबीस घंटे चलने वाले इन जनरेटर के भरोसे ही बिजली की सप्लाई होने लगी। यानी, डीलज पर मिलने वाली सब्सिडी का फायदा बड़े-बड़े कार्पारेट हाउस और महंगी कारों के मालिक कर रहे थे।
आम आदमी को हुआ दोतरफा नुकसान
वाहनों और जनरेटरों में डीजल की बढ़ती खपत ने एक ओर पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया दूसरी ओर, गरीबों के ईंधन नाम पर सरकारी खजाने में भी चपत लगती रही।
डीजल सब्सिडी के नाम पर कई दशकों तक कर दाताओं के पैसे का इस्तेमाल वे लोग करते रहे जो इसके बिलकुल हकदार नहीं थे।
सात साल में बदली वाहन बाजार की तस्वीर
पेट्रोल-डीजल के दामों में खत्म हो रहे अंतर ने भारतीय वाहन बाजार की तस्वीर बदल दिया है। डीजल की बढ़ती कीमत की वजह से डीजल वाले वाहनों की मांग में भारी गिरावाट आई है। 2011-12 में वाहनों की कुल बिक्री में डीजल से चलने वाहन की हिस्सेदारी 58% थी। जबकि, 2020-21 में यह घटकर 17% हो गई है। यानी, 100 में से 17 लोग ही डीजल से चलने वाले वाहन खरीद रहे हैं।
इससे न सिर्फ प्रदूषण में कमी आई है, बल्कि वाहन निर्माता कंपनियों ने भी डीजल वाली कारों के बजाए सीएनजी और बैटरी संचालित कारों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है।
क्या डीजल का महंगा होना अच्छा है
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज भी खेती और ट्रकों में ज्यादातर डीजल का ही इस्तेमाल होता है। डीजल की बढ़ती कीमतों से इस तबके को परेशानी हुई है।
ऐसे में सरकार को कोई ऐसा तरीका निकालना होगा जिससे किसानों और जरूरतमंद लोगों को डीजल की बढ़ती कीमतों से हो रही परेशानी से बचाया जा सके।