Noida News : अजीब बात है ना? एक मच्छर (Mosquito), जिसका आकार सुई की नोक बराबर होता है , आज एक सामाजिक असमानता का बड़ा प्रतीक बन चुका है। गौर कीजिए—आरडब्ल्यूए के सदस्यों और प्रभावशाली लोगों के घरों के आसपास हर सप्ताह छिड़काव, फॉगिंग, सफाई… लेकिन आम नागरिकों के इलाकों में? वहां सिर्फ एक महक छोड़ दी जाती है, वह भी खानापूर्ति की तरह।
क्या मच्छर (Mosquito), जो आकार में छोटा सही, पर असल में “मौत का उड़ता हुआ बम” नहीं है? हर साल लाखों लोगों को अपने डंक से बीमार कर रहा है—यह कोई मेरा निजी अनुमान नहीं, बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े हैं। हर साल दुनियाभर में करीब 7 लाख मौतें मच्छर जनित रोगों से होती हैं। भारत जैसे देशों में, जहां उष्णकटिबंधीय जलवायु और जल जमाव आम है, यह स्थिति और गंभीर हो जाती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि मच्छर (Mosquito) अब मनुष्यों को सबसे अधिक मृत्यु देने वाले जीवों में दूसरे स्थान पर आ चुका है। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, पीला बुखार, ज़ीका वायरस—इन सबके पीछे यही छुपा रुस्तम है। हर साल करोड़ों लोग इन बीमारियों से ग्रसित होते हैं और लाखों अपनी जान गंवा देते हैं। लेकिन हम? बड़े हल्के से कह देते हैं—“अरे, मलेरिया हुआ है।”
क्या यह समय नहीं आ गया कि इस उड़ते दुश्मन से निर्णायक लड़ाई लड़ी जाए?
आजकल मच्छर सिर्फ मैदानी इलाकों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों में भी अपने पैर पसार चुका है। शहरीकरण, अव्यवस्थित जल निकासी, खुले गमले, कूलर में जमा पानी, गंदी नालियाँ—इन सबने इसे और पोषित किया है। 2023 में ही भारत में 2 लाख डेंगू के केस सामने आए थे और सैकड़ों मौतें हुईं। डेंगू जिस घर में जाता है, वहां सिर्फ मरीज नहीं, पूरा परिवार बीमार पड़ता है—शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से। कुछ लोग अपने बड़े मकान बेचकर छोटे फ्लैट में चले जाते हैं—क्योंकि डेंगू के इलाज में उनका सब कुछ लुट गया। सरकारी अस्पतालों में इलाज की कोई गारंटी नहीं और प्राइवेट में कदम रखने का मतलब—हजारों से लेकर लाखों तक का खर्च। प्लेटलेट्स, जो खून से निकाले जाते हैं, सरकारी अस्पतालों में आसानी से नहीं मिलते, और सोशल मीडिया पर रोज़ प्लेटलेट्स के लिए तड़पती पोस्ट दिखाई देती हैं। कुछ भले लोग होते हैं जो खून देने आ भी जाते हैं—but let’s face it—वे उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।
क्या यह मच्छरों का पनपना युद्ध नहीं?
हर साल मानसून के साथ उम्मीदें आती हैं—ठंडक की, राहत की।लेकिन उसी के साथ मच्छरों की फौज भी आती है, जो हर गली, हर मोहल्ले में हमला करती है। हर जगह शोर मचता है—डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया से बचाव करें! फॉगिंग होती है , पर्चे बांटे जाते हैं, जागरूकता अभियान चलते हैं —पर असल सवाल यह है कि… क्या वाकई हम गंभीर हैं? छिड़काव कुछ इलाकों में ही क्यों? क्या मच्छर जात-पांत, क्षेत्र, वर्ग देखकर काटता है? यह सामाजिक असमानता का असली चेहरा है। दवा की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है। जब यह छोटा सा जीव किसी का खून पी जाता है तो उसकी सेहत, संपत्ति और संप्रभुता—तीनों खतरे में आ जाती है।
अब क्या करना चाहिए?
क्या यह समय नहीं आ गया कि मच्छरों के खिलाफ हम एक राष्ट्रीय युद्ध छेड़ें? जहां हर मोहल्ले में बराबरी से छिड़काव हो, गंदगी हटे, तालाबों की सफाई हो, सरकारी दवाएं सशक्त हों और जनता को जागरूक किया जाए? यह सिर्फ स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, यह सामाजिक न्याय का भी सवाल है।
हमें इस पर चुप नहीं बैठना चाहिए।
आपका इलाका कब फॉगिंग के लिए चुना जाएगा, इसका इंतज़ार मत करिए—आवाज़ उठाइए।
अपने आरडब्ल्यूए, नगर निगम, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से जवाब मांगिए।
एकजुट होकर अभियान चलाइए।
क्योंकि जब मच्छर जात नहीं पूछता, तब इंसान क्यों वर्ग देखे?
“मच्छर (Mosquito) छोटा है, पर इससे लड़ाई बड़ी है। और यह लड़ाई हमें मिलकर लड़नी है—वरना एक दिन हम सब कटते रह जाएंगे,,। Noida News :
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