Wrestler Protest : नई दिल्ली। भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाने का दावा करने वाले नाबालिग पहलवान के पिता का ‘यू टर्न’ निर्णायक नहीं होगा। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि प्राथमिकी (FIR) दर्ज होने के बाद मामला दिल्ली पुलिस के पास है और पुलिस अपनी जांच जारी रख सकती है।
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नाबालिग पहलवान के पिता ने बृहस्पतिवार को कहा था कि उन्होंने बृजभूषण के खिलाफ जान बूझकर यौन उत्पीड़न की झूठी शिकायत दर्ज कराई थी, क्योंकि वह अपनी बेटी के साथ हुई नाइंसाफी से नाराज थे। नाबालिग की शिकायत के आधार पर ही बृजभूषण के खिलाफ बाल यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत मामला दर्ज हुआ था।
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि पिता का बयान मामले में ‘निर्णायक’ नहीं है, क्योंकि प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है। मामला अब दिल्ली पुलिस के पास है और वह जांच कर रही है।
उन्होंने कहा कि नाबालिग के पिता का बयान स्वीकार करने के लिए पुलिस बाध्य नहीं है। वह जांच जारी रख सकती है, क्योंकि नाबालिग का बयान पहले ही दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज किया जा चुका है। धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बयान अदालत में स्वीकार्य है।
चार्जशीट दाखिल करने में देरी से गवाह हो सकते हैं प्रभावित
एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता एवं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह ने बृजभूषण की गिरफ्तारी और आरोप पत्र दाखिल किये जाने में लगातार विलंब पर सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि इस बात की जांच के आदेश दिये जाने चाहिये कि आरोप दाखिल किये जाने में विलंब क्यों हो रहा है, क्योंकि इससे ऐसी स्थिति बन रही है, जिससे गवाह प्रभावित हो रहे हैं।
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चूंकि मामला संवेदनशील है और इसमें यौन उत्पीड़न के आरोप शामिल हैं, इसलिए पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज पीड़िता के बयान पर आगे की जांच के लिए विचार किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि भले ही पीड़िता के पिता ने इस मामले में आरोपी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाने को मीडिया में स्वीकार किया हो, लेकिन यह जांचना और सत्यापित करना भी महत्वपूर्ण है कि उसने किन परिस्थितियों में ऐसे बयान दिए।
आरोप पत्र दाखिल करने में देरी की हो जांच
पुलिस अधिकारी ने कहा कि जो भी आरोप लगाए गए हैं, उन्हें सबूतों के समर्थन की जरूरत है जो किसी भी रूप में हो सकते हैं। संबंधित जांच दल सभी संभावित कोणों से आरोपों की जांच कर रहा है, क्योंकि ये गंभीर प्रकृति के हैं।
एससीबीए के पूर्व अध्यक्ष पूरे प्रकरण में जांच के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी में विलंब और आरोप-पत्र दाखिल करने में देरी से ऐसे हालात बनते हैं कि गवाह प्रभावित हो जाते हैं। इस बात की जांच होनी चाहिये कि ऐसा क्यों हुआ।
उन्होंने कहा कि अगर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता तो, ऐसा कुछ भी नहीं होता। उन्होंने कहा कि आम तौर पर कोई कार्रवाई न होने की स्थिति में शिकायतकर्ताओं को मामले को निपटाने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें प्रलोभन दिया जाता है। उन्होंने कहा कि पुलिस यू-टर्न के बावजूद जांच जारी रख सकती है।
यह पूछे जाने पर कि क्या नाबालिग के पिता के बयान के बाद बृजभूषण अदालत की शरण में जा सकते हैं, सिंह ने कहा कि वह शपथ लेकर झूठी गवाही देने के आरोप में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का अनुरोध कर सकते हैं।
द्विवेदी ने कहा कि तथाकथित ‘यू-टर्न’ जांच का एक पहलू होगा, लेकिन यह सही है या दबाव में किया गया है और क्या यह शपथ लेकर झूठी गवाही देने का मामला है, यह सब जांच के विषय हैं।
नाबालिग के पिता का यू टर्न निर्णायक नहीं
उन्होंने कहा कि जैसा कि राज्य ने प्राथमिकी दर्ज करने पर मामले को अपने हाथ में ले लिया है, “तथाकथित यू-टर्न निर्णायक नहीं होगा। यह सिर्फ एक तत्व होगा जिस पर पुलिस गौर करेगी, और अगर यह पता चलता है कि मामला गलत है, झूठा है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है।”
द्विवेदी ने कहा कि गेंद अभी पुलिस के पाले में है और अगर वह स्वीकार करती है और मामला वापस लेने की अनुमति देती है तो किसी को इस पर सवाल उठाना होगा।
उन्होंने कहा कि अभी तक, यह पुलिस के पास है जो इसे मौजूदा स्थिति में मानने के लिए बाध्य नहीं है और उसे जांच करनी होगी। यह जांच का एक तत्व बन जाएगा और (धारा) 164 के बयानों के आलोक में पुलिस अब भी आगे बढ़ सकती है। Wrestler Protest
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