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इस रफ्तार से बढ़ रही है भारत में मुसलमानों की आबादी!

क्या यह सच है कि मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है? क्या हिंदुओं की आबादी घट रही है? इस सवाल का जवाब सरकारी आंकड़ों में छिपा हुआ है।

23 September 2021 , 7:29 AM
in Political, राष्ट्रीय
File Photo

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जब पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत का हिस्सा थे यानी ​अविभाजित भारत से लेकर आज तक के भारत में एक बहस लगातार जारी है। क्या मुसलमानों की आ​बादी बहुत तेजी से बढ़ रही है? क्या एक दिन वह हिंदू आबादी से भी ज्यादा हो जाएंगे?

आमतौर पर चुनावों के दौरान इस मुद्दे को खासी हवा दी जाती है लेकिन, क्या सच में ऐसा खतरा है? क्या यह सच है कि मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है? क्या हिंदुओं की आबादी घट रही है?

इस सवाल का जवाब सरकारी आंकड़ों में छिपा हुआ है। इन्हीं आंकड़ों का विश्लेषण कर प्यू रिसर्च सेंटर ने (Pew Research Center) कुछ ऐसा डेटा जारी किया है जो सच्चाई पर से पर्दा उठा देता है। बता दें कि प्यू का यह सर्वे भारत सरकार की दो संस्थाओं (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और भारतीय जनगणना के आंकड़ों) के डेटा पर आधारित है।

यह अलग बात है कि दोनों ही धर्मों के कथित ठेकेदार या नेता अपने भाषणों में इसका जिक्र नहीं करते क्योंकि, इससे उनकी राजनीति खतरे में पड़ सकती है। तो, आइए जानते हैं कि आखिर मुसलमानों की आबादी के बारे में प्यू सर्वे क्या कहता है।

आजादी के ​बाद कितनी बढ़ी मुसलमानों की आबादी
प्यू सर्वे के मुताबिक आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में भारत में हिंदुओं की आबादी 84.5% थी, जबकि मुस्लिम आबादी 9.8% थी।

जनगणना 2011 के मुताबिक ​भारत में हिंदुओं की आबादी 79.8% हो गई और मुस्लिम आबादी 14.8% है। कोरोना महामारी के चलते 2021 में होने वाली जनगणना के अगले एक साल में होने की संभावना है।

इस आंकड़े से साफ है कि 1951 से लेकर 2011 तक के 60 वर्षों के सफर में हिंदू आबादी (84.5/79.8) में लगभग 4% की कमी आई है और मुस्लिम (9.8/13.8) आबादी 4% बढ़ी है।

इस आंकड़े से स्पष्ट है कि आजादी के बाद से भारत में हिंदुओं की आबादी कम हुई है और मुसलमानों की संख्या बढ़ी है। लेकिन, क्या यह पूरा सच है?

क्या बहुत तेजी से बढ़ रही है मुस्लिम आबादी

इस बात का हौव्वा खड़ा किया जाता है कि मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है और यह जल्दी ही हिंदुओं की आबादी से ज्यादा हो जाएगी।

इस डर का जवाब भी इन्हीं आंकड़ों में छुपा हुआ है। 1952 में भारत में मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर (fertility rate) 4.4 थी, जबकि हिंदू महिलाओं की प्रजनन दर 2.6 थी। इसे मोटे तौर पर ऐसे समझ सकते हैं कि 10 मुस्लिम महिलाएं औसतन 44 बच्चों को जन्म देती थीं। जबकि, 10 हिंदू महिलाएं 26 बच्चों को जन्मती थीं। यानी हिंदू महिलाओं की तुलना में मुसलमान महिलाएं औसतन 18 बच्चे ज्यादा पैदा करती थीं।

लेकिन, पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा बताता है कि ​1992 में मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 4.4 से घटकर 2.6 हो गई है, जबकि हिंदू महिलाओं की प्रजनन दर 2.6 से घटकर 2.1 पर पहुंच गई है। यानी मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में तेजी से कमी आई है और यह राष्ट्रीय औसत 2.2 से थोड़ी ही कम रह गई है। चार दशकों के इस ट्रेंड से अनुमान लगाया जा सकता है कि 2021 के जनगणना के आंकड़े कैसे होंगे।

मुसमानों की आबादी बढ़ने की वजह क्या है ? 

प्यू सर्वे इस बात का साफ संकेत है कि पिछले सात दशकों में भारतीयों के जीवन स्तर और शैक्षणिक स्तर में सुधार आया है। इन सुधारों के चलते ही हिंदू हो या मुसलमान, दोनों की जनसंख्या वृद्धि दर में अपेक्षा से ज्यादा कमी आई है।

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जहां हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर 2.6 और 2.1 है, वहीं सिख और जैन की आबादी बढ़ने की दर 1.2 और 1.6 है। स्पष्ट है कि जैन समुदाय शुरू से ही आर्थिक तौर पर समृद्ध रहा है और सिख भी अपेक्षाकृत संपन्न माने जाते हैं। जीवन स्तर और शिक्षा में सुधार के साथ जन्म दर में कमी आती है। इसके लिए राजनीति करने या जोर जबरदस्ती की जरूरत नहीं पड़ती।

अमेरिका और यूरोप के देशों में जनसंख्या बढ़ने की दर लगभग स्थिर होना इसी बात का संकेत है। इन देशों में हर साल पैदा होने वाले बच्चों की संख्या और साल भर में होने वाली मौतें लगभग बराबर होती है। इसे ही जनसंख्या का स्थिर हो जाना कहते हैं।

क्यों बढ़ती है आबादी

दुनिया की कुल हिंदू आबादी का 94% हिस्सा भारत में रहता है। जबकि, दुनिया भर में रहने वाले मुसलमानों की 40% आबादी ​दक्षिण एशियाई देशों में रहती है। एशिया के मुस्लिम देशों में पाकिस्तान की जनसख्या वृद्धि दर सबसे ज्यादा है। जबकि, मुस्लिम बहुल  देश होने के बावजूद बांग्लादेश की जनसख्या वृद्धि दर भारत से भी कम है।

प्यू सर्वे के मुताबिक अगल सौ सालों में अफ्रीका के गरीब देशों की आबादी तेजी से बढ़ेगी। यहां के कई छोटे देश आबादी के मामले में चीन और भारत को भी पछाड़ सकते हैं क्योंकि इन देशों में आबादी बढ़ने की दर डबल डिजिट में है।

अफ्रीका और पाकिस्तान के उदाहरण से समझा जा सकता है कि जनसंख्या बढ़ने की दर का गरीबी और ​अशिक्षा से सीधा संबंध है। भारत ने पिछले सात दशकों में अपनी जनसंख्या वृद्धि दर में अपेक्षा से कहीं ज्यादा कमी दर्ज की है। इन आंकड़ों ने बड़े-बड़े विशेषज्ञों को चौंकाया है। उम्मीद है कि 2022-23 में आने वाले जनगणना के नए आंकड़े उस राजनीति की हवा निकाल दें जो इन आंकड़ों को धार्मिक आधार पर बांट कर अपना वोट बैंक बढ़ाने की फिराक में हैं।

– संजीव श्रीवास्तव

Tags: CensusPEW Survey

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