यूपी के विकास की पोल खोल देती है नीति आयोग की ये रिपोर्ट
Anjanabhagi
आमतौर पर वर्तमान (मोदी) सरकार पर आंकड़ों को छुपाने का आरोप लगाया जाता है। लेकिन, हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिग इंडिया (नीति आयोग) ने जो आंकड़े जारी किए हैं उन्हें देखकर यह कहना मुश्किल है।
असल में, नीति आयोग (NITI Aayog) ने ‘हेल्थी स्टेट प्रोग्रेसिव इंडिया’ (Healthy States Progressive India) नाम से भारत का स्वास्थ्य सूचकांक (Health Index) जारी किया है।
इस रिपोर्ट में मोटे तौर पर यह बताया गया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में देश का कौन सा राज्य किस स्थान पर है या कितना अच्छा या बुरा प्रदर्शन कर रहा है। आयोग की इस रिपोर्ट में भारतीय राज्यों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से तीन वर्गों (बड़े, छोटे और मध्यम राज्यों) में बांटा गया है।
इस रिपोर्ट से बीजेपी को हो सकता है बड़ा नुकसान
चौंकाने वाला आंकड़ा इसके बाद सामने आता है। बड़े (19) राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले 5 राज्य केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं। अगर राजनीतिक नजरिए से देखें तो इसमें से कोई भी बीजेपी (BJP) शासित राज्य नहीं है।
हेल्थ इंडेक्स (Health Index) की इसी श्रेणी में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले 5 राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड हैं। यानी, 5 में 4 बीजेपी शासित राज्य हैं। यह रिपोर्ट राजनीतिक रूप से बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। इसके बावजूद यूपी चुनाव (UP Election 2022) से ठीक पहले इस रिपोर्ट को जारी करने से नहीं रोका गया।
अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को मिल रही है सजा
इस रिपोर्ट में एक और संदेश भी छुपा है, जो ज्यादा परेशान करने वाला है। हेल्थ इंडेक्स (Health Index) में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पांचों राज्य (केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र) दक्षिण भारत के राज्य हैं जबकि, सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले सभी (उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड) उत्तर भारतीय या हिंदी भाषी राज्य हैं।
हिंदी भाषी राज्यों को देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाले राज्य कहा जाता है क्योंकि, इन ही राज्यों से सबसे ज्यादा सांसद चुने जाते हैं। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हेल्थ इंडेक्स (Health Index) में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश से लोकसभा (Lok Sabha) के लिए 80 सांसद चुने जाते हैं जबकि, सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य केरल से केवल 20 लोकसभा सांसद चुने जाते हैं।
यानी, खराब प्रदर्शन करने के बावजूद राजनीतिक शक्ति हिंदी भाषी राज्यों के पास केंद्रित है। जबकि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में अच्छा करने के बावजूद दक्षिण के राज्य हासिए पर धकेल दिए गए हैं।
उत्तर भारतीयों के लिए शर्मनाक है इस रिपोर्ट के मायने
भारत को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। इतने लंबे समय से राजनीतिक सत्ता को नियंत्रित करने वाले हिंदी भाषी राज्यों का विकास सूचकांकों में लगातार पीछे रहना यह दर्शाता है कि हम किस तरह की राजनीति को बढ़ावा देते आए हैं।
ये आंकड़े चेतावनी दे रहे हैं कि अगर समय रहते उत्तर भारत या हिंदी भाषी राज्यों में राजनीति नहीं बदली तो, इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। विकास के विभिन्न पैमानों पर उत्तर और दक्षिण के बीच लगातार बढ़ रही खाई गंभीर क्षेत्रीय असंतुलन और राजनीतिक असंतोष पैदा कर सकती है।
नीति आयोग (NITI Aayog) की रिपोर्ट (यहां देखें) में कई ऐसे आंकेड़ें हैं जो उत्तर भारतीयों को चौंकाने के लिए काफी हैं। शायद वक्त आ गया है कि हिंदी भाषी राज्य केवल राजनीति का विकास करने के बजाए, विकास की राजनीति के लिए नेताओं पर दबाव बनाना शुरू करें। सरकार किसी भी पार्टी की बने लेकिन, उसके मूल्यांकन का आधार केवल और केवल विकास को बनाना पड़ेगा। उत्तर और दक्षिण के बीच बढ़ती खाई को कम करने का केवल यही एक रास्ता है।