Monday, 25 November 2024

Youth Alert : क्यों धार्मिक स्थलों से दूर भाग रही है हमारी युवा पीढ़ी

Youth Alert : रवि अरोड़ा Youth Alert : मेरे कुछ मित्र अक्सर वृंदावन जाते हैं, मगर बांके बिहारी के मन्दिर…

Youth Alert : क्यों धार्मिक स्थलों से दूर भाग रही है हमारी युवा पीढ़ी

Youth Alert : रवि अरोड़ा
Youth Alert : मेरे कुछ मित्र अक्सर वृंदावन जाते हैं, मगर बांके बिहारी के मन्दिर नहीं वरन इस्कॉन (Iskcon Temple) के कृष्ण बलराम मन्दिर के दर्शन करके ही लौट आते हैं। उनकी सलाह पर मैं भी दो-चार बार वहां हो आया हूं। भारतीय मंदिर और अमेरिकी संस्था के इस मन्दिर में अंतर साफ नजर आता है। बांके बिहारी मन्दिर में बेतहाशा भीड़ के चलते मंदिर परिसर में घुसना ही इतना मशक्कत भरा होता है कि अच्छे अच्छों का दम निकल जाए। कब भीड़ आपको धकेल कर कहां पहुंचा दे, कहा नहीं जा सकता। मन्दिर के बाहर न तो जूते चप्पल रखने की जगह मिलती है और न ही हाथ मुंह धोने को पानी। पार्किंग अथवा कायदे से चाय नाश्ते की तो कल्पना ही फजूल है। हां मंदिर के किसी गोंसाई से परिचय है तो जो चाहो सुविधा पा लो। चाहे तो बांके बिहारी की आरती कर लो या श्रृंगार। स्वयं प्रसाद चढ़ा लो अथवा भोग लगा लो। उधर, इस्कॉन मंदिर में सब कुछ प्राइवेट सेक्टर की किसी कंपनी जैसा है- व्यवस्थित।

Youth Alert : Iskcon Temple In Vrindavan

इस्कॉन (Iskcon Temple) के हालांकि दुनिया भर में हजार से अधिक मंदिर हैं और आधे से अधिक भारत में ही हैं, मगर वृंदावन का मंदिर देश का पहला इस्कॉन मंदिर है। बावजूद इसके यह वर्तमान की तमाम जरूरी सुविधाओं से सुसज्जित है। मुफ्त पार्किंग, जूते रखने को टोकन व्यवस्था, प्रसाद में खिचड़ी का डोना, हरे रामा हरे कृष्णा की स्वर लहरियां और विशाल परिसर में नृत्य करते भक्त लोग मन मोह लेते हैं। हालांकि ऐसे किस्से सुनते हुए ही मैं बड़ा हुआ हूं कि इस्कॉन विदेशी संस्था है और यहां से धन लूट कर बाहर भेजती है और इसका मुख्य उद्देश्य धर्मांतरण है वगैरह वगैरह।

Iskcon Temple in Mathura

वाट्सएप यूनिवर्सिटी का यह ज्ञान भी हवाओं में तैरता रहता है कि कॉलगेट कंपनी जितना पैसा साल भर में विदेश भेजती है, उससे तीन गुना अधिक पैसा अकेला इस्कॉन का बंगलुरू मंदिर भेज देता है। बेशक ऐसी खबरें किसी भी देश प्रेमी को विचलित करती हैं, मगर फिर भी सवाल मन में आता है कि क्या हमारी सरकार बेवकूफ है, क्या उसे नहीं दिखता होगा यह सब? माना आज की मोदी सरकार हिंदू भावनाओं से ओतप्रोत है और किसी मंदिर के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती, मगर इस्कॉन तो साल 1966 से भारत में सक्रिय है और उसके मंदिरों की संख्या तब से ही लगातर बढ़ती जा रही है और इस दौरान हर विचारधारा की पार्टी सत्ता में आ चुकी है। तब क्यों आज तक उस पर कार्रवाई तो दूर कोई जांच तक नहीं हुई?

चलिए एक बार को मान लेते हैं कि इस्कॉन पर लगे सभी आरोप सही हैं और इसके नाम पर कोई बड़ा ‘खेल’ हो रहा है, मगर फिर भी एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि इन इस्कॉन वालों ने हमें सिखा तो दिया है कि मंदिरों का संचालन कैसे किया जाता है। बता दिया है कि कैसे मंदिर आगमन आनंददायी हो और वहां आकर भक्त श्रद्धा भाव से पुलकित होकर लौटे। क्या देश के तमाम बड़े भारतीय मंदिरों की प्रबंध कमेटियों को इस्कॉन से कुछ सीखना नहीं चाहिए? बेशक दर्शनाभिलाषी भक्त को ग्राहक न माना जाए मगर फिर भी उसके साथ भेड़ बकरी जैसा व्यवहार भी तो न हो।

अब आप कह सकते हैं कि अव्यवस्था के बावजूद जब तमाम मंदिर ठसाठस भरे हैं, तब मंदिर प्रबंधक खुद को क्यों बदलना चाहेंगे? आपके इस सवाल का हालांकि मेरे पास कोई उचित जवाब नहीं है मगर फिर लगता है कि आज नहीं तो कल बदलना तो पड़ेगा। सुविधाओं की आदी आज की युवा पीढ़ी को यदि अपने मंदिर के भीतर बुलाना है तो कुछ जतन तो करना ही पड़ेगा जी। सरकार तो केवल कॉरिडोर बना सकती है। अपने पर काम तो ख़ुद करना पड़ेगा वरना देखते रहना पैसा और भक्त सब इस्कॉन जैसे लोग ले जाएंगे।

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