Thursday, 28 March 2024

बदल चुकी है भारत की राजनीति, ये 9 संकेत कर रहे साफ इशारा

1. फिलहाल, इन नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रही है राजनीति ऐसे कौन से नेता हैं जो फिलहाल भारत की राजनीति…

बदल चुकी है भारत की राजनीति, ये 9 संकेत कर रहे साफ इशारा

1. फिलहाल, इन नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रही है राजनीति
ऐसे कौन से नेता हैं जो फिलहाल भारत की राजनीति में ज्यादा लोकप्रिय हैं या जिनके इर्द-गिर्द भारत की राजनीति घूमती है? इसके जवाब में हर व्यक्ति अपनी पसंद के मुताबिक एक लिस्ट बना सकता है, जिसमें अलग-अलग नेताओं के नाम शामिल हो सकते हैं। लेकिन, शायद ही कोई इन 10 नेताओं को उस लिस्ट में शामिल करने से मना करेगा…
1. अमित शाह (56)
2. योगी आदित्यनाथ (49)
3. अरविंद केजरीवाल (53)
4. राहुल गांधी (51)
5. हिमंता विश्व शर्मा (52)
6. जगनमोहन रेड्डी (48)
7. कन्हैया कुमार (34)
8. जिग्नेश मेवानी (38)
9. हार्दिक पटेल (28)
10. नवजोत सिंह सिद्धू (57) आदि।

2. इस लिस्ट से बाहर हो चुके हैं पीएम मोदी
इन नेताओं में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी शामिल नहीं हैं, क्योंकि वह अपने राजनीतिक जीवन के शिखर पर हैं। अब तो बीजेपी और आरएसएस में भी उनके उत्तराधिकारी के बारे में अटकलें लगनी शुरू हो चुकी हैं।

राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के बाद कौन? इस सवाल के जवाब में अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और राहुल गांधी का नाम लिया जाता है।

3. तेजी से उभर रहे हैं ये नेता
हालांकि, हिमंता विश्व शर्मा, जगन मोहन रेड्डी, कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल जैसे नेता भी सुर्खियां बटोरने और लोकप्रियता के मामले में काफी आगे हैं। इन नेताओं का राष्ट्रीय राजनीति में दखल और असर भी साफ तौर पर देखा जा सकता है।

केरल में पिन्नाराई विजयन, ओडीशा में नवीन पटनायक या मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भी ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में इनका दखल ना के बराबर है।

4. फिलहाल ऐसी दिखती है भारतीय राजनीति की तस्वीर
नेताओं की ये कतार और उनका असर इस बात का साफ संकेत है कि मोदी-अमित शाह और बीजेपी-आरएसएस की बंदिश (combination) कितनी ही मजबूत क्यों न दिखे लेकिन, उसे चुनौती देने वालों की कमी नहीं है।

नेताओं की इस फेहरिस्त में वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी और सेक्युलर से लेकर क्षेत्रवाद, हर तरह की विचारधारा को मानने वाले नेता शामिल हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि दिल्ली में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो लेकिन, भारत में हर विचाराधारा के मानने वाले और उसके समर्थक मौजूद हैं। अलग-अलग राज्यों में इन नेताओं और राजनीतिक दलो की मजबूत उपस्थिति इस बात का सबूत है।

केरल में कम्यूनिस्ट पार्टी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, पंजाब में कांग्रेस, ओडीशा में बीजू जनता दल या पश्चिम बंगाल में टीएमसी की मजबूत उपस्थिति भारतीय राजनीति के संघीय स्वरूप और भारत की वैचारिक विविधता का प्रमाण है।

5. कमजोर जनाधार वालों के पास है यह बहाना
भारतीय राजनीति की इस विविधता को स्वीकार न करने वाले यह रोना रोते हैं कि देश हिंदू-मुसलमान में बंट गया है। इसके लिए वह पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी और मोदी की जीत को भारत की विविधता पर संकट बता कर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधना चाहते हैं।

वह भूल जाते हैं कि केरल से लेकर दिल्ली विधानसभा के चुनावों में बीजेपी को कितनी बुरी हार का सामना करना पड़ा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं।

राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे इन नेताओं या राजनीतिक दलों की उपस्थिति ही बीजेपी और मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। छोटे से छोटे राज्य के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का पूरी ताकत के साथ लड़ना यह बताता है कि वह किसी भी प्रतिद्वंदी को हल्के में नहीं लेते।

6. क्यों राजनीति बन गई टेढ़ी खीर
यह इस बात का भी संकेत है कि फिलहाल भारत में राजनीति करना आसान काम नहीं है क्योंकि, कम्पटीशन बहुत तगड़ा है।

किसी भी दल या नेता के लिए खुद को दूसरे से बेहतर साबित करने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी। क्योंकि, सामने वाला भी राजनीति को लेकर उतना ही गंभीर है और 24/7 मेहनत करता है।

7. ब्लेम गेम की पॉलिटिक्स का जमाना गया
आज की राजनीति में अपने विरोधी दल, विचारधारा या नेता पर आरोप लगाना या उसे बदनाम करने भर से जनता का विश्वास और वोट नहीं पाया जा सकता।

टीवी पर गरमागरम डिबेट करने, सोशल मीडिया पर पॉपुलर होने और इंटरनेट पर सनसनी खड़े करने वाले व्यू या पेज व्यू तो पा सकते हैं, लेकिन वोट नहीं। यह भारतीय मतदाताओं के परिपक्व होने और दिखावे से प्रभावित न होने का भी प्रमाण है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण नवीन पटनायक हैं जो मीडिया या सोशल मीडिया से दूर रहने के बावजूद लगातार पांच बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए हैं।

8. जो जितना स्पष्ट उसे उतना वोट
आज हर राजनीतिक दल और नेता के सामने दो तरफा प्रतिस्पर्धा है। एक ओर उसके राजनीतिक प्रतिद्वीं हैं, तो दूसरी ओर ऐसा मतदाता है जो ढोंग (Hypocrisy) बिलकुल पसंद नहीं करता। वह ओवैसी और साध्वी प्रज्ञा को तो बर्दास्त कर सकता है, लेकिन टोपी पहनने और मंदिर जाने का दिखावा करने वाले नेता उसे बिलकुल पसंद नहीं आते।

आज का वोटर साफगोई पसंद करता है। वह जानना चाहता है कि आखिर आपकी पॉलिटिक्स क्या है? वह चाहता है कि जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं पर खुलकर बात हो ताकि उसका समाधान हो और आगे की बात हो सके। यही कारण है कि तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दल आज सबसे ज्यादा कमजोर महसूस कर रहे हैं।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से जुड़ी समस्याएं हैं। शायद यही वजह है कि इन समस्याओं पर परदा डालने की बजाए, खुलकर बात करने और समाधान की ओर बढ़ने वाले नेता ज्यादा पसंद किए जाते हैं।

9. क्या यह बदलाव सही है?
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि राजनीति में इस बदलाव की वजह क्या है? क्या भारतीय समाज बदल रहा है जिसका नतीजा आज की राजनीति है? या इसका उलटा है? यह ठीक वैसे ही है कि पहले अंडा आया या मुर्गी? लेकिन, संकेत साफ है कि राजनीति बदल चुकी है। जो इस बदलाव को स्वीकार करते हैं उन्हें भारत के टूटने या बिखरने का कोई डर नहीं है। जो यह स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं उन्हें लगता है कि यह बदलाव भारत के टुकड़े कर देगा। वह चाहते हैं कि राजनीति उसी ढर्रे पर चलती रहे जैसे तीस, चालीस या पचास साल पहले चलती थी, क्योंकि वही राजनीति उन्हें सूट करती थी।

– संजीव श्रीवास्तव

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