Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुल छह याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इन याचिकाओं में हिंदू पक्ष कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष इसका समर्थन कर रहा है और इसे रद्द करने के खिलाफ है। इस मामले की सुनवाई 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी।
सुनवाई की तारीख और न्यायाधीशों की बेंच
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की स्पेशल बेंच 12 दिसंबर को दोपहर 3:30 बजे इस मामले पर सुनवाई करेगी। यह मामला पिछले तीन साल आठ महीने से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और केंद्र सरकार ने अब तक इसका जवाब दाखिल नहीं किया है।
हिंदू पक्ष की दलील
हिंदू पक्ष ने 1991 के इस कानून को असंवैधानिक करार देने की मांग की है। उनका कहना है कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, क्योंकि यह नागरिकों को अदालत में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है और उनके धार्मिक अधिकारों का हनन करता है। हिंदू पक्ष के प्रमुख याचिकाकर्ताओं में विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रह्मण्यन स्वामी, अश्विनी उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल कुमार त्रिपाठी शामिल हैं।
मुस्लिम पक्ष का समर्थन
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष ने इस कानून का समर्थन करते हुए इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण बताया है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस कानून के समर्थन में याचिका दाखिल की है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है?
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, जो कि 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा लागू किया गया था, के तहत यह प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई ऐसा प्रयास करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। हालांकि, अयोध्या का मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण उसे इस कानून से बाहर रखा गया था। Supreme Court