National News

National News :  भारत का हिमालयी क्षेत्र, जो देश की जल, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की धुरी माना जाता है, एक बार फिर जलवायु आपदा के भंवर में फंस गया है। लेकिन हर साल मानसून के साथ यह क्षेत्र जलवायु असंतुलन और मानवीय दखल के घातक मेल से जूझता है। इस बार भी हिमाचल प्रदेश में आसमान से बरसी आफत ने पहाड़ों को दहला दिया है। हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही मूसलधार बारिश ने तबाही की नई तस्वीर पेश की है।

हिमाचल में बारिश बनी कहर

हिमाचल प्रदेश में बीते 24 घंटों के भीतर 16 जगहों पर बादल फटे, तीन स्थानों पर अचानक बाढ़ आई और कई जगहों पर भूस्खलन ने ज़िंदगी थाम दी। इस प्राकृतिक कहर में अब तक 10 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 34 लोग लापता बताए जा रहे हैं। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, बीते 11 दिनों में भारी बारिश से करीब 357 करोड़ रुपये की क्षति हो चुकी है। मंडी जिला सबसे ज़्यादा प्रभावित है, जहां एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार राहत कार्य में जुटी हुई हैं। बीते 32 घंटों में मंडी से 316 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है।

राज्य की 406 सड़कें पूरी तरह बंद हो चुकी हैं। सिर्फ मंडी जिले में ही 248 सड़कें बंद पड़ी हैं, जबकि कांगड़ा, कुल्लू, शिमला, सिरमौर, चंबा समेत अन्य जिलों में भी हालात गंभीर हैं। बिजली और जलापूर्ति सेवाएं भी ठप हैं—1,515 ट्रांसफॉर्मर और 171 जल योजनाएं प्रभावित हुई हैं। बारिश का पैटर्न भी बताता है कि स्थिति कितनी भयावह है—मंडी के सैंडहोल में 223 मिमी, पंडोह में 215 मिमी, पालमपुर में 143 मिमी, और चोपाल में 140 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई। मौसम विभाग ने 7 जुलाई तक के लिए राज्य भर में ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी किया है।

उत्तराखंड में मौसम का नया मोड़

उत्तराखंड में भी मौसम करवट बदल रहा है। देहरादून स्थित मौसम विज्ञान केंद्र ने 11 जिलों में भारी बारिश और कुछ स्थानों पर ओलावृष्टि और बर्फबारी की संभावना जताई है। खासकर उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, पिथौरागढ़, और अल्मोड़ा जैसे जिलों को सतर्क रहने की हिदायत दी गई है।

क्यों बार-बार संकट की जद में आते हैं हिमालयी राज्य?

हिमालय क्षेत्र भारत की पारिस्थितिकी, जल, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है, लेकिन यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज़ से सबसे ज़्यादा संवेदनशील भी है। मानसून के दौरान बंगाल की खाड़ी से आई नमी से भारी बारिश होती है, जिससे बादल फटना, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड जैसी आपदाएं आम हो गई हैं। राजमार्गों, जलविद्युत परियोजनाओं और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने इन आपदाओं की मार को और घातक बना दिया है। 2021 में उत्तराखंड के चमोली में नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने से आई बाढ़ इसकी बानगी है, जिसमें 15 लोगों की मौत और 150 से ज़्यादा लोग लापता हो गए थे।

अगर पिछले कुछ दशकों का रिकॉर्ड देखें, तो उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में 1970 से लेकर 2021 तक कम से कम 18 बार भीषण बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएं आई हैं। इन घटनाओं की तीव्रता और संख्या में इजाफा जलवायु परिवर्तन और मानवीय दखल का सीधा असर है। पश्चिमी विक्षोभ की बढ़ती गतिविधि और ऊंचाई वाले क्षेत्रों का असामान्य रूप से गर्म होना इस परिवर्तन के संकेत हैं।    National News

CBS का बड़ा फैसला – ट्रंप से नहीं मांगेगा माफी, करेगा मोटा भुगतान

ग्रेटर नोएडा – नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।

देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें  फेसबुक  पर लाइक करें या  ट्विटर  पर फॉलो करें।