Saturday, 16 November 2024

अमेरिका और आस्ट्रेलिया को क्यों पड़ी भारत की जरूरत

क्या आप जानते हैं कि यूरोप और अफ्रीका को अमेरिका से अलग करने वाले महासागर का नाम क्या है? अगर…

अमेरिका और आस्ट्रेलिया को क्यों पड़ी भारत की जरूरत

क्या आप जानते हैं कि यूरोप और अफ्रीका को अमेरिका से अलग करने वाले महासागर का नाम क्या है? अगर हां, तो आप यह भी जानते होंगे कि अमेरिका और एशिया को कौन सा महासागर अलग करता है।

अमेरिकी महाद्वीप को यूरोप और अफ्रीका से अलग करने वाले महासागर को अटलांटिक महासागर कहते हैं और प्रशांत महासागर, अमेरिकी महाद्वीप को एशिया से अलग करता है।

अमेरिका की दुनिया के किसी भी देश से दोस्ती इस बात पर निर्भर करती है कि वह इन दो महासागरों के किस किनारे पर बसा है।

अफगनिस्तान से अमेरिका के हटने की ये है असल वजह
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया की दो महाशक्तियां थीं, उस वक्त अमेरिका के लिए यूरोप और अफगानिस्तान का महत्व दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा था। क्योंकि, यूरोप और अफगानिस्तान की सीमाएं तत्कालीन सोवियत संघ से लगती थीं। सोवियत संघ को घेरने के लिए अमेरिका को इन देशों की जरूरत थी।

अब अमेरिका को है इस देश से खतरा
दुनिया अब बदल चुकी है। अमेरिका अभी भी दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है, लेकिन सोवियत संघ की जगह अब चीन ने ले ली है।

चीन जिस तेजी से विकास कर रहा है उससे सबसे ज्यादा डर अमेरिका को है। चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत अमेरिका से उसकी नंबर वन की पोजीशन को कभी भी छीन सकता है।

चीन के निशाने पर हैं ये तीन देश
ऐसे में उसे एशिया में ऐसे सहयोगी की जरूरत है जो चीन से मुकाबला करने की हिम्मत रखता हो। एशिया के किसी भी देश में चीन का विरोध करने की हिम्मत नहीं है। केवल भारत ही है जो चीन की आंख में आंख डालकर बात करने की हिम्मत दिखा चुका है।

चीन धीरे-धीरे ताईवान, लद्दाख पर कब्जा करने की फिराक में है। ताईवान पर कब्जा कर वह जापान और आस्ट्रेलिया को अपने निशाने पर लेना चाहता है। जबकि, लद्दाख पर कब्जा कर भारत को सबक सिखाना चाहता है।

क्यों जापान, आस्ट्रेलिया और भारत पर है चीन की नजर
जापान और आस्ट्रेलिया लंबे समय से अमेरिका के सामरिक और रणनीतिक साझेदार हैं। शीत युद्ध के दौरान भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर था। हालांकि, सोवियत संघ के विघटन और चीन की बढ़ती ताकत के बाद भारत और अमेरिका दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत है।

प्रशांत महासागर का राजनीति से क्या कनेक्शन है
अब समझते हैं कि आखिर इसमें प्रशांत महासागर की क्या भूमिका है। प्रशांत सागर के उत्तरी हिस्से में जापान, मध्य में भारत और दक्षिण में आस्ट्रेलिया है। प्रशांत सागर के दूसरे हिस्से पर खुद अमेरिका बैठा हुआ है।

साफ है कि अगर अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत आपस में मिल जाएं, तो प्रशांत महासागर के हर छोर पर अमेरिका के दोस्त होंगे। इससे चीन को समुद्र और जमीन दोनों ओर से घेरने की अमेरिकी रणनीति सफल हो जाएगी।

क्या क्वाड का मकसद सिर्फ चीन को घेरना है?
अमेरिका और भारत की दोस्ती का जितना सामरिक महत्व है उससे कहीं ज्यादा यह व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण है। चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में चीन लगातार मजबूत होता जा रहा है। व्यापारि रिश्ते में चीन के बढ़ते प्रभाव का नतीजा चीन अमेरिका ट्रेड वार था। अमेरिका और यूरोप के देश चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करना चाहते हैं। इसमें भारत उनके लिए सबसे बड़ा मददगार साबित हो सकता है।

इन देशों पर है विस्तारवाद का खतरा
ताईवान से लेकर लद्दाख और चीन सागर से लेकर जिबूती तक चीन अपनी सीमाओं का विस्तार करने की फिराक में है। भारत, अमेरिका सहित दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देश चीन की इस विस्तारवादी नीति को खतरे को भांप चुके हैं। चीन को रोकने के लिए लोकतांत्रिक देशों को साथ आना स्वाभाविक है।

इन दो मूल्यों पर मंडरा रहा है खतरा!
जापान सहित पश्चिती देश लोकतंत्र और उदारवादी मूल्यों के समर्थक हैं। भारत हमेशा से लोकतांत्रिक और उदारवादी देश रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काबिज रहे हैं।

लोकतंत्र और उदारवादी मूल्यों में विश्वास करने वाले सभी देश चीन को एक खतरे के रूप में देखते हैं। वे नहीं चाहते कि चीन अपनी ताकत और पैसे के बल दुनिया के कमजोर देशों पर अपना प्रभाव कायम कर वहां भी लोकतंत्र का गला घोंट दे।

-संजीव श्रीवास्तव

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