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शादी या बच्चे पैदा करने से क्यों डर रहे हैं लोग, सर्वे में हुआ खुलासा

World population report

World population report

सन् 2100 में दुनिया के लगभग हर देश में सिर्फ बुजूर्ग बचेंगे। इनके पास पत्नी, बच्चे या परिवार जैसा कोई सहारा नहीं होगा। वजह होगी, लगातार घटती जन्म दर! इस सदी के अंत तक दुनिया की औसत जन्म दर 1.7 हो जाएगी जिसमें ज्यादातर लोग बिना शादी या परिवार के होंगे।

पूरी दुनिया में बढ़ रहा है यह ट्रेंड
औसत जन्म दर 2.1 प्रतिशत (रिप्लेसमेंट लेवल) से कम होने का मतलब है कि हर साल जितने लोगों की मृत्यु हो रही है, जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या उससे भी कम है। चौंका देने वाली खबर इसके बाद आती है। दुनिया के ज्यादातर देशों में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।

दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन की वर्तमान जन्म दर (1.6%) पिछले चार दशक में सबसे कम है। अमेरिका में ज्यादातर महिलाओं की बच्चे पैदा करने की कोई योजना नहीं है। जबकि, हाल ही में जारी जनसंख्या रिपोर्ट कार्ड में सामने आया है कि भारत की जन्म दर 2.0 हो गई है। यानी, रिप्लेसमेंट लेवल से भी नीचे।

दक्षिण कोरिया, दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्था वाला देश है। यहां जन्म दर 1.0 है। यानी, यहां कोई भी महिला एक से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करती। ज्यादातर महिलाएं तो मां बनना ही नहीं चाहती। सिंगापुर और हांगकांग में जन्म दर 1.1, स्पेन और इटली में 1.3, कनाडा में 1.5 और अमेरिका में 1.7 है। यानी, इन सभी देशों की आबादी तेजी से घट रही है और औसत उम्र बढ़ रही है।

आखिर क्यों बढ़ रही इतनी नकारात्मकता
पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर सवाल पैदा हो गया है कि आखिर शादी या बच्चे पैदा करने को लेकर इतनी नकारात्मकता क्यों है? जबकि, दुनिया की किसी भी सभ्यता या संस्कृति में शादी और बच्चे के जन्म को बेहद पवित्र व आनंदपूर्ण संस्कार माना जाता है।

21वीं सदी ने महिलाओं के जीवन और उनकी लाइफ स्टाइल को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। अब, वह केवल घर संभालने या बच्चे पैदा करने की मशीन भर बन कर नहीं रहना चाहती हैं। जबकि, दुनिया की लगभग सभी सभ्यताओं और संस्कृति में इन दोनों काम की जिम्मेदारी सिर्फ, महिलाओं पर डाली गई है।

किसी ने नहीं समझी महिलाओं की यह परेशानी
​हम ऐसे दौर में पहुंच गए हैं जहां महिलाओं की साक्षरता और नौकरी-पेशे में उनकी भागीदारी पुरुषों के लगभग बराबर हो गई है। इसके बावजूद, किसी भी काम या ऑफिस में उन्हें कोई भी रियायत नहीं दी जाती। जाहिर है, खुद को साबित करने के लिए वह भी पुरुषों के बराबर काम कर रही हैं। बच्चे या घर की देखभाल के चलते वह अपने करियर या सपनों को दांव पर नहीं लगाना चाहती हैं।

महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वह घर और ऑफिस, दोनों जगह अपना सर्वोत्तम दें। लिंग समानता के पैरोकार भी इस सच्चाई को समझाने में नाकाम रहे हैं कि यह व्यावहारिक नहीं है। यही वजह है कि महिलाओं के सामने करियर या बच्चे में से किसी एक को चुनने की मजबूरी है। परिवार भी महिलाओं पर ही करियर छोड़ने का दबाव बनाता है क्योंकि, बच्चे पालना ही महिलाओं की प्रमुख जिम्मेदारी मानी जाती है।

भारत में 39% महिलाओं ने नहीं की शादी
इस दबाव के चलते महिलाएं अब शादी के चक्कर में पड़ने से ही बच रही हैं क्योंकि, बच्चे पैदा करने की दिशा में यह पहला कदम है। एक सर्वे के मुताबिक दक्षिण कोरियों में 2014 में जहां तीन लाख से ज्यादा शादियां हुईं वहीं, 2018 में यह संख्या घटकर ढाई लाख हो गई। सर्वे के मुताबिक 2041 तक हांगकांग की एक तिहाई महिलाएं बिना शादी के जीवन गुजार रही होंगी।

भारत में 2001-11 के बीच गैर शादी-शुदा महिलाओं की संख्या 39% बढ़ी है। प्यू सर्वे (Pew Research Center) के मुताबिक, भारत में 2019 तक 23 से 38 वर्ष की 44% महिलाओं (Millennial Women) ने ही शादी की है।

बच्चे पैदा करने के बाद पैदा होता है एक डर
अमेरिका में ज्यादातर जोड़े बच्चे पैदा ही नहीं करना चाहते। इसके पीछे पालन-पोषण का बढ़ता खर्च, महंगी लाइफ-स्टाइल, करियर को प्राथमिकता और जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने की चाहत को बड़ी वजह माना जा रहा है।

भारत सहित ज्यादातर विकसित देशों में बच्चों के लिए अच्छी पढ़ाई, अच्छा घर और बेहतर जिंदगी का इंतजाम करना बेहद महंगा हो चुका है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग जब तक इन चीजों का इंतजाम करने की स्थिति में पहुंचते हैं, शादी की उम्र निकल चुकी होती है।

अगली पीढ़ी को नहीं देना चाहते यह डर
इसका अंदाजा अमेरिका में हुए प्यू सर्वे की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस सर्वे में 18 से 49 साल की उम्र की लोगों से पूछा गया कि इस बात की कितनी संभावना है कि वे शादी करेंगे? 23% ने जवाब दिया कि निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना नहीं है।

अनिश्चितता के बढ़ते माहौल को भी शादी न करने या बच्चे पैदा करने से बचने की बड़ी वजह माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण, महामारी का बढ़ता प्रकोप, नौकरी जाने का डर जैसी चीजों के चलते लोग डरे हुए हैं और आने वाली पीढ़ियों को ऐसे माहौल में बढ़ते नहीं देखना चाहते।

समाज के इस रवैये से बढ़ी परेशानी
इन चुनौतियों के बावजूद शादी न करने वाले पुरुष या महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया अब भी नकारात्मक है। उन्हें गैर-जिम्मेदार और स्वार्थी माना जाता है। बच्चे न पैदा करने वाली जोड़ियों के बारे में भी यही सोच है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जन्म दर का कम होना न सिर्फ पारिवारिक जीवन के लिए बड़ा खतरा है बल्कि, यह किसी भी देश के आर्थिक विकास में भी बड़ी बाधा है। जन्म दर घटने के साथ देश में युवाओं की संख्या घटती और बुजूर्गों की संख्या बढ़ती है। यानी, कामगारों की कमी, उत्पादन में कमी, मांग में कमी के अलावा बुजूर्गों की देखभाल करने वालों की भी कमी का संकट पैदा होता है।

फिलहाल, जापान इस संकट से जूझ रहा है और जल्द ही चीन भी इसका शिकार होने वाला है। सत्तर के दशक में शुरू की गई चीन की कठोर जनसंख्या नीति (वन चाइल्ड पॉलिसी) के कारण जन्म दर तेजी से नीचे चली गई। अब चीन की सरकार चाहती है कि लोग कम से कम तीन बच्चे पैदा करें लेकिन, बढ़ती महंगाई और महंगी लाइफ-स्टाइल के चलते कोई भी यह रिस्क नहीं उठाना चाहता।

क्या कोई समाधान संभव है?
समाज और सरकार, दोनों को यह समझना होगा कि बदलते दौर में बच्चे पैदा करना और उनका लालन-पालन आसान काम नहीं है। शादी या बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जिसमें इसके प्रति डर या बोझ का भाव न हो।

यह तब ही संभव है जब सरकारें, बच्चों की पढ़ाई को मां-बाप के लिए बोझ बनने से रोकें। ऑफिसों में मैटरनिटी और पैटरनिटी लीव पॉलिसी को ज्यादा से ज्यादा उदार बनाया जाए। बच्चों की डिलिवरी से लेकर उनके लालन-पालन को आर्थिक बोझ बनने से रोका जाए। ऑफिस के घंटों को महिलाओं, खासतौर पर मां बनने या बन चुकी महिलाओं के अनुकूल बनाया जाए। साथ ही, ऐसी नीतियां बनाई जाएं जो परिवार बनाने और उसे बढ़ाने के प्रोत्साहित करें।

1950 में दुनिया के सभी देशों में औसत जन्म दर 4.7 थी, जो 2021 में घटकर लगभग आधी (2.6) हो गई है। अगर जन्म दर इसी दर से गिरती रही तो, 2100 में 1.7 तक पहुंच जाने की संभावना है। यानी, इस सदी के अंत तक हम एक ऐसी दुनिया में पहुंच सकते हैं जहां चारों ओर सिर्फ, बुजूर्ग और अकेले लोग दिखेंगे। क्या हम यही चाहते हैं?

– संजीव श्रीवास्तव

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